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    अस्कोट वंश ने 1914 में शुरू किया था जौलजीबी मेले का शुभारंभ, अब नेपाल करने लगा अलग आयोजन

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 20 Nov 2022 11:51 AM (IST)

    History of Jauljibi Mela उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में लगने वाला जौलजीबी मेला भारत नेपाल की साझी विरासत है। भारतीय क्षेत्र में मेला का शुभारंभ 14 नवंबर को सीएम धामी ने किया था। नेपाल क्षेत्र में मेला 22 नवंबर से शुरू होगा। चलिए जानते हैं क्या है मेला का इतिहास।

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    अस्कोट के पाल राजा गजेंद्र बहादुर पाल ने 1914 में जौलजीबी मेला प्रारंभ किया था।

    नैनीताल, स्कंद शुक्ल : History of Jauljibi Mela : उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भारत नेपाल सीमा पर काली और गोरी नदी के संगम स्थल पर अंतरराष्ट्रीय जौलजीबी मेला शुरू हो चुका है। आज मेले का सातवां दिन है। मेले में उमड़ रही भीड़ से व्यापारियों के चेहरे खिले हैं।

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    रविवार के कारण आज मेले में बड़ी तादाद में लोगों की भी उमड़ने की संभावना है वहीं सोमवार की सुबह अंतरराष्ट्रीय पुल खुलने पर नेपाल से भी मेलार्थियों के भी पहुंचने के आसार हैं। 22 नवंबर को नेपाल में भी मेले का शुभारंभ होगा। चलिए जानते हैं मेले का इतिहास।

    जौलजीबी मेले का इतिहास

    • बींसवी सदी के शुरुआत में अस्कोट के पाल राजा गजेंद्र बहादुर पाल ने 1914 में जौलजीबी मेला प्रारंभ किया था। तब यह क्षेत्र अति दुर्गम था। यहां से सामान खरीदने के लिए लोगों को पैदल अल्मोड़ा या टनकपुर जाना पड़ता था।
    • स्थानीय जनता को मेले में एक साथ साल भर के लिए जरूरत का सामान मिले, इसके लिए गजेंद्र पाल ने तल्ला-मल्ला अस्कोट के केंद्र बिंदु जौलजीबी में मेला आयोजित करने का निर्णय लिया।
    • मेले के लिए आगरा, मथुरा, बरेली, दिल्ली, रामपुर मुरादाबाद, मेरठ, काशीपुर, रामनगर , अल्मोड़ा, हल्द्वानी और टनकपुर के व्यापारियों को आमंत्रित किया गया।
    • मित्र राष्ट्र नेपाल और पड़ोसी देश तिब्बत के व्यापारियों को बुलाया गया। नेपाल, तिब्बत से भी व्यापारियों और मेलार्थियों के पहुंचने से मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो गया।
    • देखते ही देखते यह मेला उत्त्तर भारत के प्रमुख मेले में शामिल हो गया। मेला एक माह तक लगता था। वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद तिब्बत की सहभागिता समाप्त हो गई थाी।
    • तीस साल बाद भारत-चीन व्यापार प्रारंभ होने के बाद फिर से भारतीय व्यापारी तिब्बती सामान की दुकानें लगाने लगे। लेकिन कोविड के बाद से तिब्बती कारोबारी नहीं आ रहे हैं।
    • बीते चार वर्ष से नेपाल में भी मेले का उद्घाटन अलग होने लगा है। भारत में बाल दिवस पर तो नेपाल में मार्गशीर्ष संक्रांति पर मेले का उद्घाटन होने लगा है।
    • 2019 में जौलजीबी मेले में भारत क्षेत्र में भारत चीन व्यापार से आयातित सामान की डेढ़ सौ से अधिक दुकानें लगी थीं। नेपाल में भी तिब्बती सामान की काफी अधिक संख्या में दुकान लग चुकी हैं।

    स्थानीय ऊनी वस्त्रों की भी रहती है मांग

    Pal dynasty started Jauljibi Mela : अतीत में जौलजीबी मेले में स्थानीय बुनकरों द्वारा निर्मित ऊनी उत्पाद भी मेले में पहुंचा है। जिसमें दन, चुटका, पंखी और पस्मीना, छोटे ऊनी आसन, सोफासेट के ऊनी कवर सहित अन्य सामान हैं। अलबत्त्ता तिब्बत से आयातित चुरु कंबल के चलते इनकी मांग कम है। मेले में लकड़ी के बर्तन पहुंचे हैं। प्रतिवर्ष मेले में आने वाले मैदान से हलवाई भी पहुंचे हैं। मुरादाबाद से बर्तन, काशीपुर, रामपुर और बरेली से गद्दे, रजाई के व्यापारी भी पहुंचे हैं ।

    नेपाल में चुनाव के कारण 22 से शुरू हुआ मेला

    नेपाल में चुनाव के कारण इस वर्ष मेला विलंब 22 नवंबर से शुरू होगा। चुनाव के कारण 72 घंटे से भारत नेपाल सीमा सील है। कल यानी 21 नवंबर सोमवार को सीमा खुल जाएगी। वहीं 22 नवंबर को नेपाल क्षेत्र में मेले का शुभारंभ हो होगा। जिसके बाद उस हिस्से में भी चहल-पहल बढ़ जाएगी।

    काले भट्ट से लेकर काला राजमा बिकने पहुंचा

    स्थानीय उत्पादों में अब पूर्व की भांति काफी कमी आ चुकी है। सीमित मात्रा में काले भट्ट, पहाड़ी उड़द, काला और रंग विरंगा राजमा, जम्बू, गंधारयण, सूखी मूली सहित अन्य सामान पहुंचा है। जो काफी सीमित मात्रा में है। सबसे विशिष्ट माना जाने वाला काला राजमा तीन सौ रुपए किलो बिक रहा है।