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उम्र के आखिरी पड़ाव में ज्ञान सिंह कुलौरा ने अपनी खेती को रासायनिक खाद से मुक्‍त किया

जिस उम्र में इंसान का हौसला जवाब देने लगता है उस अवस्था में पहुंचने पर जैविक खेती के प्रति 84 साल के ज्ञान सिंह कुलौरा का हौसला सातवें आसमान पर है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 06:39 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 06:39 PM (IST)
उम्र के आखिरी पड़ाव में ज्ञान सिंह कुलौरा ने अपनी खेती को रासायनिक खाद से मुक्‍त किया
उम्र के आखिरी पड़ाव में ज्ञान सिंह कुलौरा ने अपनी खेती को रासायनिक खाद से मुक्‍त किया

हल्द्वानी, सतेंद्र डंडरियाल : जिस उम्र में इंसान का हौसला जवाब देने लगता है उस अवस्था में पहुंचने पर जैविक खेती के प्रति 84 साल के ज्ञान सिंह कुलौरा का हौसला सातवें आसमान पर है। लाठी टेक कर चलते हैं और स्वयं फसलों की देखभाल करते हैं। दस वर्ष की अथक मेहनत के बाद उन्होंने अपनी कुल तीस बीघा भूमि में से दस बीघा जमीन को पूरी तरह रसायनिक खाद से मुक्त कर जैविक किया, शेष भूमि को भी वह जैविक बनाने में पूरी लगन के साथ जुटे हुए हैं। साथ ही अपने आसपास के किसानों को आर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

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मूलरूप से नैनीताल जिले के फुटगांव विकासखंड ओखलकांडा के रहने वाले ज्ञान सिंह वर्तमान में गौलापार पदमपुर में रहते हैं। 1994 में स्वास्थ्य विभाग से प्रभारी फार्मेसी अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। कृषि के प्रति उनके  जबरदस्त लगाव का ही नतीजा है कि इस उम्र में भी वह रसायनिक खेती छोड़ जैविक कृषि करने वाले किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उस स्थिति में जब पूरे प्रदेश में जैविक खेती पर बड़ी-बड़ी बातें तो की जा रही हैं लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आ रहा है ज्ञान सिंह जैविक के प्रति उम्मीद जगाते हैं।

12 पूर्व की शुरुआत, मिलने लगा परिणाम 

ज्ञान सिंह बताते हैं कि उन्होंने 12 वर्ष पूर्व जैविक खेती करने का संकल्प लिया। साथ ही इसकी बुनियाद रख दी थी, लेकिन घर की कुछ विषम परिस्थितियों से उन्हें इसे बीच में रोकना पड़ा। हिम्मत नहीं हारी और फिर से कोशिश की। आखिरकार मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे परिणाम सामने आने लगे। आसपास के लोग अब उनके जैविक खेती प्रदर्शन को देखने के लिए आते हैं।

गोमूत्र का करते हैं इस्तेमाल 

रासायनिक दवाओं का प्रयोग बंद करने के बाद ज्ञान सिंह ने वेस्ट डी कंपोजर (जैविक कचरे को खाद में बदलने की दवा) तथा गोमूत्र पंचगव्य का प्रयोग शुरू किया। लगातार तीन साल तक इसका इस्तेमाल करने के बाद खेती पूरी तरह से जैविक हो गई। उन्होंने बताया कि अब वह अपनी शेष जमीन को भी जैविक बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। घर में आने वाले हर किसान को वह अपनी इस विधि से अवगत कराते हैं।

तैयार किया जैविक मटर व गेहूं

वर्तमान रबी सीजन में ज्ञान सिंह अपने खेतों में मटर, चना तथा गेहूं की जैविक खेती की है। जिसमें किसी प्रकार की रासायनिक खाद व दवा का प्रयोग न करते हुए केवल जैविक उर्वरक इस्तेमाल किया गया।

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