आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने दिन रात एक कर तैयार की डीएफओ के भ्रष्टाचार की रिपोर्ट, शासन को हटाने में लग गए दो साल
चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी द्वारा जांच फाइनल करने के बावजूद शासन को तत्कालीन डीएफओ एके गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने में दो साल लग गए।
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी द्वारा जांच फाइनल करने के बावजूद शासन को तत्कालीन डीएफओ एके गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने में दो साल लग गए। भ्रष्टाचार की यह रिपोर्ट तैयार करने में अधिकारियों व वनकर्मियों की 40 सदस्यीय टीम को करीब दो महीने का समय लगा था। जांच टीम में चंपावत वन प्रभाग के किसी भी स्टाफ को शामिल नहीं किया गया। क्योंकि इससे जांच भटक सकती थी। करीब 2200 पन्नों में चम्पावत डिवीजन में हुए घपले की कहानी बयां हुई थी।
ऑडियो वायरल होने के बाद शुरू हुई थी जांच
ऑडियो प्रकरण के बाद सिंतबर 2017 में डीएफओ अशोक कुमार गुप्ता के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश हुए थे। जांच में अहम बात यह सामने आई कि चम्पावत वन प्रभाग में जैव विविधता को संरक्षित करने और वनों को प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के लिए छिलका गुनिया के विदोहन में पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया गया था। वहीं, छिलका-गुनिया को लेकर लगातार वित्तीय अनियमितता की बात सामने आने व शिकायतों के मद्देनजर तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं ने भी इसकी निकासी पर पूरी तरह रोक लगाई थी। 13 जुलाई 2011 को यह आदेश जारी हुआ था। उसके बावजूद चम्पावत डिवीजन में बेधड़क वन संरक्षण को लेकर जारी हुए आदेश को दरकिनार कर छिल्का-गुनिया की निकासी होती रही।
छिलका-गुलिया के अवैध दोहन की जांच
16 मार्च 2017 को प्रमुख वन संरक्षक कार्यालय से एक आदेश डीएफओ अशोक कुमार गुप्ता को जारी होता है। इसकी प्रतिलिपि मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं व उत्तरी वन वृत्त के वन संरक्षक को भी भेजी जाती है। पीसीसीएफ ऑफिस के इस आदेश के मुताबिक तीन दिन के भीतर छिलका-गुलिया के अवैध दोहन की जांच पूरी कर देने को कहा गया था। जांच रिपोर्ट कहती है कि उसके बावजूद चम्पावत वन प्रभाग कुछ प्रतिबंधों के साथ क्षेत्रीय स्तर पर छिल्का-गुलिया के रवन्ने जारी करता रहा। रिपोर्ट के मुताबिक डीएफओ के अलावा फील्ड-स्टाफ और चेकपोस्ट पर तैनात कर्मियों की भी इसमें पूरी मिलीभगत थी।
निजी की अनुमति और कटान जंगल व पंचायत से
जांच रिपोर्ट के मुताबिक काश्तकारों द्वारा अपनी निजी जमीन में मौजूद चीड़ के पेड़ों से छिलका-गुलिया निकालने की अनुमति ली गई। जबकि विदोहन आरक्षित व वन पंचायत क्षेत्र तक से किया गया है।
चीड़ की गुलिया की काफी डिमांड
छिलका और गुलिया चीड़ के पेड़ से निकलती है। छिल्का आमतौर पर जलाने के काम आती है। जबकि गुलिया की बाजार डिमांड काफी है। धूप, अगरबत्ती आदि चीजों में इसे डाला जाता है। चीड़ प्रजाति केवल पहाड़ में होने की वजह से बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी होती है।
प्रमोशन के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे गए थे
डीएफओ एके गुप्ता करीब छह साल तक चम्पावत वन प्रभाग में डीएफओ रहे। फॉरेस्ट अफसरों के मुताबिक डीएफओ से वन संरक्षक बनने में दस साल लग जाते हैं। जब गुप्ता का प्रमोशन हुआ तो वह हाई कोर्ट तक पहुंच गए थे।
एसडीएम द्वारा पकड़े ट्रक ने घुमाई कहानी
छिलका-गुलिया से जुड़ी शिकायतों की पुष्टि एसडीएम टनकपुर व एसओ टनकपुर द्वारा दो सितंबर को पकड़े गए ट्रक संख्या यूके 05 सीए 0688 से काफी हद तक हो गई थी। ट्रक में सौ कुंतल माल था। जबकि चालक के पास 50-50 कुंतल के दो रवन्ने मिले। यह ट्रक फॉरेस्ट के कई चेक पोस्ट से गुजरा लेकिन सब आंख मूंदे बैठे थे।
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