कुत्तों में कैनाइन पार्वो का पता लगाने को बनेगी स्वदेशी टेस्ट किट, रिसर्च में जुटे उत्तराखंड के साइंटिस्ट
आइवीआरआइ मुक्तेश्वर ने कुत्तों में जानलेवा कैनाइन पार्वो वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन बनाई है। अब संस्थान स्वदेशी टेस्ट किट बनाने में जुटा है जो डेढ़ साल में उपलब्ध होगी। इससे अमेरिका स्पेन व कोरिया पर निर्भरता खत्म होगी। विज्ञानी डा. विशाल चंद्र ने बताया कि पुरानी वैक्सीन वायरस पर बेअसर थी इसलिए नया टीका विकसित किया गया। स्वदेशी किट से जांच लागत भी कम होगी।

भूपेश कन्नौजिया, जागरण मुक्तेश्वर(नैनीताल)। कुत्तों के लिए जानलेवा साबित होने वाले कैनाइन पार्वो वायरस संक्रमण से निजात दिलाने को भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) मुक्तेश्वर ने पार्वो वैक्सीन तैयार कर ली है। खास बात यह है कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए अब स्वदेशी टेस्ट किट भी विज्ञानी यहीं तैयार कर रहे हैं। डेढ़ साल के भीतर यह किट उपलब्ध हो जाएगी। अभी तक इस किट के लिए अमेरिका, स्पेन व कोरिया पर भारत की निर्भरता थी।
कैनाइन पार्वो वायरस दरअसल कुत्तों में होने वाली एक गंभीर व जानलेवा बीमारी है। इसमें कमजोरी व सुस्ती, भूख में कमी, अधिक बदबूदार उल्टी-दस्त, निर्जलीकरण, पेट में सूजन तथा बुखार आदि लक्षण उभरते हैं।
इस बीमारी से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को आइवीआरआइ के विज्ञानी डा. विशाल चंद्र ने देश में पहली भारतीय कुत्तों की स्थानीय प्रजातियों पर आधारित कैनाइन पार्वो वायरस वैक्सीन विकसित की। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के 97वें स्थापना दिवस पर 16 जुलाई को लांच की गई तीन नई वैक्सीनों में से एक पार्वो वैक्सीन भी थी। पांच वर्षों के शोध के बाद यह वैक्सीन तैयार हुई और अब उत्पादन के स्तर पर पहुंच गई है।
डा. विशाल का कहना है कि इस बीमारी के लिए पुरानी वैक्सीन म्यूटेट हो चुकी थी यानी वह वायरस पर बेअसर हो रही थीं। इसी को देखते हुए हमने नया टीका भारतीय स्ट्रेन पर विकसित किया। जो पूरी तरह सुरक्षित और कारगर है। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए डा. विशाल व उनकी टीम अब इस वायरस के लक्षणों की पहचान के लिए टेस्ट किट विकसित कर रही है। डा. विशाल के अनुसार यह किट डेढ़ साल के भीतर बाजार में आ सकती है। जिसके बाद अमेरिका, स्पेन और कोरिया से आयातित किटों पर हमारी निर्भरता पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।
कम हो जाएगी जांच लागत भी
कैनाइन पार्वो टेस्ट किट के लिए अभी करीब एक लाख रुपये खर्च होता है। एक किट से एक बार में नब्बे सैंपल की जांच कर सकते हैं। भारत में जब स्वदेशी किट तैयार हो जाएगी तो इस खर्च में करीब 15 से 20 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।
हमारे विज्ञानियों की मेहनत का ही नतीजा है कि देश अब कैनाइन पार्वो व पीपीआर रोगों के निदान के लिए विदेशी वैक्सीन पर निर्भर नहीं रहेगा। ये शोध कार्य पशु चिकित्सा के क्षेत्र में आगे क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले होंगे। डेढ़ साल के भीतर स्वदेशी कैनाइन पार्वो टेस्ट किट भी विकसित कर हम आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य में कदम आगे बढ़ा लेंगे। - डा. वाईपीएस मलिक, संयुक्त निदेशक, आइवीआरआइ मुक्तेश्वर
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