'जानलेवा हमला करने वाले वन्यजीव को आत्मरक्षा के लिए मार सकता है इंसान', नैनीताल HC ने निस्तारित की जनहित याचिका
न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने आदमखोर वन्यजीव को मारने के मामले में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा-11 ए का अनुपालन सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं। साथ ही याचिका को निस्तारित कर दिया।वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा-11 ए के अनुसार मारने से पहले आदमखोर को चिन्हित किया जाना चाहिए। उसे ¨पजरे में कैद किया जाए अथवा ट्रेंकुलाइज किया जाए।

जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने गुरुवार को आदमखोर बाघ या गुलदार को सीधे मारने का आदेश दिए जाने के मामले में सुनवाई की। वन विभाग की ओर से कोर्ट में केस फाइल करके इसके लिए अनुमति मांगी गई थी। जहां से निराशा हाथ लगी। मालूम हो कि आदमखोर बाघ अथवा गुलदार के तीन लोगों को अपना निवाला बनाने के बाद विभाग की ओर से कोर्ट में केस फाइल करके इजाजत मांगी गई।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने आदमखोर वन्यजीव को मारने के मामले में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा-11 ए का अनुपालन सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं। साथ ही याचिका को निस्तारित कर दिया। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा-11 ए के अनुसार मारने से पहले आदमखोर को चिन्हित किया जाना चाहिए। उसे ¨पजरे में कैद किया जाए अथवा ट्रेंकुलाइज किया जाए। इसके बाद भी वह पकड़ में नही आता है तो उसे मारने के लिए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन की संस्तुति आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई जानवर इंसान पर जानलेवा हमला करता है तो आत्मरक्षा में वह उसे मार सकता है। यदि घटना घट चुकी है तो उस स्थिति में उस वन्यजीव को चिन्हित किया जाना आवश्यक है। जिससे निर्दोष वन्यजीव न मारे जाएं। भीमताल के मामले में सरकार की तरफ से कहा गया कि आदमखोर बाघिन थी। उसको ट्रेंकुलाइज कर लिया गया है। जिसकी फारेंसिक लैब से डीएनए रिपोर्ट आनी शेष है।
हाई कोर्ट लिया था स्वत: संज्ञान
बता दें कि दिसंबर में 19 दिन के भीतर भीमताल में दो महिलाओं व एक युवती को मारने वाले ¨हसक वन्यजीव को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन के आदेश का हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था।
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