गौरीगंगा का जल भी गंगाजल जैसा शुद्ध, शीतकाल में कोहरे के आगोश में भी नहीं आती है घाटी
हिमालय के हिमनदों से सैकड़ों नदी नाले निकलते हैं। गंगा नदी से लेकर काली गंगा तक सभी नदी नालों का उद्गम स्थल ग्लेशियर हैं। ...और पढ़ें

पिथौरागढ़, जेएनएन : हिमालय के हिमनदों से सैकड़ों नदी, नाले निकलते हैं। गंगा नदी से लेकर काली गंगा तक सभी नदी, नालों का उद्गम स्थल ग्लेशियर हैं। अन्य छोटे ग्लेशियरों से निकलने वाली धाराओं को समेट कर बड़ी नदियां मध्य हिमालय में प्रवेश करती हैं। एक जैसी ही स्थिति में बहने वाली इन नदियों में गंगा नदी है, जिसका पानी कभी नहीं सड़ता है। कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालय में स्थित विश्व के खूबसूरत ग्लेशियरों में शुमार मिलम से निकलने वाली गोरी गंगा नदी का पानी भी गंगा जल जैसे ही शुद्ध है। गोरी गंगा का पानी भी सड़ता नहीं है। मिलम ग्लेशियर से निकल कर दर्जनों छोटी, बड़ी नदियों का पानी अपने में समाहित कर लगभग 150 किमी का सफर तय करने के बाद यह नदी जौलजीवी में काली नदी में मिल जाती है।
स्थानीय आस्था से जुड़ी है नदी
गोरी गंगा नदी की यह विशेषता भले ही सार्वजनिक नहीं हो पाई हो परंतु स्थानीय आस्था का केंद्र है। स्थानीय स्तर पर गाए जाने वाले जागरों में गोरी गंगा का जिक्र होता है। जिससे स्पष्ट होता है कि अतीत में नदी के जल को देखते हुए ही इसका जिक्र देवी, देवताओं के पूजन में किया जाता रहा होगा।
जगह-जगह मिलते हैं गंधक के स्रोत
गोरी गंगा नदी के किनारे मदकोट से लेकर कई किमी क्षेत्र में गंधक के स्रोत मिलते हैं। इन स्रोतों का जल गर्म है। कभी कभार तो नदी के बीच में गंधक का स्रोत फूट जाता है। कुछ वर्षों पूर्व मदकोट के पास नदी के बीच में गंधक का स्रोत फूटने से फव्वारा तक बन गया था। जो कौतुहल तो बना परंतु जांच की कोशिश नहीं हुई ।
न तो पानी सड़ता है और नहीं कोहरा लगता है
अमूमन सभी नदी घाटी क्षेत्रों में शीतकाल में सुबह से घाटियां कोहरे की आगोश में रहती हैं। सुबह नौ बजे से दोपहर के आसपास तक कोहरा छंटता है। गोरी नदी घाटी में अपवाद है। इस नदी के जल में कोहरा नहीं लगता है। जबकि गोरी नदी के जौलजीवी में काली नदी में मिलने के बाद आगे को कोहरा लगता है। गंगा जल की तरह ही इस नदी का पानी भी कभी नहीं सड़ता है।
गोरी नदी की मछलियों का स्वाद भी विशिष्ट
गोरी गंगा नदी में पाई जाने वाली मछलियों का स्वाद अन्य नदियों की अपेक्षा विशेष माना जाता है। अलबत्ता नदी में जौलजीवी से बरम लगभग 15 किमी में ही मछलियां पकड़ी जाती हैं। इससे ऊपर को पानी के बर्फानी होने से मछलियां नहीं मिलती हैं।

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