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दावानल की वजह बने चीड़ के सूखे पिरूल को आइआइटी रुड़की बनाएगा बहुउपयोगी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की दावानल की वजह बने चीड़ के सूखे पिरूल को बहुउपयोगी संसाधन के रूप में विकसित करेगा।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 01:24 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 12:17 PM (IST)
दावानल की वजह बने चीड़ के सूखे पिरूल को आइआइटी रुड़की बनाएगा बहुउपयोगी
दावानल की वजह बने चीड़ के सूखे पिरूल को आइआइटी रुड़की बनाएगा बहुउपयोगी

किशोर जोशी, नैनीताल। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की दावानल की वजह बने चीड़ के सूखे पिरूल को न केवल बहुउपयोगी संसाधन के रूप में विकसित करेगा बल्कि उसे शोध के माध्यम से व्यावसायिक रूप से परिवर्तित करने के प्रयास होंगे। साथ ही वैल्यू चेन क्रिएशन भी किया जाएगा। आइआइटी प्रबंधन विभाग की इस परियोजना में नैनीताल निवासी अपर प्रमुख वन संरक्षक प्रशासन डॉ कपिल जोशी का चयन पोस्ट डॉक्टोरियल फेलोशिप के लिए हो गया है। उन्होंने चार्ज भी ग्रहण कर लिया है।

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2015 में डॉ जोशी ने आइआइटी में जलवायु परिवर्तन पर पीएचडी पूरी की। इस दौरान उन्होंने शोध अध्ययन के दौरान पिरूल से सीधे ईट बनाने की मशीन विकसित की थी। हस्तचालित इस मशीन में पिरूल से ईट बनाने में किसी प्रकार के रसायन, गोबर खाद, शीरा आदि का उपयोग नहीं करना पड़ता। इसी मशीन को आधार बनाकर आइआइटी रुड़की प्रबंधन विभाग के  वैज्ञानिकों की ओर से पायलट प्रोजेक्ट भारत सरकार में प्रस्तुत किया गया, जिसके क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार ने मंजूरी प्रदान कर दी है। यहां उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में पांच लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में चीड़ के जंगल हैं। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के मोटे अनुमान के अनुसार राज्य में सालाना 60 लाख टन पिरूल का उत्पादन होता है, जो हर साल दावानल की वजह बनता है।

कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद हुआ चयन

नैनीताल : पोस्ट डॉक्ट्रेट फेलोशिप के लिए देशभर के आइएफएस अधिकारियों द्वारा आवेदन किया गया था। कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद कपिल जोशी का चयन हुआ। मूलरूप से पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग तहसील के बयां गांव निवासी जोशी ने यांत्रिकी में बीटेक-एमटेक किया और 1992 बैच के आइएफएस हैं। वन सेवा के दौरान ही उन्होंने एमबीए व पीएचडी की। वह अल्मोड़ा डीएफओ के अलावा वन संरक्षक दक्षिणी व पश्चिमी वृत्त, मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं, वन निगम के आरएम पद पर कार्य कर चुके हैं।

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