Holi 2022 : होलिका दहन पर भद्रा की छाया, मिलेगा सिर्फ एक घंटा 10 मिनट
होली 2022 3 मार्च को पूर्वाह्न 1020 बजे के बाद होली का चीर बंधन व रंग धारण होगा। इसके लिए सूर्यास्त तक का मुहूर्त रहेगा। आमलकी एकादशी व्रत 14 मार्च को करना शास्त्र सम्मत रहेगा।17 मार्च को रात्रि पुष्छकाल में होलिका दहन करना श्रेष्ठ रहेगा।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : इस बार होलिका दहन के लिए एक घंटा 10 मिनट का ही समय रहेगा। इसकी वजह इस दिन दोपहर 1:20 बजे से रात एक बजे बाद तक भद्रा योग रहेगा। भद्रा को अशुभ माना जाता है। पर्व निर्णय सभा उत्तराखंड ने मत दिया है कि रात्रि 9:04 बजे से 10:14 बजे तक जब भद्रा का पुच्छकाल रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है। शहर में 15 से अधिक जगहों पर होलिका जलेगी।
आने वाले पर्वों को लेकर स्थानीय पंचांगों में भिन्नता देखी गई है। पर्वों की एकरूपता को लेकर गुरुवार शाम पर्व निर्णय सभा की वर्चुअल माध्यम से बैठक हुई। आचार्य डा. जगदीश चंद्र भट्ट की अध्यक्षता में हुई बैठक में पंचांगों का अध्ययन करने के बाद संरक्षक डा. भुवन त्रिपाठी ने कहा कि 13 मार्च को पूर्वाह्न 10:20 बजे के बाद होली का चीर बंधन व रंग धारण होगा। इसके लिए सूर्यास्त तक का मुहूर्त रहेगा। आमलकी एकादशी व्रत 14 मार्च को करना शास्त्र सम्मत रहेगा। अध्यक्ष डा. जगदीश भट्ट ने कहा कि 17 मार्च को रात्रि पुष्छकाल में होलिका दहन करना श्रेष्ठ रहेगा।
छरड़ी यानी रंगों की होली 19 मार्च को रहेगी। पंचांगकार डा. रमेश चंद्र जोशी ने कहा कि पर्वों में एकरूपता लाने के लिए कुमाऊं के पंचांगकारों व विद्वानों को पंचांग प्रकाशन से पहले आपसी विमर्श से शास्त्र सम्मत निर्णय निकालना चाहिए। इससे समाज में असमंजस की स्थिति नहीं रहेगी। बैठक में सचिव डा. नवीन चंद्र जोशी, डा. मनोज पांडे, बसंत बल्लभ त्रिपाठी, आचार्य प्रमोद जोशी, उमेश त्रिपाठी, आचार्य हरीश जोशी आदि शामिल रहे।
ऐसे बनता है भद्रा योग
कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टीकरण का योग होता है। इस अवधि में भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है।
क्रोधी स्वभाव वाली हैं सूर्य पुत्री भद्रा
पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री व शनिदेव की बहन हैं। भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है। पंचांग के पांच प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र व करण होते हैं। विष्टि करण का नाम ही भद्रा है। मान्यता है कि ये तीनों लोगों में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक आती हैं तो अनिष्ट करती हैं।
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