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    जब बाघ आबादी में फंसता है तब अटकती है डीएफओ और रेंजर की सांस, जानिए nainital news

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 28 Jun 2019 11:33 AM (IST)

    बाघों के संरक्षण को लेकर आयोजित बैठक के दौरान वन विभाग के अधिकारियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन की जमीनी दिक्कतों के बारे में खुलकर बात की।

    जब बाघ आबादी में फंसता है तब अटकती है डीएफओ और रेंजर की सांस, जानिए nainital news

    हल्द्वानी, जेएनएन : बाघों के संरक्षण को लेकर आयोजित बैठक के दौरान वन विभाग के अधिकारियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन की जमीनी दिक्कतों के बारे में खुलकर बात की। कहा कि जब एक बाघ आबादी में फंसता है तो संबंधित रेंज के रेंजर की सांस अटक जाती है। उसे लोगों का आक्रोश झेलने के साथ एनटीसीए की तमाम गाइडलाइन को फॉलो करना पड़ता है। विषम परिस्थितियों में काम करने के बावजूद एक छोटी चूक रेंजर से लेकर डीएफओ तक को कोर्ट के चक्कर कटवाती है। 
    एनटीसीए द्वारा बाघ को लेकर तमाम तरीके की गाइडलाइन जारी की जाती है। मरने पर, घायल होने पर व आबादी में पहुंचने पर रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर 15-20 अलग-अलग नियम फॉलो करने होते हैं। उल्लंघन पर स्थानीय अफसर मुश्किल में पड़ जाते हैं। बैठक में चर्चा के दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि स्थिति के अनुसार वन विभाग को काम करना पड़ता है। 
    स्थानीय प्रशासन का पूरा झुकाव लोगों की तरफ होता है। जबकि फॉरेस्ट पर इंसान व वन्यजीव दोनों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी होती है। वहीं, भीड़ में शामिल लोगों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी वीडियो शूट करने की होती है। बाद में कुछ कथित समाजसेवी सूचना अधिकार के माध्यम से वन विभाग के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि जनआक्रोश व मौके की नजाकत देख प्रैक्टिकल होना जरूरी है। लिहाजा, एनटीसीए को इस तरह की समस्याओं के समाधान को लेकर ठोस कदम उठाने चाहिए।

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    नरभक्षी घोषित कर बस मार दो
    पहले की अधिकांश घटनाओं में बाघ या अन्य वन्यजीव आबादी में प्रवेश करता था, लेकिन अब ऐसा हो रहा है कि स्थानीय लोग चारा-लकड़ी के चक्कर में रिजर्व जोन में घुस खुद शिकार बन रहे हैं। उसके बाद स्थानीय लोगों से लेकर जनप्रतिनिधि तक बस नरभक्षी घोषित कर मारने की बात कहते हैं। जबकि यह एक जटिल प्रक्रिया है।

    हम एनजीओ की नहीं सुनेंगे 
    रिसर्च, वन्यजीवों के संरक्षण व अक्सर किसी नए फॉरेस्ट प्रोजेक्ट में उच्च स्तर से एनजीओ भी शामिल हो जाते हैं। अक्सर एनजीओ खुद को ओवर पावर समझ खुद की चलान लगते हैं। वन संरक्षक पश्चिमी वन वृत्त डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बैठक में साफ कहा कि रेंजर अपने उच्चधिकारियों व महकमे के नियमों के प्रति जिम्मेदार हैं। इन निजी सस्थाओं के प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं है। 

    एनटीसीए को सोशल मीडिया पर जवाब देना होगा 
    वन अफसरों के मुताबिक किसी भी रेस्क्यू के दौरान सोशल मीडिया पर तमाम तरीके के वीडियो-फोटो डालकर विभाग की छवि धूमिल करने का प्रयास होता है। मामला अगर बाघ से जुड़ा है तो यह फेक न्यूज तेजी से वायरल होती है। एनटीसीए को सोशल प्लेटफार्म पर एक्टिव रहकर जवाब देना होगा। 

    बेहतर संरक्षण कर रहे हैं, दोयम न समझें 
    वेस्टर्न सर्किल का बाघ संरक्षण मैनेजमेंट बेहतर है। 120 बाघ तीन साल पहले की गणना में दिखे थे। जबकि सर्किल में शामिल पांच डिवीजन अलग-अलग काम करते हैं। लीसा-खनन का कारोबार होने के साथ इमारती लकड़ी की पैदावार करने वाला सर्किल बाघों को भी बचा रहा है। इसके बावजूद मल्टी लैंड यूज वाली सर्किल को महत्व नहीं दिया जाता है। एनटीसीए के अधिकारियों से कहा गया कि सर्किल फंड के लिहाज से मजबूत है। बस तकनीक से लगातार रूबरू करवाया जाए ताकि बाघों का और बेहतर संरक्षण हो सके।

    कॉरीडोर का मामला मंत्रालय के आगे रखे प्राधिकरण 
    वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बैठक में कहा कि कॉरीडोर को लेकर हम अलग से रिसर्च कर रहे हैं। वहीं नगला, सुरई के अलावा कई पुराने कॉरीडोर पहले से चिन्हित है। कुछ जगहों पर एनएच सड़कों का निर्माण कर रहा है। ऐसे में कॉरीडोर प्रभावित होने का खतरा भी है। एनटीसीए को इस मामले में भारत सरकार के समक्ष पैरवी करनी होगी।

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