नाबालिग से दुष्कर्म मामले में दोष सिद्धि के फैसले को हाई कोर्ट ने किया रद, आरोपित को तत्काल रिहा करने का आदेश
नैनीताल हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुराचार के मामले में निचली अदालत के दोषसिद्धि के फैसले को रद्द कर दिया है। अदालत ने अभियोजन पक्ष को संदेह से परे मामला साबित करने में विफल पाया। गवाहों के बयानों में विरोधाभास और पीड़िता के गर्भधारण की कहानी में असंगति पाई गई। अदालत ने जांच अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए और जांच को दोषपूर्ण करार दिया।

स्पेशल जज पोक्सो/जिला एवं सत्र न्यायाधीश टिहरी गढ़वाल की ओर से पारित दोषसिद्धि के निर्णय को रद किया। आर्काइव
जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने नाबालिग किशोरी के साथ दुराचार के मामले में स्पेशल जज पोक्सो/जिला एवं सत्र न्यायाधीश टिहरी गढ़वाल की ओर से पारित दोषसिद्धि के निर्णय को रद करते हुए आरोपित को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। अपीलकर्ता कृष्णा उर्फ बासु को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376(3) और 506 के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने मामले से संबंधित अपील पर सुनवाई पूरी कर 30 अगस्त 2025 को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने अपने विस्तृत विश्लेषण में यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष मामले को उचित संदेह से परे सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा। पूरा मामला केवल प्रवृत्तियों की बहुलता पर आधारित था, जो किसी भी आपराधिक दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए अपर्याप्त है।
हाई कोर्ट के सामने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास प्रकट हुआ था। पीड़िता की मां, पिता और स्वयं पीड़िता ने कथित घटना की तारीखों और घटना से पहले के घटनाक्रमों के बारे में अलग-अलग और परस्पर विरोधी बयान दिए। उदाहरण के लिए मां ने कहा कि उसने छह मई 2020 से आरोपित को ट्यूशन के लिए आने से मना कर दिया था, जबकि पीड़िता ने यौन संबंध सात, आठ और नौ मई को होने की बात कही। पिता ने तो 12 मई 2020 को आरोपित को ट्यूशन देने की अनुमति देने की बात कही, जबकि पीड़िता ने घटना इससे पहले की बताई।
दोषसिद्धि को कमजोर करने वाला एक और महत्वपूर्ण कारक पीड़िता के गर्भधारण और जहर सेवन की कहानी की असंगति थी। जहां पीड़िता के पिता ने दावा किया कि अस्पताल में इलाज के दौरान ज़हर सेवन के कारण गर्भपात हो गया। मेडिकल जांच करने वाली डाक्टर ने अपने बयान में कहा कि जांच के समय पीड़िता गर्भवती नहीं पाई गई और उसने पैरा वजाइनल जांच से इन्कार कर दिया था। बचाव पक्ष के गवाह और अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट ने भी पुष्टि की कि पीड़िता गर्भवती नहीं थी। इसके अलावा जहर सेवन के मामले में भी, पुलिस या डाक्टरों की ओर से कोई निर्णायक मेडिकल रिपोर्ट या महत्वपूर्ण सबूत कथित तौर पर टूटे हुए बाथरूम के दरबाजे की कुंडी बरामद नहीं की गई।
खंडपीठ ने पाया कि पीड़िता की उम्र के संबंध में प्रस्तुत साक्ष्यों में भी विसंगति थी। स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 21 अगस्त 2004 दर्ज थी, जबकि माध्यमिक विद्यालय परीक्षा मार्कशीट में यह 19 अक्टूबर 2005 थी। इन विरोधाभासों ने पोक्सो अधिनियम के तहत नाबालिग होने के प्रमाण पर ही संदेह पैदा कर दिया। अदालत ने जांच अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए और जांच को दोषपूर्ण करार दिया। जांच अधिकारी ने स्वीकार किया कि घटना के स्थान का नक्शा पीड़िता को वहां ले जाए बिना ही तैयार किया गया था, और जहर सेवन के मामले में पीड़िता के कपड़े जैसे महत्वपूर्ण साक्ष्य भी जब्त नहीं किए गए थे। इस तरह की लापरवाह जांच ने अभियोजन पक्ष के पूरे मामले की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।