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गौला पुल को भी खतरा, पिलर्स की सुरक्षा दीवारें बही, पीडब्‍ल्‍यूडी ने एनएचएआइ को किया हैंडओवर

नए गौला पुल के कमजोर होने का खतरा बढ़ गया है। पुल के पिलरों के चारों तरफ बनी सेफ्टी वाल (पत्थरों की गोल सुरक्षा दीवार) टूटकर बह चुकी है। पानी का तेज बहाव और किनारों से रेत निकालने का लालच इसकी वजह है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 30 Aug 2021 08:17 AM (IST)Updated: Mon, 30 Aug 2021 08:17 AM (IST)
गौला पुल को भी खतरा, पिलर्स की सुरक्षा दीवारें बही, पीडब्‍ल्‍यूडी ने एनएचएआइ को किया हैंडओवर
गौला पुल को भी खतरा, पिलर्स की सुरक्षा दीवारें बही, पीडब्‍ल्‍यूडी ने एनएचएआइ को ट्रांसफर किया

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : नए गौला पुल के कमजोर होने का खतरा बढ़ गया है। पुल के पिलरों के चारों तरफ बनी सेफ्टी वाल (पत्थरों की गोल सुरक्षा दीवार) टूटकर बह चुकी है। पानी का तेज बहाव और किनारों से रेत निकालने का लालच इसकी वजह है। स्वामित्व रहते लोनिवि ने एक निजी तीनपानी से लेकर काठगोदाम तक की सड़क अब एनएचएआइ को ट्रांसफर हो चुकी है। इसलिए लोनिवि ने भी अब पुल भी ट्रांसफर कर हाथ पीछे खींच लिए हैं।

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गौला का नया पुल 364.76 मीटर लंबा है। पानी के अंदर नौ पिलर हैं। जुलाई 2008 में टूटने के बाद लोनिवि ने इसे नए सिरे से बनाया था, मगर कभी पानी के बहाव और कभी अवैध खनन के चक्कर में इसकी सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो चुके हैं। दो साल पहले नदी में मशीन उतार बहाव को दुरुस्त किया गया था। ताकि बारिश में गौला के उफान पर होने पर पानी सीधा पिलर से न टकराए। हालांकि मौजूदा समय में कई पिलरों की सेफ्टी वॉल टूट चुकी है। ऐसे में मरम्मत की जरूरत समझी जानी चाहिए। वहीं, लोनिवि का कहना है कि एनएचएआइ (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) को बाईपास रोड ट्रांसफर होने की वजह से अब मरम्मत का काम भी उन्हीं का है।

क्‍या कहते हैं जिम्‍मेदार

लोनिवि के अशोक कुमार बताते हैं कि जब पुल हमारे अंडर में था तो सुरक्षा के लिहाज से निजी कंपनी से सर्वे के लिए कहा गया था। मगर अब स्वामित्व एनएचएआइ के पास है। लिहाजा, इससे जुड़ा फैसला भी वह लेंगे। परियोजना निदेशक एनएचएआइ योगेंद्र शर्मा का कहना है कि एनएचएआइ की तरफ से पूर्व में पुल का पूरा सर्वे किया गया था। तब पिलर को लेकर कोई खतरा नजर नहीं आया। रानीपोखरी पुल की घटना के मद्देनजर एक्सपर्ट से इसे फिर दिखवाया जाएगा।

जोशी की याचिका पर दूरी तय हुई थी

पूर्व में पुल के धराशायी होने पर गौलापार निवासी आरटीआइ कार्यकर्ता ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। रवि के मुताबिक आइआइटी रुड़की व कमिश्नर की जांच में पुल के डिजाइन व निर्माण सामग्री पर सवाल खड़े किए गए थे। जबकि लोनिवि ने अपनी रिपोर्ट में खनन को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद ही पुल के अप-डाउन एरिया मेंं एक किमी दायरे को खनन के लिए प्रतिबंधित किया गया था।

मैं तो चार घोड़े भरता हूं

पुल के आसपास एक किमी एरिया भले खनन के लिए प्रतिबंधित हो, लेकिन चोरी-छिपे रेत निकल रही है। रविवार दोपहर नदी किनारे घूम रहे युवक से पूछने पर उसने बता दिया कि रोज चार घोड़ों से रेत निकालता हूं। आज पानी ज्यादा होने की वजह से घोड़े नहीं उतारे।


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