International Yoga Day 2022: स्वामी विवेकानन्द ने हिमालय यात्रा के दौरान ही विश्व को दिया ध्यान योग का ज्ञान
International Yoga Day 2022 स्वामी विवेकानंद ने योग को युवाओं के लिए सरलीकृत किया। ज्ञान योग राजयोग भक्ति योग आदि के माध्यम से योग के मर्म को समझाया। उन्होंने कुमाऊं यात्रा के दौरान हुए दैवीय अनुभवों को ज्ञान योग में समाहित किया। इसके अंश अल्मोड़ा यात्रा के दौरान लिखे गए।

दीप बोरा, रानीखेत अल्मोड़ा: International Yoga Day 2022: युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का हिमालय से अटूट लगाव था। देश-दुनिया से भ्रमण से मौका पाते ही वह हिमालय में ध्यान लगाने आ पहुंचते थे। कुमाऊं के अल्मोड़ा क्षेत्र में उन्होंने कुल पांच यात्राएं की। इस दौरान अद्वैव के साथ ही दुनिया को ध्यान योग से परिचय कराया। अपनी प्रसिद्ध रचना ज्ञानयोग के कुछ अंश भी कुमाऊं प्रवास के दौरान लिखी।
उतिष्ठ भारत का संदेश
उन्होंने पुरातन भारतीय संस्कृति एवं परंपरा की वैदिककालीन विधा योग की विशिष्ट विधाओं से देश दुनिया खासतौर पर युवाओं को बखूबी रूबरू कराया। 'उतिष्ठ भारत' का संदेश लेकर जब वह हिमालयी पदयात्रा पर उत्तराखंड की वादियों में पहुंचे तो ध्यान के साथ योग को विशेष महत्व दिया।
रानीखेत में मिला ज्ञान
पवित्र काकड़ीघाट धाम (रानीखेत) में पीपलवृक्ष की छांव में अध्यात्मिक का ज्ञान प्राप्त करने के बाद युगपुरुष ने योग को मानव एवं ईश्वर को जोडऩे की सशक्त पद्धति बताया। स्वामी विवेकानंद ने युवा भारत का सपना बुन नौजवानों को बाकायदा अध्यात्म और योग के प्रति समर्पण की भावना को भी जाग्रत किया।
अद्वैत को मानने वाले स्वामी ने ज्ञानयोग की रचना की, जिसके कुछ अंश कुमाऊं प्रवास पर गढ़े। स्वामी विवेकानंद ने हिमालयी पदयात्रा के दौरान 1890 से 1898 के बीच पांच बार दिव्य हिमालय की वादियों का रुख किया था। इस दौरान आध्यात्मिक अनुभूति व खगोलीय तरंगों को महसूस कर चुनिंदा स्थलों को ध्यान के लिए चुना।
स्याहीदेवी में दैवीय शक्ति का अनुभव
1898 में भ्रमण के समय आध्यात्मिक शक्तिपीठ स्याहीदेवी (अल्मोड़ा व रानीखेत की मध्य पर्वतमाला) के शिखर पर उन्हें दैवीय शक्ति की अनुभव हुआ। नतीजतन वह अलौकिक वन क्षेत्र में 25 से 28 मई तक रोजाना 10 घंटे ध्यानमग्न रहे। यहीं उन्होंने अध्यात्म व योग को एक दूसरे का पूरक माना।
युग पुरुष ने दिव्य, शांत एवं निर्जन पहाड़ में ऐसे मठ की कल्पना कर डाली जहां अद्वैत की शिक्षा के साथ ध्यान योग साधना भी हो सके। ज्ञान योग के जरिये ही युग पुरुष ने माना था कि देवभूमि में जीवात्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है।
योग दर्शन का सरलीकरण
ज्ञान योग पर अध्ययन में जुटे स्वामी विवेकानंद सेवा समिति काकड़ीघाट के अध्यक्ष हरीश चंद्र सिंह परिहार तथा पतंजलि योग समिति की विमला रावत के अनुसार स्वामी ने योग की विशिष्ट विधाओं व परंपराओं को बेहद व्यावहारिक रूप से आमजन के बीच रखा।
स्वामी विवेकानंद ने 'उतिष्ठ भारत' की परिकल्पना की तो ज्ञानयोग के साथ ही कर्म, भक्ति व राजयोग आदि पद्धतियों के बौद्धिक और दार्शनिक पहलुओं को सहजभाव से युवाओं के समक्ष रखा। योग के प्रति जागरूक भी किया।
सबल बनेंगी युवाशक्ति
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि योग का प्राथमिक चरण यम नियम, आसन व प्राणायाम से विद्यार्थियों को स्वस्थ व बौद्धिक रूप से सबल बना सकते हैं। वह खुद भी योग के जरिये अवचेतन एवं एकाग्र मन, अद्भुत मस्तिष्क क्षमत व तल्लीनता के बूते विद्या अध्ययन में समर्थ रहे।
नए भारत का निर्माण
स्वामी विवेकानंद की देश दुनिया में प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक 'ज्ञानयोग' प्रमाणित करता है कि युग पुरुष ने आधुनिककाल में योग के गूढ़ रहस्यों को न केवल परखा बल्कि अपनी कुशाग्र बुद्धि के जरिये युवा भारत के निर्माण में इसकी महत्ता समझ ली थी।
'ज्ञानयोग' यानि ईश्वर से सीधा साक्षात्कार की पद्धति। 17 अध्याय वाली पुस्तक में बुद्धि की प्रधानता, तर्क व युक्ति से आत्मज्ञान हासिल करने का मार्ग बताया गया है। साथ ही वेदांत के सूक्ष्म तत्वों की गहन व तार्किक व्याख्या मिलती है।
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