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    अद्भुत है कुमाऊं में दिन में होने वाली रामलीला, हल्द्वानी में 138 वर्षों से अनवरत होता आ रहा आयोजन

    By Rajesh VermaEdited By:
    Updated: Mon, 19 Sep 2022 05:40 PM (IST)

    Haldwani Ramleela हल्द्वानी में होने वाली दिन की रामलीला अद्भुत है। यह शहर की सबसे पुरानी रामलीला होने के साथ ही कुमाऊं की दिन में होनी वाली एकमात्र रामलीला भी है। इसका अायोजन भी अद्भुत तरीके से होता है जिसे देखने दूरदराज से लोग पहुंचते हैं।

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    Haldwani Ramleela: हल्द्वानी में दिन में होने वाली रामलीला शहर की सबसे पुरानी रामलीला भी है।

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : Haldwani Ramleela: उत्तराखंड कई संस्कृतियों और परंपराओं को समेटे हुए है। ये परंपराएं भी अद्भुत है। पहाड़ के लोगों में इन परंपराओं के प्रति लगाव भी बेहद अलग है। ऐसी ही एक परंपरा यहां रामलीला आयोजन को लेकर है। हल्द्वानी में होनेे वाली यह रामलीला अपने समय और इतिहास को लेकर लोगों के बीच अलग ही जगह रखती है।

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    हल्द्वानी की है सबसे पुरानी रामलीला

    आमतौर पर पूरे में देश में रामलीला का अायोजन दिन ढलने के बाद रात में किया जाता है और इसकी शुरुआत नवरात्रि से होती है। मगर हल्द्वानी की यह रामलीला दिन में आयोजित की जाती है और इसका आगाज भी पितृ पक्ष में ही होता है, जब सभी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। यह रामलीला करीब 138 सालों से होती आ रही है, जो कुमाऊं की एकमात्र दिन की रामलीला है और हल्द्वानी शहर की सबसे पुरानी।

    ध्वज स्थापना से शुरू होती हैं तैयारियां

    रामलीला के शुभारंभ से करीब 15 दिन पहले ध्वज स्थापना होती है, जिसके बाद इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ध्वज स्थापना के बाद ही कलाकार अपने-अपने पात्रों के अभिनय का प्रशिक्षण लेना शुरू करते हैं।

    खुले मैदान में आयोजन, व्यासपीठ से होता है संचालन

    हल्द्वानी की दिन की रामलीला खुले मैदान में होती है। इसके लिए मैदान के दो और आमने-सामने दो मंच बनते हैं। एक तरफ भगवान राम का मंच और दूसरी तरफ रावण का। और पूरे मैदान में दोनों पक्षों के पात्र अभिनय करते हैं। इस रामलीला की एक खास बात ये भी है कि ये रामलीला व्यासपीठ से खेली जाती है। इसका कोई भी कलाकार अपना संवाद खुद नहीं बोलता। व्यासपीठ पर बैठे व्यास गोपाल भट्ट शास्त्री सभी कलाकारों का संवाद बोलते हैं। कालाकर केवल अभिनय करता है।

    दूर-दूर से आते थे लोग देखने

    करीब 40 वर्षों से व्यासपीठ की देखरेख कर रहे गोपाल दास शास्त्री बताते हैं कि कभी हल्द्वानी की दिन की रामलीला को देखने के लिए लोग पिथौरागढ़, सितारगंज, नानकमत्ता, कालाढूंगी रामनगर, नैनीताल, अल्मोड़ा तक से बैलगाड़ी पर बैठकर आते थे और रामलीला मंचन के दौरान यहीं पड़ाव डालकर रहा करते थे। इसके लिए व्यापारियों की मदद से धर्मशाला भी बनवाया गया था। मगर अब विभिन्न वजहों पर रामलीला हो रही है। इसलिए अभिनय में लोगों रुचि कम हो रही है, यह काफी दुख की बात है। आने वाले समय में रामलीला को अपने अस्तित्व के लिए काफी संघर्ष करना पड़ सकता है।

    राम और रावण से मिलिए

    वहीं करीब 15 वर्षों से रामलीला में रावण का किरदार निभाने वाले प्रमोद भट्ट बताते हैं कि शुरू में उन्हें रावण का पात्र निभाने में बड़ी परेशानी होती थी, मगर इतने वर्षों से एक ही किरदार निभाते-निभाते वह इसमें रम गए हैं। वहीं, पांच वर्षों से राम का किरदार निभाने वाले रितेश जोशी बताते हैं कि भगवान राम के जीवन चरित्र का अभिनय निभाकर वह खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं।

    इस बार 23 सितंबर से रामलीला

    हल्द्वानी की सबसे प्राचीन रामलीला का आगाज इस बार 23 सितंबर से होगा और दशहरे तक चलेगा। इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। कलाकार दिन में कुछ घंटे नियमित अपने-अपने पात्रों के अभिनय का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

    सिटी मजिस्ट्रेट हैं रामलीला कमेटी की रिसीवर

    शहर की सबसे पुरानी रामलीला के आयोजन का जिम्मा सिटी मजिस्ट्रेट के हाथों में रहती है। वह रामलीला कमेटी में रिसीवर की भूमिका निभाते हैं। इसका कारण पूर्व में इसके आयोजन के दौरान सामने आया भ्रष्टाचार है। यहां लगने वाले दुकानों और पटाखों की खरीद में घपले सामने आने के बाद समिति विवादों में आ गई थी, जिसके बाद 2016 में समिति को भंग कर रामलीला कमेटी में सिटी मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त किया गया। तब से लेकर अब तक लगातार रिसीवर की ओर से चयनित कमेटी आयोजन कर रही है।

    कोराेना काल में भी खूब देखी गई रामलीला

    2020 में जब कोराना काल ने लोगों को घरों में कैद कर दिया, तब भी इस रामलीला का आयोजन नहीं बंद हुआ। उस दौरान इसका आयोजन ऑनलाइन हुआ। फेसबुक पर रोजाना दो से तीन हजार लोगों ने इसे देखा।

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