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    आजादी के आंदोलन के दौरान नैनीताल की महिलाओं ने बापू को भेंट कर दिए थे अपने जेवर

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 07 Aug 2022 12:16 PM (IST)

    Azadi Ka Amrit Mahotsav 1929 में महात्मा गांधी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के आजादी आंदोलन को नया आयाम दे दिया। गांधी जी पहली बार हरिजन कल्याण कोष के लिए चंदा जुटाने आए थे। इस दौरान हल्द्वानी और नैनीताल में उनका भव्य स्वागत किया गया।

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    महात्मा गांधी की नैनीताल यात्रा ने यहां के आजादी आंदोलन को नया जीवन प्रदान किया।

    हल्द्वानी : आजादी के आंदोलन में नैनीताल शहर के विभिन्न वर्ग व समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महात्मा गांधी की नैनीताल यात्रा (Mahatma Gandhi in Nainital ) ने यहां के आजादी आंदोलन को नया जीवन प्रदान किया। गांधी जी 11 जून 1929 को कस्तूरबा गांधी, देवदास गांधी, प्यारे लाल, जवाहर लाल नेहरु, आचार्य कृपलानी, सुचेता कृपलानी के साथ साबरमती आश्रम से कुमाऊं के लिए रवाना हुए।

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    14 जून 1929 को को सुबह हल्द्वानी से रवाना होकर पूर्वाह्न 11 बजे नैनीताल आए। उनके रहने की व्यवस्था गोविंद लाल साह के मोती भवन ताकुला में की गई। गांधी जी पहली बार कुमाऊं दौरे पर हरिजन कल्याण कोष के लिए चंदा एकत्र करने के लिए आए थे। 14 जून की शाम पांच बजे गांधी के स्वागत में नैनीताल में भव्य जुलूस निकला। जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी।

    गांधी की सभा के लिए फ्लैट्स मैदान तय किया था, सभा में गोविंद बल्लभ पंत, गंगा दत्त मासीवाल, कुंवर आनंद सिंह, बच्ची लाल, इंद्र सिंह नयाल और महिलाओं में भागुली देवी सक्रिय रूप से शामिल रही। इस दौरान गांधी ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया।

    स्थानीय महिलाओं ने अपने आभूषण उतारकर गांधी को भेंट किए। उसी समय 1199 रुपये की थैली, व दो सौ रुपये के जेवर स्वयं एकत्रित कर गांधी जी काे भेंट किए। जिन महिलाओं को आभूषण उतारने में कठिनाई हुई, उनकी सहायता के लिए सुनार बुलाया गया।

    नमक सत्याग्रह के दौरान नेहरु की गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही नैनीताल में छात्रों ने राष्ट्रीय ध्वज लेकर जूलूस निकाला। जिसमें मथुरादत्त जोशी के अलावा अन्य दो छात्रों को गिरफ्तार किया गया। मथुरादत्त की मांने उन्हें इस साहसिक कार्य के लिए फूल माला पहनाई।

    कुछ महिलाओं ने इन छात्रों को जेल जाने से पहले तिलक लगाने व फूल माला पहनाने को आगे कदम बढ़ाए तो पास खड़ा ब्रिटिश अधिकारी कड़कती आवाज में बोला, सिपाहियोंं, इन महिलाओं को रोको, लेकिन भारतीय सिपाहियों ने महिलाओं के इस पवित्र कार्य में बाधा नहीं डाली और यह देखकर अंग्रेज अधिकारी पीछे हट गए। एक अंग्रेज अधिकारी ने महिला के हाथ से थाली छीनकर फेंक दी, उसे धक्का देकर अलग कर दिया तो इस पर महिलाएं अत्यधिक क्रोधित होकर गांधी की जय जयकार करने लगी।

    अप्रैल 1930 में नैनीताल में गाेविंद बल्लभ पंत के तल्लीताल स्थित मकान में महिलाओं की सभा हुई। जिसमें हरगोविंद पंत, गोविंद बल्लभ मौजूद थे। इस दौरान पंत ने महिलाओं को संबोधित करते हुए खद्दर धारण करने तथा राष्ट्रीय आंदोलन में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को कहा। आंदोलनकारी शांत बैठने वाले नहीं थे।

    पहली मई 1930 को पांच स्वयं सेवकों का एक दल वंदे मातरम , भारत माता की जय करता हुआ राष्ट्रीय ध्वज लेकर मल्लीताल को जा रहा था, भगीरथ पाण्डे हाथ में झंडा थामे थे, उनके पीछे हर गोविंद पंत थे। दल को उत्साहित करने के लिए महिलाओं ने अक्षत और पुरुषों की वर्षा कर सम्मान प्रदर्शित कर पुलिस ने दल को आगे नहीं बढ़ने दिया। चारों ओर से दल को घेर दियाा।

    आंदोलनकारी 28 घंटे तल्लीताल डाकखाने के निकट कैलाखान मार्ग पर डटे रहे। उनकी देशभक्ति देखकर महिलाएं बहुत प्रभावित हुई। नैनीताल की महिलाओं भागीरथी, लक्ष्मी, दुर्गा देवी, पदमा देवी, कुंती देवी वर्मा, तारा वर्मा, जानकी देवी साह, शकुंतला देवी, पार्वती, हेमा देवी, भगवती देवी, हंसा देवी, सावित्री देवी आदि ने आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।

    दिसंबर 1930 में पंडित जीबी पंत को छह माह की सजा के बाद रिहा किया गया। उनकी रिहाई की खुशी में विमला देवी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में महिलाओं ने पंत को माला पहनाई और उसके बाद अंग्रेजों के विरोध में राष्ट्रीय ध्वज लेकर मल्लीताल में एकसभा की। जिसमें गौर्दा के गीत को गाया गया।

    18 मई 1931 को गांधी शिमला से वापस नैनीताल पहुंचे और यह उनकी दूसरी कुमाऊं यात्रा थी। 20 मई को गांधी ने गर्वनर मेलकम हैली से राजभवन में भेंट की और मालगुजारी बंदियों की सूची पेश की। उसी दिन जानकी देवी, हरप्रिय, गंगा देवी, सरस्वती, आदि अन्य महिलाओं ने गांधी के सम्मान में तकली प्रतियोगिता आयोजित की।

    आंदोलन तेज होने के बाद प्रशासन के सिपाही नैनीताल की माल रोड को घेरे हुए थे। उनको देखकर महिलाएं भयभीत नहीं हुई। विमला देवी के नेतृत्व में करीब तीन सौ महिलाएं राष्ट्रीय ध्वज लेकर पुलिस के घेरे को चीरती हुई मल्लीताल को बढ़ती गई। महिलाओं के साहस के सामने

    सिपाहियों को उनका मार्ग रोकने की हिम्मत नहीं हुई। विमला देवी ने नौकरशाही शासन समाप्त करने के लिए हजारों रुपये की धनराशि एकत्रित की। महिलाओं ने घरों से निकलकर आजादी की लड़ाई में ताकत लगाओ कहती। अगले दिन सभा में महिलाओं की संख्या अधिक नजर आती थी।

    एक सभा में कुंती देवी ने कहा, यह समय हमारे लिए उठने मरने की घड़ी नहीं है, बहनों से प्रार्थना है कि अपने बाल बच्चों का ध्यान रखते हुए आजादी की लड़ाई को मजबूत करने के लिए जीजान लगा दें, समय आने पर एक सच्ची वीरांगना की भांति अपने जीवन का मोह त्यागकर अपने प्राणों की आहुति दे दें।

    इसके बाद हर दिन शहर में महिलाओं का जुलूस निकलता, नारे लगते, शासन प्रशासन परेशान हो जाता, महिलाएं गिरफ्तारियां दे रही थी, कुंती देवी वर्मा, खीमुली देवी, जानकी, सावित्री, खष्ट, मोहिनी, तारा, जानकी, भागुली, रधूली, हरिप्रिया, पनूली, शारदा देवी, गोदावरी, बिंदेश्वरी, बसंती, लीलावती, गंगा, चंपा, कला, नंदा देवी, हीरा, बसंती, चंद्रा, सरस्वती समेत दर्जनों महिलाएं आंदोलन को धार दे रही थी। तब महिलाएं गाती थी।

    कटे लियो गुलामी बटि आपण नाम बलम

    अंग्रेजी राज में शासन की चेतावनी की परवाह किए बिना सरस्वती देवी के नेतृत्व में महिला आंदोलनकारियों ने तल्लीताल से मल्लीताल तक गई तो उनको गिरफ्तार कर लिया गया। महिलाओं ने नैनीताल राजभवन में भी सतयाग्रह कर दिया।

    इस अवधि में सरकार की घबराहट व जल्दबाजी का अनुमान इससे लगाया जा सकता था कि गिरफ्तार तल्लीताल की सावित्री को करना था तो मल्लीताल की सावित्री को गिरफ्तार कर देते थे। 15 अगस्त को देश आजाद हुआ तो नैनीताल की महिलाओं ने खुशी मनाते हुए बताशे बांटे।

    नोट: यह आलेख कुमाऊं विवि इतिहास विभाग की एचओडी प्रो. सावित्री कैड़ा जंतवाल ने दैनिक जागरण को उपलब्ध कराया है।