नैनीताल झील में गंदा पानी छोड़ने के मामले में हाई कोर्ट सख्त, पीसीबी से मांगी रिपोर्ट
नैनीताल उच्च न्यायालय ने होटल संचालकों द्वारा गंदे पानी को नैनीताल झील में डालने के मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) से रिपोर्ट तलब की है। अदालत ने पीसीबी को 11 जुलाई तक अलग-अलग रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। होटल संचालकों ने जुर्माने को माफ करने की मांग की है जबकि पीसीबी का कहना है कि होटल संचालक नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं।

जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने नैनीताल में होटल संचालकों की ओर से गंदे पानी को झील में गिरने वाले नालों में डालने, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं करने, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी अल्पकालीन नोटिस के बाद लगाए जुर्माने को माफ करने संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अगली तिथि तक उपरोक्त मामलों में अलग-अलग रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
मामले में अगली सुनवाई को 11 जुलाई की तिथि नियत की है। इस दौरान पीसीबी की ओर से कहा गया कि होटल संचालकों की ओर से पीसीबी व एनजीटी के नियमों, दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया। जांच करने पर कई तरह की खामियां पाई गई, पर्यावरण को हुई क्षति के अनुसार जुर्माना लगाया गया। पीसीबी ने नैनीताल में 16 होटलों को नोटिस दिया है। उसमें से चार होटल स्वामियों के उस राशि को जमा कर अपनी लाइनें दुरस्त की, अन्य ने नहीं।
जिसपर कोर्ट ने पीसीबी से कहा है कि जितने होटलों को नोटिस दिया है, उनकी क्षमता के अनुसार ब्यौरा अलग- अलग रिपोर्ट बनाकर कोर्ट में पेश करें। होटल स्वामियों की तरफ से कहा गया कि उन्होंने पीसीबी व एनजीटी के नियमों का अनुपालन किया है। होटलों के सीवरेज का पानी नालों में नही डाला जा रहा है, जबकि होटल सीवरेज लाइनों से जुड़े हुए है। नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है, इसलिए जुर्माना माफ किया जाए।
पीसीबी पर आरोप है कि कुछ होटल स्वामियों पर सीवरेज का पानी नाले में डाले जाने पर भारी भरकम जुर्माना लगाया है जबकि पीसीबी ने ही अपनी जांच रिपोर्ट में माना है, इन होटलों के सीवरेज कनेक्शन सीवर लाइन से जुड़े हुए है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि सीवर लाइन कनेक्शन लेने के लिए केवल तीन दिन का ही समय दिया गया। इसके बाद सीवर कनेक्शन के लिए आवेदन कर दिया गया। याचिका में कहा गया है कि आवेदन को स्वीकार करते हुए उन्हें राहत दी जानी चाहिए।
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