Move to Jagran APP

पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई जारी

हाइकोर्ट ने पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई कल भी जारी रखी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 26 Feb 2020 01:08 PM (IST)Updated: Wed, 26 Feb 2020 01:08 PM (IST)
पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई जारी
पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई जारी

नैनीताल, जेएनएन : हाइकोर्ट ने पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर न्यायमुर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खण्डपीठ में सुनवाई जारी है। याचिका नैनीताल निवासी प्रोफेसर अजय रावत की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा है कि सरकार ने एक 19 फरवरी 2020 को एक नया आदेश जारी कर पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखा है। इससे पहले भी सरकार ने 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले वनों को वन नहीं माना था जिसे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी परन्तु सरकार ने अपने आदेश में संशोधन कर 10 हेक्टेयर से पांच हेक्टेयर कर दिया। मामले में सुनवाई कल भी जारी रहेगी।

loksabha election banner

याचिका में यह अपील भी शामिल

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि फारेस्ट कन्जर्वेशन एक्ट 1980 के अनुसार प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र घोषित है जिसमें वनों की श्रेणी को भी विभाजित किया हुआ है लेकिन इसके अलावा कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनको किसी भी श्रेणी में  नहीं रखा गया। याचिककर्ता यह भी कहना है कि इन क्षेत्रों को भी वन क्षेत्र की श्रेणी सामिल किया जाए और जिससे इनके दोहन या कटान पर रोक लग सके।

मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के अपने आदेश गोडा वर्मन बनाम केंद्र सरकार में कहा है कि कोई भी वन क्षेत्र चाहे उसका मालिक कोई भी हो उनको वनों की क्षेत्र के श्रेणी में रखा जाएगा और वनों का अर्थ क्षेत्रफल या घनत्व से नहीं है। विश्वभर में भी जहां 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़ पौधे हैं या उनका घनत्व 10 प्रतिशत है तो उनको भी वनों की श्रेणी में रखा गया है। सरकार के इस आदेश पर वन एवं पर्यारण भारत सरकार ने कहा है कि प्रदेश सरकार वनों की परिभाषा न बदलें। उत्तराखण्ड में 71 प्रतिशत वन होने कारण कई नदियों व सभ्यताओं के अस्तित्व बना हुआ है।

यह भी पढ़ें : पूर्व मुख्‍यमंत्रियों के बकाया माफी पर फाइनल सुनवाई दो मार्च को 

यह भी पढ़ें : रिसेप्‍शन से लौट रहे लोगों की कार खाई में गिरी, हादसे में तीन की मौत, चालक की हालत गंभीर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.