लकड़ी के लिए वनकर्मी की हत्या करने वाले चार तस्करों को उम्र कैद, कोर्ट ने दोषियों पर जुर्माना भी लगाया
नैनीताल में वन विभाग के अस्थायी कर्मचारी की गोली मारकर हत्या करने वाले चार लकड़ी तस्करों को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह घटना जून 2019 में तरा ...और पढ़ें

सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: वन विभाग के अस्थायी कर्मचारी की गोली मार हत्या करने वाले चार लकड़ी तस्करों को न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। दो लोगों पर तीस-तीस हजार और दो पर 31-31 हजार का जुर्माना भी लगाया गया है।
जून 2019 में तराई केंद्रीय डिवीजन से जुड़ी बरहैनी रेंज के जंगल में तस्करों और वनकर्मियों के बीच यह मुठभेड़ हुई थी।
22 जूल 2019 को बरहैनी रेंज के वनकर्मियों को सूचना मिली थी कि तस्करों ने जंगल में पेड़ काटे हैं। मौके पर पहुंचने पर घटना सच साबित हुई। वन विभाग ने योजना बनाई की रात में कटे पेड़ों के आसपास डेरा डाला जाए।
तस्करों के पेड़ उठाने को वापस आने पर उन्हें रंगेहाथ पकड़ा जाएगा। रात के समय ऊधम सिंह नगर से जुड़ा तस्करों का गिरोह जंगल पहुंच गया। मगर सरकारी टीम की भनक लगने पर उन्होंने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इस बीच बीट वाचर (अस्थायी कर्मी) बहादुर सिंह और उनके साथी महेंद्र सिंह गोली लगने से घायल हो गए।
कुछ देर बाद बहादुर ने दम तोड़ दिया था। जबकि महेंद्र का एसटीएच में कई दिन तक उपचार चला। दूसरी तरफ वन विभाग की तहरीर पर मुठभेड़ के अगले दिन कालाढूंगी थाने में ऊधम सिंह नगर के हरसान थाना बाजपुर निवासी लखविंदर सिंह, हरिपुर हरसान थाना बाजपुर निवासी करन सिंह, मडैया हट्टू थाना केलाखेड़ा निवासी परमजीत सिंह और मडैया हट्टू निवासी सूरज सिंह के विरुद्ध् हत्या व अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई।
बाद में पुलिस ने चारों ने गिरफ्तार भी कर लिया था। वहीं, अपर जिला शासकीय अधिवक्ता गिरजा शंकर पांडेय ने बताया कि दोष साबित करने के लिए कोर्ट में 20 गवाहों का परीक्षण कराया गया था।
तस्करों की ओर से काटे गए पेड़ों की बरामदगी भी अहम साबित हुई। जिसके बाद द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश सविता चमोली की अदालत ने चारों को उम्र कैद की सजा सुना दी। लखविंदर और परमजीत से अवैध असलहे की बरामदगी होने से उन पर आर्म्स का केस भी साबित हुआ है। इसलिए जुर्माना ज्यादा लगा है।
पैर छलनी करवाने वाला महेंद्र नहीं सुन सका फैसला
मुठभेड़ के दौरान गोली लगने पर बहादुर सिंह ने कुछ देर बाद ही दम तोड़ दिया था। जबकि महेंद्र सिंह का एक पैर गोली लगने से छलनी हो गया था। आपरेशन के बाद वह खतरे से बाहर आ गया था। लेकिन दर्द से जूझता रहा।
वहीं, चारों दोषियों को अब उम्र कैद की सजा हो चुकी है। अधिवक्ता जीएस पांडे ने बताया कि घायल वनकर्मी भी दुनिया में नहीं है। ट्रायल के दौरान उसकी मौत हो गई थी।
तनख्वाह आठ हजार भी नहीं, जंगल की खातिर लिया जोखिम
बहादुर और महेंद्र वन विभाग के अस्थायी कर्मचारी थे। मुठभेड़ के दौर में उनका मासिक वेतन आठ हजार रुपये भी नहीं था। एक को सात तो दूसरे को 7700 रुपये मिलते थे। खाते में पैसे आने पर भी महीनों लग जाते थे।
जंगल में तस्करी की सूचना मिलने पर दोनों लाठी लेकर ही दौड़ पड़े थे। वन विभाग में दोनों की बहादुरी के किस्सों की आज भी चर्चा होती है। लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद बहादुर के बेटे को महकमे में नौकरी मिल गई थी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।