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दावानल की लपटें हिमालयी क्षेत्र में ग्‍लोबल वॉर्मिंग की दर को दोगुना कर रहीं, जानिए

भूगर्भीय लिहाज से अतिसंवेदनशील हिमालयी राज्य के लिए साल दर साल विकराल होती वनाग्नि ने नए संकट की दस्तक दे दी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 01:15 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 12:00 PM (IST)
दावानल की लपटें हिमालयी क्षेत्र में ग्‍लोबल वॉर्मिंग की दर को दोगुना कर रहीं, जानिए
दावानल की लपटें हिमालयी क्षेत्र में ग्‍लोबल वॉर्मिंग की दर को दोगुना कर रहीं, जानिए

रानीखेत, दीप सिंह बोरा : भूगर्भीय लिहाज से अतिसंवेदनशील हिमालयी राज्य के लिए साल दर साल विकराल होती वनाग्नि ने नए संकट की दस्तक दे दी है। दावानल की लपटें हिमालय को झुलसा ही नहीं रही बल्कि ग्लोबल वॉर्मिंग की दर को दोगुना बढ़ा रही हैं। शोध वैज्ञानिकों की मानें तो हिमालयी राज्य मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रहा है। समय रहते यदि वनाग्नि से निपटने को भौगोलिक परिवेश के अनुरूप नई नीति तैयार कर त्वरित कदम न उठाए गए तो पहाड़ की जैवविधिता व मूल वनस्पतियों को नष्टï होते देर न लगेगी। 

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दरअसल, वैश्विक तापवृद्धि के इस पांचवें दौर में पूरी दुनिया जहां पर्यावरण बचाने की दुहाई दे रही। वहीं देश को सर्वाधिक पर्यावरणीय सेवा देने वाले उत्तराखंड की सेहत बिगड़ती जा रही। वैज्ञानिक इसके लिए वनाग्नि को बड़ा कारण मान रहे। वजह, प्रत्येक वर्ष तबाह होते जा रहे जंगलात तापवृद्धि की दर को तेजी से बढ़ाने का काम रहे। नेशनल जीयोस्पेशल चेयरप्रोफेसर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भारत सरकार) प्रो. जीवन सिंह रावत सचेत करते हैं कि हम मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रहे। आने वाला दौर विकट होगा। पहाड़ की मूल वनस्पतियां खत्म हो जाएंगी। वैश्विक तापवृद्धि पूरे हिमालय को झुलसा कर मरुस्थल में बदल देगी। 

मूल वनस्पतियों पर पहले ही संकट 

बेतहाशा तापवृद्धि के कारण पहले ही पर्वतीय मूल वनस्पतियां संकट में हैं। उस पर वनाग्नि कहर बरपा रही। मैदानी वनस्पतियां मध्य शिवालिक तक जड़ें जमा चुकी हैं। जबकि ठंड प्रदेश की वनस्पतियां तापवृद्धि के कारण उच्च हिमालय की ओर शिफ्ट हो रही। शोध वैज्ञानिक कहते हैं, उच्चहिमालय भी तपने लगेगा तो पहाड़ की मूल वनस्पतियों को विलुप्त होने से नहीं बचा सकेंगे। 

शीतल घाटियों मेें पारा रिकॉर्ड 38 डिग्री

उखल्लेख, चांचरी, तल्ली मिरई, सिमलगांव आदि के जंगलों के धधकने के कारण पूरा क्षेत्र धुंए की आगोश में है। क्षेत्र का तापमान बढऩे के कारण लोगों को कई परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। धधकते जंगलों के कारण नगर का तापमान अप्रत्याशित रूप से 34 डिग्री जा पहुंचा। इस वर्ष यह सर्वाधिक रहा। दूसरी तरफ बिंता, गगास, सिमलगांव के घाटी वाले क्षेत्रों में 38 से 40 डिग्री रहा। लगातार बढ़ रही तपिश का असर जलस्रोतों पर भी पडऩे के कारण चारों ओर पानी की भारी किल्लत है। विशेषज्ञ इस तापवृद्धि के लिए वनाग्नि को बड़ा कारण बता रहे।

नई नीति बनाकर धरातल पर उतारा जाए 

प्रो. जीवन सिंह रावत, नेशनल जीयोस्पेशल चेयरप्रोफेसर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने बताया कि उत्तराखंड के भौगोलिक परिवेश को समझ नई नीति बना कर उसे धरातल पर उतारने की जरूरत है। हम मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रहे। वनाग्नि इस प्रक्रिया को तीव्र गति से बढ़ा रही है। सबसे महत्वपूर्ण है वनाग्नि नियंत्रित कर पहाड़ को मस्स्थल बनने से रोकना होगा। 

वनाग्नि हर लिहाज से घातक 

प्रो. किरीट कुमार, वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं शोध संस्थान कोसी कटारमल ने बताया कि वनाग्नि हर लिहाज से घातक साबित हो रही। इससे हिमालयी राज्य का तापमान बढ़ रहा। प्रभावी नियंत्रण न होने की दशा में यह हवा को गर्म कर उसकी गति व दिशा बदल देगी। 

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