1962 के युद्ध में चीन के तीन सौ सैनिकों को ढेर करने वाले जसवंत सिंह रावत को मृत्यु के बाद भी मिलता रहा प्रमोशन
Jaswant Singh Rawat death anniversary 2022 1962 के युद्ध में जसवंत सिंह रावत ने देश के सीमा की सुरक्षा करते हुए चीन के तीन सौ सैनकों को अकेले ढे कर दिया था। राइफलमैन रावत को 1962 के युद्ध के दौरान उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। चलिए जानते हैं जसवंत सिंह रावत की सौर्य गाथा।
हल्द्वानी, स्कंद शुक्ल : Jaswant Singh Rawat death anniversary 2022 : चीन के साथ लड़ा गया 1962 का युद्ध (indo China war 1962) भारतीय सेना के वीर जवानों की गौरव गाथा है। इस युद्ध में सीमा की रक्षा करते हुए देश के कई जाबाजों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। ऐसे ही एक महान सपूत रहे राइफल मैन जसवंत सिंह रावत (Rifle Man Jaswant Singh Rawat)। जिन्होंने 72 घंटे भूखे-प्यासे रहकर चीनी सैनिकाें काे न सिर्फ रोके रखा, बल्कि दावा यह भी किया जाता है कि उन्होंने दुश्मन देश के तीन सौ सैनिकों को ढेर कर दिया था।
पौड़ी-गढ़वाल जिले जिले में जन्म
Who Is Jaswant Singh Rawat : 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के बादयूं में जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था। 17 साल की उम्र में ही वह सेना में भर्ती होने चले गए थे, लेकिन तब कम उम्र के चलते उन्हें नहीं लिया गया। हालांकि, 19 अगस्त 1960 को जसवंत को सेना में बतौर राइफल मैन शामिल कर लिया गया। 14 सितंबर, 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। इसके एक साल बाद ही यानी 17 नवंबर, 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया।
तीन जवानों ने लौटने से कर दिया था इनकार
सुबह के करीब पांच बजे चीनी सैनिकों ने सेला टॉप के नजदीक धावा बोला, जहां मौके पर तैनात गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने उनका सामना किया। जसवंत सिंह रावत इसी कंपनी का हिस्सा थे। 17 नवंबर 1962 को शुरू हुई यह लड़ाई अगले 72 घंटों तक लगातार जारी रही।
चीनी सेना हावी होती जा रही थी, इसलिए भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया। लेकिन इसमें शामिल जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से गोलीबारी कर रही चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे।
तीन में दिनों तीन सौ सैनिकों को किया ढेर
Jaswant Singh Rawat killed 300 Chinese soldiers in indo China war 1962 : तीनों जवान चट्टानों और झाड़ियों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और महज 15 यार्ड की दूरी से हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए। इससे पूरी लड़ाई की दिशा ही बदल गई और चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका।
हालांकि, इस गोलीबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए। वहीं, जसवंत को दुश्मन सेना ने घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। रिपोर्ट के मुताबिक, इन तीन दिनों में 300 चीनी सैनिक मारे गए थे।जिससे अरुणाचल प्रदेश को उनके कब्जे में जाने से बचाया जा सके।
जसवंत सिंह रावत को मृत्यु के बाद भी मिलता रहा प्रमोशन
Martyr Jaswant Singh Rawat : राइफलमैन रावत को 1962 के युद्ध के दौरान उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिला था। पहले नायक फिर कैप्टन और उसके बाद मेजर जनरल बने।
इस दौरान उनके घरवालों को पूरी सैलरी भी पहुंचाई गई। अरुणाचल के लोग उन्हें आज भी शहीद नहीं मानते हैं। माना जाता है कि वह आज भी सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। शहीद जसतंव सिंह रावत के शौर्य गाथा पर बनी फिल्म '72 आवर्स: मारटायर हू नेवर डायड' (72 Hours Martyr Who Never Died) बनी है।
लॉर्ड लैंसडाउन कौन थे?
द मार्कस ऑफ लैंसडाउन एक ब्रिटिश राजनेता थे। उन्होंने 1888 से 1894 तक भारत के वायसराय के रूप में कार्य किया। लैंसडाउन छावनी बोर्ड के आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 1886 में भारत में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल सर एफ एस रॉबर्ट्स की सिफारिश पर गढ़वालियों की एक अलग रेजिमेंट बनाने का निर्णय लिया गया था।
गढ़वाल राइफल्स के रंगरूटों के प्रशिक्षण के लिए छावनी और रेजिमेंटल सेंटर समुद्र तल से छह हजार फीट की ऊंचाई पर कालुंडांडा के नाम से मशहूर वन क्षेत्र में स्थित था। नई साइट को ब्रिगेडियर जनरल जे आई मरे, जीओसी, रोहिलखंड द्वारा अनुमोदित किया गया था और गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन, लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेनवारिंग के तहत 4 नवंबर 1887 को कालुंडांडा में स्थानांतरित हो गई थी। 21 सितंबर 1890 को वायसराय के नाम पर कालुंडांडा का नाम बदलकर लैंसडाउन कर दिया गया।