मोहन जोशी के क्रांतिकारी तेवरों से प्रभावित होकर अल्मोड़ा पहुंचे थे महात्मा गांधी
independence day 2022 मोहन जोशी के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से महात्मा गांधी इस कदर प्रभावित हुए कि वह सन् 1929 में अल्मोड़ा आए। मोहन जोशी उन्हें बागेश्वर भी ले गए। जहां उन्होंने स्वराज आश्रम की स्थापना की।

अल्मोड़ा, जागरण संवाददाता : independence day 2022 : ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में कुमांऊ के कई से महान विभूतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही महान क्रांतिकारी थे मोहन जोशी (Mohan Joshi) ।
1924 में बागेश्वर मेले में दिया ऐतिहासिक भाषण
मोहन जोशी ने सन् 1924 में बागेश्वर मेले में ऐसे प्रेरित करने वाले भाषण दिए। जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी। उस समय उन्हें गिरफ्तार करने के लिए 250 सशस्त्र पुलिस बल की मदद लेनी पड़ी। उन्हें तीन वर्ष का सश्रम कारावास मिला।
मोहन जोशी से प्रभावित होकर बापू अल्मोड़ा आए
मोहन जोशी के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से महात्मा गांधी इस कदर प्रभावित हुए कि वह सन् 1929 में अल्मोड़ा आए। मोहन जोशी उन्हें बागेश्वर भी ले गए। जहां उन्होंने स्वराज आश्रम की स्थापना की।
विक्टर जोजफ जोशी से बन गए मोहन जोशी
मोहन जोशी का जन्म एक फरवरी 1896 को नैनीताल में हुआ। उनका असली नाम ‘विक्टर जोजफ जोशी’ था। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने से पहले उन्होंने अपने नाम से जुड़े विदेशी शब्द को हटा दिया और मोहन जोशी घोषित कर दिया।
अल्मोड़ा को बनाई कर्मभूमि
इलाहबाद से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा को अपनी कर्मभूमि बनाई। 1920 में क्रिश्चयन नेशनलिस्ट साप्ताहिक अखबार निकाला। माेहन जोशी के विचारों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य चुना।
शक्ति अखबार से जगाई राष्ट्रीय चेतना
बद्री दत्त पांडे का अल्मोड़ा अखबार जब ब्रिटिश शासकों के षडयंत्र से बंद हुआ तो उन्होंने शक्ति अखबार के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जगाने का काम किया। ‘शक्ति’ अखबार का दो बार के संपादन किया। संपादन काल में ही मोहन जोशी एक जनवरी 1922 को गिरफ्तार किया गया। उन्हें 11 दिनों का कारावास भुगतना पड़ा।
तीन वर्ष के लिए हुआ कारावास
सन् 1921 के बागेश्वर मेले में ‘बेगार आन्दोलन’ जाते समय गिरफ्तार किया गया। सन् 1923 में शिवरात्रि के मेले के अवसर पर मोहन जोशी भिकियासैंण में धारा 144 के बावजूद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भाषण दिए। गए। इसके बाद वह 1924 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से लौटने के बाद फिर बागेश्वर पहुंचे और लोगों में जोश भरा।तीन वर्ष का कारावास उन्हें भुगतना पड़ा।
1930 में अल्मोड़ा पालिका पर फहराया तिरंगा
मोहन जोशी ने आजादी के लिए पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया था। 1930 में अल्मोड़ा नगर पालिका (वर्तमान महिला चिकित्सालय) में तिरंगा फहराने जा रहे मोहन जोशी ने अद्भुत साहस का परिचय दिया।
हाथ में तिरंगा लेकर जुल्म सहते रहे
नगरपालिका में 75 से अधिक गोरखा सिपाही मशीनगन, लाठियां लिए तैनात थे। धारा 144 के बावजूद मोहन जोशी अपने साथियों के साथ नगरपालिका परिसर में नारे लगाते हुए आ पहुंचे। सत्याग्रहियों को घेर कर सिपाहियों ने लाठियां बरसानी शुरू कर दीं। मोहन जोशी ने तब तक तिरंगा नहीं छोड़ा जब तक अचेत होकर गिर न पड़े।
4 अक्टूबर 1940 को ली अंतिम सांस
इस घटना के बाद वह बीमार रहने लगे। बीमार होने के बावजूद जनवरी 1932 में मोहन जोशी को बागेश्वर में धारा 144 तोड़ने और सरकार के विरुद्ध भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें छह माह की जेल व एक सौ रुपए अर्थ दण्ड को सजा सुनाई गई। आजादी के आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए 4 अक्टूबर 1940 में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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