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    दरकती पहाड़ी, निरंतर भूस्खलन, ठप ड्रेनेज और वाहनों का बढ़ता दबाव, नैनीताल के भविष्य को भू-विज्ञानी चिंतित

    By Prashant MishraEdited By:
    Updated: Sat, 30 Jul 2022 06:44 PM (IST)

    natural disaster in nainital नैनीताल प्राकृतिक व मानवजनित दोतरफा समस्याओं से जूझ रहा है। लगातार भूस्खलन फेल ड्रेनेज सिस्टम पार्किंग व जाम की समस्या से यहां कौन आना चाहेगा। शासन-प्रशासन के जिम्मेदार लोगों को विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल कर समय रहते इसका निराकरण करना होगा।

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    natural disaster in nainital: इलाज के नाम पर बयानबाजी और कुछ डीपीआर-टेंडर के शिगूफे से ट्रीटमेंट किया जा रहा।

    नैनीताल से किशोर जोशी। natural disaster in nainital देश-विदेश में अपनी खूबसूरती, सुहावने मौसम के लिए प्रसिद्ध झीलों के शहर नैनीताल को ऐसे ही भविष्य में बने रहने के लिए सिस्टम सिर्फ दावे कर रहा पर ईमानदारी से जमीन पर कुछ नहीं हो रहा।

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    समस्याएं वहीं की वहीं

    समस्या के निस्तारण का ठोस उपाय नहीं हो रहा। इसे यूं समझा जा सकता है कि हर साल पर्यटन सीजन में जाम लगता है, पर्यटकों को शौचालय से लेकर पार्किंग की समस्या से दोचार होना पड़ता है।

    वहीं बारिश में जलभराव, कचरा झील में जाना और भूस्खलन जैसी समस्याओं का बोझ बढ़ता जा रहा। पर इलाज के नाम पर बयानबाजी और कुछ डीपीआर-टेंडर के शिगूफे से मुकम्मल ट्रीटमेंट किया जा रहा है। 

    चेतावनी की अनदेखी

    भू वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों की चेतावनी के बाद न तो भूस्खलन वाले इलाकों का स्थाई ट्रीटमेंट हो रहा है, न ही सुरक्षात्मक उपाय किए जा रहे। ऊपर से पुर्ननिमाण, मरम्मत तथा आवासीय भवनों के निर्माण के बहाने संवेदनशील पहाड़ियों में कंक्रीट का जंगल उगाया जा रहा है। 

    चेतावनी के बाद भी आबादी तथा वाहनों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। इससे हर बरसात या बरसात के बाद धूप निकलने के बाद पहाड़ियों के हिस्से दरक रहे हैं और लोगों की जान जोखिम में पड़ रही है। 

    शीर्ष कोर्ट की भी अनसुनी

    सुप्रीम काेर्ट व हाई कोर्ट के सख्त आदेशों के बाद अतिक्रमण हटाने में खानापूर्ति होने के साथ ही रसूखदारों पर मेहरबानी इस खतरे व जोखिम को और बढ़ा रही है। भू-वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यदि पहाड़ियों पर दबाव कम नहीं किया गया, ड्रेनेज सिस्टम को सही नहीं किया तो भूस्खलन जैसी घटनाओं से भारी जनधन की हानि हो सकती है।

    यह हैं खतरे के संकेत

    शहर के भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील बलियानाला, नयना पीक या चाइनापीक, माल रोड, कैलाखान्, अयारपाटा, टिफिनटॉप समेत सात नंबर क्षेत्र में भूस्खलन व चट्टानें दरकना बड़े खतरे का संकेत माना जा रहा है।

    100 साल से भूस्खलन और ट्रीटमेंट 0

    1867 में शहर में पहली भूस्खलन की घटना हुई थी। 18 सितंबर 1880 के भूस्खलन ने तो 151 जिंदगी लील ली साथ ही कई भवन जमीदोज हो गए। शहर के नीचे स्थित बलियानला में 150 से भी अधिक वर्षों से भूस्खलन आज भी जारी है। पिछले साल शहर की चाइना पीक में एक बार फिर भारी भूस्खलन हुआ था। 

    कभी भी हो सकता है बढ़ा हादसा

    कुमाऊं विवि के पूर्व भूगर्भ के प्रोफेसर प्रो बीएस के अनुसार शहर और नैनी झील के बीच से गुजरने वाले फॉल्ट के एक्टिव होने से भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाएं सामने आ रही है। भवनों का बढ़ता दबाव और भूगर्भीय हलचल इसका कारण हो सकता है।

    ट्रीटमेंट के लिए बजट की दरकार

    शहर के बलियानाला से लेकर ठंडी सड़क, सात नंबर, नयना पीक समेत अन्य स्थानों के भूस्खलन वाले क्षेत्रों के ट्रीटमेंट के लिए भारी भरकम बजट की दरकार है। बलियानाला के ट्रीटमेंट के लिए डीपीआर बनाने में महिनों बीत गए लेकिन अब तक फाइनल नहीं हुई। 

    धूल फांक रही डीपीआर 

    लोअर माल रोड के ट्रीटमेंट के लिए करीब 40 करोड़ की डीपीआर शासन में धूल फांक रही है। मुख्य सचिव से लेकर जिलाधिकारी तक इसको लेकर बैठक कर चुके हैं, लेकिन बजट जारी करने के बजाय शासन की ओर से औचित्य पूछा जाता है। 

    डीएम धीराज गरबयाल का कहना है कि माल रोड समेत बलियानाला व अन्य स्थानों के ट्रीटमेंट की डीपीआर के लिए बजट जारी करने के लिए शासन में मजबूत पैरवी की जा रही है। जल्द ही ट्रीटमेंट कार्य शुरू होगा।

    वन विभाग का ट्रीटमेंट बन सकता है माडल

    राजभवन की पहाड़ी निहालनाले की सतह पर यानि रूसी बाइपास में वन विभाग ने भूस्खलन रोकने के लिए जो ट्रीटमेंट किया है, उससे बड़े हिस्से में मिट्टी का कटाव थम गया है।

    मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी के अनुसार 2018 में यहां झाड़ी प्रजाति के पौधों व शाखाओं की कटिंग कर वनस्पतिक अवराेधक बनाए गए। चेकडेम बनाए गए।

    तब से इस इलाके में भूक्षरण रोका जा सका है। राजभवन से सटी पहाड़ियों का कुछ साल पहले टीएचडीसी की ओर से ट्रीटमेंट किया गया था।

    सुरक्षात्मक सुझाव

    -पहाड़ियों के नालों पर निश्चित दूरी पर मजबूत सुरक्षा दीवार बनाई जाए, चट्टानों की टूट फूट व दरारों को खोजकर भरा जाए

    -खतरे की जद में आए भवनों के चारों ओर छह इंच मोटी अपारगम्य पट्टी मिट्टी या अन्य पदार्थ से बनाई जाए

    -भवनों के अपशिष्ट जल, नालियों के माध्यम से नाले में प्रवाहित किए जाएं। 

    नैनीताल में बड़े भूस्खलन

    • 1866-आल्मा पहाड़ी के पश्चिम क्षेत्र।
    • जुलाई 1867-वर्तमान मल्लीी बाजार के ऊपर नैनीताल क्लब क्षेत्र
    • 1880 में शेर का डांडा आलमा पहाड़ी-151 लोगों की मौत,, जिसमें 43 यूरोपियन
    • 21 जून 1988-सीआरएसटी के ऊपर बोल्डर व भू धंसाव से विज्ञान प्रयोगशालाओं को नुकसान
    • 1888-गैलवे हाउस व वर्तमान मंदिर के समीप भूस्खलन
    • 1898-लेंगडेल व इंडक्लफ नाले को नुकसान
    • 1890-डीएसबी परिसर के समीप राजभवन रोड व ठंडी सड़क
    • 1939 में अयारापाटा रोड, 1998 को कैलाखान बेवरी के ऊपर का इलाका बलियानाला में समाया
    • 1924-मनाेरा पीक से वीरभटटी की ओर भूधंसाव, 1915, 1972, 1975 में भी बलियानाले पर भूस्खलन
    • 1942-लंघम हाउस क्षेत्र में भूमि कटाव
    • 1958-फांसी गधेरा के ऊपर

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