हाथी का प्रिय भेजन रोहिणी के पत्ते और छाल, संरक्षण के प्रयास में जुटा वन विभाग
हाथी जंगल का इंजीनियर माना जाता है। जिस रास्ते से गुजरता हैं उसे कभी भूलता नहीं हैं। पेड़ों के बीच से गुजरते वक्त उसके भारी-भरकम शरीर के संपर्क में आकर पत्ते और टहनियां जमीन पर गिरते हैं। जिनमें खादनुमा मल मिलने पर नए पेड़ भी जिंदा होते हैं।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : हाथी जंगल का इंजीनियर माना जाता है। जिस रास्ते से गुजरता हैं, उसे कभी भूलता नहीं हैं। पेड़ों के बीच से गुजरते वक्त उसके भारी-भरकम शरीर के संपर्क में आकर पत्ते और टहनियां जमीन पर गिरते हैं। जिनमें खादनुमा मल मिलने पर नए पेड़ भी जिंदा होते हैं। यानी पर्यावरण संरक्षण में भी यह अहम भूमिका निभाता है।
रोहिणी के कटान पर जंगल में रोक
भोजन के तौर पर रोहिणी की छाल व पत्ते हाथी को काफी पसंद है। जिस वजह से वन विभाग ने इस प्रजाति के कटान पर रोक लगाई है। यानी सिर्फ हाथी की वजह से यह संरक्षित सूची में आ जाएगी। जबकि इससे पूर्व इसे भी निकासी में शामिल कर लिया जाता था। कुमाऊं के तराई-भाबर क्षेत्र के जंगल में हाथी और रोहिणी दोनों मिलते हैं।
उत्तराखंड को हाथियों का सुरक्षित वासस्थल माना जाता है। अंतिम बार साल 2020 में हुई गणना में 2026 हाथी नजर आए थे। तराई के जंगल में मिलने वाला बांस और रोहिणी हाथी को काफी पसंद आता है। रोहिणी की छाल और पत्ते दोनों ही हाथी के भोजन है। छाल में पानी की मात्रा भी होती है।
वन विभाग के अनुसार जंगल में किसी प्लांटटेशन एरिया में पुराने पेड़ों की उम्र पूरी होने पर उनके कटान का नियम है। ऐसे में वहां मौजूद पेड़ों में रोहिणी के शामिल होने पर उसकी निकासी भी कर दी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। ताकि तराई व भाबर के जंगल में हाथी को भोजन के लिए ज्यादा न भटकने पड़े।
प्राकृतिक रंग के तौर पर इस्तेमाल
रोहिणी के पेड़ की लकड़ी बड़ी मात्रा में ईंधन के तौर पर काम आती है। वन अनुसंधान हल्द्वानी के रेंजर मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि रोहिणी के बीज से लाल रंग निकलता है। जिसे सिंदूर बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा प्राकृतिक रंग बनाने में भी इस्तेमाल होता है। जिसे कई जगहों पर मिठाई को कलर देने के लिए भी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।
वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त दीप चंद्र आर्य ने बताया कि तराई व भाबर के जंगल में हाथियों के सुरक्षित वासस्थल है। हाथियों के भोजन से जुड़ी प्रजातियां बढ़ाने को लेकर वर्किंग प्लान में भी लिखा गया है। यही वजह है कि आपात स्थिति यानी पेड़ के गिरने या अन्य प्रजातियों के पनपने में बाधक बनने पर इसकी निकासी या छंटाई की जाएगी।
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