उत्तराखंड में खनन की नीतिगत अधिसूचना को हाई कोर्ट ने किया रद, सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी
हाई कोर्ट ने उत्तराखंड की खनन नियमावली के अंतर्गत निजी नाप भूमि पर चुगान की अनुमति देने से संबंधित नीतिगत अधिसूचना को रद कर दिया है। कोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने की तैयारी कर चुकी है।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने उत्तराखंड की खनन नियमावली के अंतर्गत निजी नाप भूमि पर चुगान की अनुमति देने से संबंधित नीतिगत अधिसूचना को रद कर दिया है। कोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने की तैयारी कर चुकी है।
कोर्ट ने टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के आधार पर अधिसूचना को रद किया है। साथ ही टिप्पणी की है कि उत्तराखंड राज्य अपने मूल्यवान संसाधन का दोहन कर रहा है लेकिन इसका लाभ सरकार को नहीं हो रहा है।
हल्द्वानी निवासी सतेंद्र तोमर ने याचिका दायर कर सरकार की नई खनन नीति को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि नई नीति की वजह से खनन पट्टाधारकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। निजी नाप भूमि पर निजी व्यक्तियों को खेत समतलीकरण के बहाने चुगान तथा स्टोन क्रशर संचालकों को रिसाइक्लिंग की अनुमति देने से उनको नुकसान हो रहा है।
नीलामी में बोली लगाने वाले पट्टाधारकों को बेहद अधिक दाम में रिवर बेड मैटीरियल आरबीएम बेचना पड़ रहा है, हर साल दस प्रतिशत रॉयल्टी बढ़ रही है जबकि निजी नाप भूमि के पट्टाधारक 70 से 85 रुपये प्रतिटन के हिसाब से खनन सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। इससे सरकार को राजस्व की भारी हानि हो रही है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि नैनीताल जिले में इस अधिसूचना के आधार पर 43 लाइसेंस दिए गए, जो करीब 360 करोड़ के हैं जबकि ऊधमसिंह नगर जिले में 160 करोड़ के निजी खनन पट़टे दिए गए हैं। सरकार को नैनीताल-ऊधमसिंह नगर समेत अन्य जिलों से नई अधिसूचना के तहत निजी नाप भूमि पर चुगान की अनुमति देने से करीब दो हजार से अधिक करोड़ राजस्व का नुकसान हुआ है।
याचिकाकर्ता को 460 रुपये प्रति टन आरबीएम की बोली लगानी पड़ी जबकि निजी पट्टेधारक को 70 से 85 रुपये प्रतिटन में। खनन महानिदेशक को लाखों टन खनन सामग्री के चुगान की अनुमति देने की शक्ति प्रदान कर दी गई। राज्य सरकार की ओर से पिछले साल अक्टूबर में यह नोटिफिकेशन जारी किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद पिछले साल अक्टूबर में जारी नीतिगत अधिसूचना को रद कर दिया। 30 सितंबर को पारित 18 पेज के आदेश की प्रति गुरुवार को प्राप्त हुई है।