Nainital: भीमताल में कई दशकों से मनाया जाता है 'हरेला मेला'... पहले 'धान की खेती' के लिए था प्रसिद्ध मेला स्थल
संपूर्ण प्रदेश को धार्मिक प्रदेश की संज्ञा भले ही दी गई हो लेकिन हरेला मेले का गवाह भीमताल वह चंपावत की धरा ही बनती है। यहां मेले का भव्य आयोजन होता है। पूर्वजों के अनुसार हल्द्वानी अमीरों की नगरी थी वहीं से इस मेले की शुरुआत हुई थी। पहले हरेला मेला डांठ के ऊपर स्थित हरेले खेत में मनाया जाता था ।

जागरण टीम, भीमताल। संपूर्ण प्रदेश को धार्मिक प्रदेश की संज्ञा भले ही दी गई हो लेकिन 'हरेला मेला' का गवाह भीमताल वह चंपावत की धरा ही बनती है। यहां मेले का भव्य आयोजन होता है। पूर्वजों के अनुसार, हल्द्वानी अमीरों की नगरी थी, वहीं से इस मेले की शुरुआत हुई थी।
मेले का इतिहास
नौकुचिया ताल निवासी पंडित रविंद्र कर्नाटक कहते हैं कि भीमताल के इस मेले के इतिहास में लिखी दस्तावेज तो नहीं है पर पूर्वजों की मानें तो पहले हल्द्वानी नगरी मालदारों की नगरी के नाम से विख्यात थी। अमीर लोग हर त्योहार को संपन्नता से मनाते थे। इसी से लगे भीमताल में काश्तकार इनके संपर्क में आए और संपन्न ना होने के कारण सहभागिता से यह निर्णय लिया कि एक ऐसा त्योहार मनाया जाए जिसमें क्षेत्र के सभी लोग शामिल हों। उसी का रूप यह माना जाता है।
'धान की खेती' के लिए था प्रसिद्ध
कर्नाटक कहते हैं कि मेले का जितना प्रचार-प्रसार होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया। भीमताल में पहले आणु का मैदान, वर्तमान में विकास भवन नाम का स्थान 'धान की खेती' के लिए प्रसिद्ध था। इस समय यहां धान की रोपाई की जाती थी तो उसमें कई लोग शामिल होते थे। इसी ने धीरे-धीरे मेले का स्वरूप ले लिया।
पहले हरेला मेला डांठ के ऊपर स्थित हरेले खेत में मनाया जाता था और इस स्थान से आणु के हरे भरे खेत साफ दिखाई देते थे।

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