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    पहाड़ के वीरान गांवों को आबाद कर रही खाकी, जर्जर घरों की करा रहे मरम्मत, बंजर खेतों में उग रही फसल

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jun 2022 07:31 PM (IST)

    गृहजनपद में पोस्टिंग पाने के बाद पुलिसकर्मी पुराने घरों की मरम्मत कराकर रहे हैं। कई पुलिस कर्मियों ने नए घर भी बना लिए हैं। बच्चे भी पढऩे के लिए गांव के स्कूलों में जा रहे हैं। वहीं खाली समय में वे खेतीबाड़ी का भी काम कर रहे हैं।

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    पुलिस कर्मियों ने पहाड़ में पोस्टिंग के बाद अपने घर आबाद करने शुरू कर दिए हैं।

    दीप चंद्र बेलवाल, हल्द्वानी : पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों को आबाद करने में अब खाकी भी मददगार बन रही है। सरकार की पुलि‍स महकमे में ट्रांसफर नीति का असर वीरान हो चुके गांंवों में दिखने लगा है।

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    पुलिस कर्मियों ने पहाड़ में पोस्टिंग के बाद अपने घर आबाद करने शुरू कर दिए हैं। इन घरों में उनका परिवार निवास कर रहा है। खाली समय में पुलिस कर्मी खुद भी खेतीबाड़ी में हाथ आजमा रहे हैं। घोस्ट और वीरान घोषित हो चुके गांव में खाकी के प्रयासों से खुशहाली लौट आई है।

    सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में पलायन से तीन हजार गांव खाली हो चुके हैं। डीजीपी के मुताबिक उत्तराखंड के 722 पुलिस कर्मियों को गृहजनपद में तैनाती दी गई। चम्पावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ व नैनीताल जिलों में 530 पुलिस कर्मी ऐसे हैं जो पोस्टिंग के बाद अपने गांव में जाकर बस गए हैं।

    गृहजनपद में पोस्टिंग पाने के बाद पुलिसकर्मी पुराने घरों की मरम्मत कराकर रहने योग्य बना दिया है। कई पुलिस कर्मियों ने नए घर भी बना लिए हैं। जहां पर उनका परिवार बस गया है। बच्चे भी पढऩे के लिए गांव के स्कूलों में जा रहे हैं।

    मैदान में आए फिर भी पहाड़ों से जुड़ाव

    100 से अधिक ऐसे पुलिस कर्मी हैं जो पहाड़ में पोस्टिंग के बाद मैदान में आ चुके हैं। मगर उनका परिवार पहाड़ में बने घरों में रह रहा है। छुट्टी होने पर ये पुलिस कर्मी अपना जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर चम्पावत जिले के हेड कांस्टेबल सुशील जोशी पहले मैदान में रहते थे। अब अपने गांव चम्पावत में जाकर बस गए हैं। उनके बच्चे भी गांव के स्कूल में जाते हैं।

    केस-1

    सोमेश्वर तहसील के बजेल गांव निवासी बालम बजेली कुछ साल पहले रुद्रपुर सीपीयू में तैनात थे। पहाड़ से उनका जुड़ाव कम नहीं हुआ। पुराना घर जर्जर होने पर उन्होंने नया घर बना लिया। पूरा परिवार उसी घर में रह रहा है। बालम बजेली सरियापाली अल्मोड़ा एसडीआरएफ में इंस्पेक्टर हैं।

    केस-2

    हल्द्वानी कोतवाली में तैनात एसएसआइ रमेश सिंह बोरा 2009 से 2021 तक पहाड़ी जिलों में ही तैनात रहे। उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर पाटी तहसील के जनकांड में घर बनाया। जहां उसका परिवार रहता है। रमेश समेत सभी भाई नौकरी को लेकर बाहर रहते हैं। छुट्टी में घर जाकर वह खेतीबाड़ी जैसे जरूरी काम करते हैं।

    उत्तराखंड में पलायन की स्थिति

    वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि पलायन के चलते 2.85 लाख घरों में ताले लटके हैं। 968 गांव भुतहा घोषित हो चुके हैं। इन गांव में अब कोई नहीं रहता। घरों में ताले लटके हैं। ये ताले किसी खास मौके या देवी-देवताओं की पूजा के मौके पर ही खोले जाते हैं।

    कुमाऊं में खाली हुए घर

    अल्मोड़ा      36401

    पिथौरागढ़   22936

    नैनीताल     15075

    चम्पावत     11281

    बागेश्वर       10073

    छह जिलों में घोस्ट हुए गांव

    नैनीताल      44

    बागेश्वर        73

    अल्मोड़ा      105

    बागेश्वर        73

    चम्पावत      55

    ऊधमसिंहनगर - 14

    पुलिस कर्मी मैदान में रहकर भी पहाड़ में बस रहे

    डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि 722 पुलिस कर्मियों को गृहजनपद तैनाती दी गई। पुलिस कर्मी मुस्तैदी से ड्यूटी का निर्वाहन कर रहे हैं। इससे पलायन रोकने की दिशा में भी अच्छा सुधार हुआ है। कई पुलिस कर्मी मैदान में रहकर भी पहाड़ में बस रहे हैं। जो उत्तराखंड के लिए अच्छे संकेत हैं।