नैनीताल हाई कोर्ट के आदेशों का पालन न होने पर अवमानना याचिकाओं की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान में एक हजार से अधिक मामले लंबित हैं। उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण और चमोली जिपं प्रशासक की नियुक्ति जैसे मामलों में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही कार्रवाई हुई। अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने न्यायिक आदेशों के समय पर अनुपालन की आवश्यकता पर जोर दिया।
किशोर जोशी, नैनीताल। राज्य में हाई कोर्ट के आदेशों का भी अनुपालन नहीं हो रहा है। इस वजह से याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट में ही अवमानना याचिका दायर करनी पड़ रही हैं। उसमें भी तारीख पर तारीख के बाद ही वादकारियों को न्याय मिल पा रहा है।
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स्थिति यह है कि हाई कोर्ट में वर्तमान में विचाराधीन अवमानना याचिकाओं की संख्या एक हजार पार कर गई है। प्रदेश में सरकारी तंत्र हाई कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन को लेकर गंभीर नजर नहीं है। कोर्ट के सख्त निर्देशों के अनुपालन के लिए याचिकाकर्ताओं को फिर से हाई कोर्ट में ही दस्तक देनी पड़ रही है।
नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रीड के ताजा आंकड़ों के अनुसार अवमानना के अधिकांश मामले राज्य सरकार से संबंधित हैं।
उपनल कर्मचारियों को इंतजार
हाई कोर्ट के साथ ही सुप्रीम कोर्ट से राज्य में उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर निर्णय हो चुका है। इसके बाद भी इन कर्मचारियों को नियमितीकरण नहीं हुआ। जिसके बाद कर्मचारियों ने अवमानना याचिका दायर की तो आठ मई को हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया है।
सेवानिवृत होने के एक दिन पहले मिली पदोन्नति
महिला एवं बाल विकास विभाग की उपनिदेशक सुजाता को 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त होने से एक दिन पहले संयुक्त निदेशक पद पर पदोन्नति मिली। हाई कोर्ट से विभागीय सचिव को अवमानना नोटिस जारी होने के बाद महिला अधिकारी को न्याय मिला जबकि पदोन्नति चार साल से लटकी थी।
चमोली जिपं प्रशासक को मिली कुर्सी
अवमानना याचिका दायर होने के बाद ही चमोली की निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी को प्रशासक नियुक्त किया गया। आदेश का अनुपालन नहीं करने पर हाई कोर्ट ने डीएम चमोली व पंचायती राज सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया था।
अवमानना नोटिस का दसवां मामला
चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी के प्रकरण में केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को दस बार अवमानना नोटिस जारी किया गया। 21 मई 2025 को नैनीताल हाई कोर्ट ने कैबिनेट सचिव सहित केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव व अन्य को तो अक्टूबर 2024 में केंद्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव को नोटिस भेजा गया।
मार्च 2024 व सितंबर 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआइ के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को, फरवरी 2023 में कैट की ओर से केंद्रीय वन व पर्यावरण सचिव को भी अवमानना नोटिस जारी किया गया । इसके अलावा फरवरी 2019 में नैनीताल हाई कोर्ट ने तत्कालीन कैट चेयरमैन को, जुलाई 2019 में नैनीताल हाई कोर्ट ने ही तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया था।
हाई कोर्ट में करीब 57 हजार मामले लंबित
नैनीताल हाई कोर्ट में करीब 57 हजार मामले लंबित हैं। इसमें जमानत से संबंधित मामले 1580, अवमानना याचिकाएं 1154, चुनाव याचिकाएं चार, सरकार की याचिकाएं 1370, आदेशों को चुनौती देती याचिकाएं 4159, हैबीस कार्पस 15,जेल से संबंधित 564, कंपनी की नौ, आर्बिट्रेशन की 69, सर्विस मामले में 9312, विशेष विषय से संबंधित 1190 और जनहित याचिकाएं 797 लंबित हैं।
न्यायिक आदेशों का तय समयसीमा पर अनुपालन नहीं होना गंभीर हाई कोर्ट के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली का कहना है कि अधिकांश अवमानना याचिकाओं के दायर होने का कारण जिम्मेदार अधिकारियों की ओर से न्यायिक आदेशों का समय सीमा के अंतर्गत अनुपालन नहीं किया जाना ही है।
तीन जनवरी 2025 को केंद्रीय कानून मंत्री की ओर से केंद्र सरकार के विरुद्ध ही सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में 1.45 लाख अवमानना याचिकाएं लंबित होने पर गहरी चिंता जताते हुए सभी मंत्रालयों और विभागों को पत्र जारी करके न्यायिक आदेशों का समयबद्ध अनुपालन करने का निर्धारित तंत्र बनाने के आदेश दिए थे।
राज्य सरकार के विभागों और संस्थानों में कोर्ट के आदेशों की तकनीकी शब्दावली समझ पाने में विफलता, कई बार जानबूझकर की गई देरी उदासीनता आदि के कारण अवमानना की स्थिति उत्पन्न होती है।
अक्सर अवमानना याचिका दायर करने के बाद आश्चर्यजनक रूप से उन्हीं आदेशों का अनुपालन अधिकारी कर देते हैं, जिनके प्रति वह पूर्व में उदासीन रहे। तब उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय होने की नौबत होती है।
ऐसे में मजबूरी में अवमानना याचिका दायर करने से न सिर्फ आम वादी का समय और धन जाया होता है बल्कि पूर्व से ही बोझ से लदी अदालतों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है बल्कि वादी को मिले हुए न्याय का लाभ भी देरी से प्राप्त हो पाता है।
यदि सरकारों के स्तर पर आदेशों के स्वतः और समयबद्ध अनुपालन का संस्थागत तंत्र विकसित किया जाए तो इससे न सिर्फ प्रशासनिक कार्यक्षमता बढ़ेगी बल्कि अदालतों से अनावश्यक बोझ हटेगा और लोगों को न्याय का वास्तविक लाभ मिलने से आमजन का न्याय व्यवस्था पर विश्वास और भी ज्यादा मजबूत होगा।
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