Almora News: समाज के खोखले नियमों ने गुड्डी को दे दी नारी निकेतन की गुमनामी, 12 दिन में खत्म हो गया प्यार
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के दलित नेता जगदीश चंद्र की हत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जगदीश की हत्या के बाद उसकी विधवा हो चुकी पत्नी अब नारी निकेतन में है। बचपन से दुख झेल रही गीता उर्फ गुड्डी की नियति में आगे क्या है कोई नहीं जानता।

चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : जटिल रुढ़िवादी सामाजिक वर्जनाओं व सियायत के बीच गीता उर्फ गुड्डी नारी निकेतन की गुमनामी भरी जिंदगी जीने को मजबूर है। शादी के बाद पहली बार गुड्डी को लगा कि उसके जीवन में भी अब खुशी के दो पल आएंगे। लेकिन समाज के विकृत सोच वाले ठेकेदारों ने शादी के ठीक 12वें दिन बाद ही उसकी खुशियां छीन ली। दोष था प्यार करना और शादी के पवित्र बंधन में बंधना। एक बार फिर गुड्डी के सामने अंतहीन संघर्ष शुरु हो गया है।

उपपा नेता रहे जगदीश की विधवा है गीता
बात हो रही है कि उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के दलित नेता जगदीश चंद्र की विधवा 22 वर्षीय गीता उर्फ गुड्डी की। जगदीश, जिसकी उसके ससुराल वालों ने एक सितंबर को अपहरण कर हत्या कर दी थी, अब उसकी पत्नी दुखभरी जिंदगी जीने का मजबूर हो गई है।
बचपन से ही झेले दुख, सुख नहीं हुआ नसीब
गीता की दुखभरी कहानी बचपन से हुी शुरु हो गई थी। करीब 10 साल की उम्र में उसके पिता ने मां भावना देवी को छोड़ दिया था, जिसके बाद उसकी मां जोगा सिंह के साथ रहने लग गई। मां को तो पति मिल गया था, लेकिन गीता को कभी बाप नहीं मिल पाया। सौतेले बाप व भाई ने उसका बचपन ही छीन लिया। मारपीट आम थी। करीब 15 साल की उम्र में जब वह कक्षा 8 में पढ़ती थी तो स्कूल जाना भी बंद करा दिया गया। उससे घर का सारा काम कराया जाता।
(1).jpg)
मां ने की थी शादी के लिए हां
जब गुड्डी जवान हो गई तो घर में खतरे और बढ़ रहे थे। तब लाचार मां ने गुड्डी को अपनी पसंद की शादी करने की सलाह दी। करीब एक साल पहले वह दिन भी आ गया। उसकी मुलाकात जगदीश चंद्र से हुई। धीरे-धीरे बातचीत हुई और प्यार हो गया। लड़का अनुसूचित जाति का होने के बावजूद मां ने अपनी बेटी की भलाई के लिए हां बोल दिया।
जो डर था, वही हुआ
अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरी बार गुड्डी घर से जैसे-तैसे भाग गई और बीते 21 अगस्त को गैराड़ मंदिर में जगदीश से शादी कर ली। शादी के बाद जो डर था वही हुआ। जातिवादी साैतेले बाप व भाई ने दोनों को जान से मारने की धमकी दी। गुड्डी ने पुलिस, प्रशासन व अन्य सभी से सुरक्षा की गुहार लगाई। लेकिन कोई भी आने वाले खतरे को नहीं भांप पाया। बीते एक सितंबर को जगदीश की क्रूरता से भिकियासैंण के पास हत्या कर दी गई। गुड्डी की हत्या का भी प्रयास किया गया, मगर किस्मत से वह बच गई।
भविष्य क्या होगा, नहीं पता
कुछ चंद दिन ही डर के साये में उसके पास खुशियां आई थीं। पहले वह सौतेले बाप की काल कोठरी में थी, अब सरकारी चाहरदीवारी नारी निकतेन में। गर्म सियासत के बीच उसे नहीं पता कि उसका भविष्य क्या होगा। अब अकेले ही उसे सम्मानजनक जीवन जीने व अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना होगा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।