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    Uttarakhand PCS Mains से बाहर हुईं दूसरे राज्य की महिलाओं के हक में हाई कोर्ट का अहम फैसला

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 30 Aug 2022 11:32 AM (IST)

    उत्तराखंड पीसीएस मेंस एग्‍जाज से बाहर हुईं दूसरे राज्य की महिलाओं के ल‍िए हाई कोर्ट ने नए सिरे से कटआफ लिस्ट तैयार करने के निर्देश हैं ताकि आरक्षण की ...और पढ़ें

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    उत्तराखंड पीसीएस से बाहर हुईं दूसरे राज्य की महिलाओं के हक में हाई कोर्ट का अहम फैसला

    नैनीताल, जागरण संवाददता : Uttarakhand PCS mains exam : उत्तराखंड पीसीएस मेंस से बाहर हुईं दूसरे राज्य की महिलाओं के हक हाई कोर्ट ने दिया अहम फैसला दिया है।

    हाई कोर्ट नैनीताल ने राज्य लोक सेवा आयोग की अपर सम्मिलित प्रवर सेवा में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की वजह से बाहर हुई महिलाओं के मामले में दिया अहम आदेश।

    कोर्ट ने नए सिरे से कटआफ लिस्ट तैयार करने के निर्देश हैं, ताकि आरक्षण की वजह से न्यूनतम कटआफ से अधिक अंक वाली राज्य के बाहर की महिला अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा में बैठने का अवसर मिल सके।

    बीते दिनों हाई कोर्ट नैनीताल ने राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आयोग की मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति देने को कहा था।

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    अक्टूबर में मुख्य परीक्षा में बैठने मांगी थी अनुमति

    बीते दिनों हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरएस खुल्बे की खंडपीठ ने सुनवाई की थी। याचिका में आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अंतरिम अनुमति मांगी गई थी।

    26 मई को आया था प्रिलिंस का रिजल्ट

    याचिकर्ताओं के अनुसार उच्च विभिन्न विभागों के दो सौ से अधिक पदों के लिए प्रारंभिक परीक्षा का 26 मई 2022 को परिणाम आया। परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट आफ लिस्ट निकाली गई। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट आफ 79 थी, जबकि याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया।

    क्षैतिज आरक्षण को बताया था असंवैधानिक

    याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कहा था कि राज्य सरकार की ओर से 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है।