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    कुमाऊं में आज मनाया जाएगा बिरुड़ पंचमी का पर्व, दो दिन बाद सातूं-आठू, ऐसे शुरू हुई परंपरा

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 27 Aug 2021 07:05 AM (IST)

    गौरा-महेश की पूजा का लोक पर्व सातूं -आठू करीब है। भाद्रपद यानी भादो मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी व अष्टमी को इसे मनाया जाता है। इस बार 29 अगस्त को सातूं व 30 अगस्त को आठू पर्व मनाया जाएगा।

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    कुमाऊं में आज मनाया जाएगा बिरुड़ पंचमी का पर्व, दो दिन बाद सातूं-आठू, ऐसे शुरू हुई परंपरा

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : गौरा-महेश की पूजा का लोक पर्व सातूं -आठू करीब है। भाद्रपद यानी भादो मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी व अष्टमी को इसे मनाया जाता है। इस बार 29 अगस्त को सातूं व 30 अगस्त को आठू पर्व मनाया जाएगा। कहा जाता है कि सप्तमी को मां गौरा ससुराल से रूठकर अपने मायके आ जाती हैं, उन्हें लेने के लिए अष्टमी को भगवान महेश यानी शिव आते हैं।

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    सातूं-आठू में सप्तमी के दिन मां गौरा व अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है। मूर्ति बनाने के लिए मक्का, तिल, बाजार आदि के पौधे का प्रयोग होता है। जिन्हें सुंदर वस्त्र पहनाए जाते हैं। विधि अनुसार पूजन किया जाता है। झोड़ा-चाचरी गाते हुए गौरा-महेश के प्रतीकों को खूब नचाया जाता है। महिलाएं दोनों दिन उपवास रखती हैं। अष्टमी की सुबह गौरा-महेश को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं। प्रसाद स्वरूप इसे सभी में बांटा जाता है और गीत गाते हुए मां गौरा को ससुराल के लिए बिना किया जाता है। मूर्तियों को स्थानीय मंदिर या नौले (प्राकृतिक जल स्रोत) के पास विसर्जित किया जाता है। कुछ जगहों पर दो से तीन दिन बाद भी इसे विसर्जित किया जाता है।

    सातूं-आठू का वैज्ञानिक महत्व

    लोक पर्व सातूं-आठू की शुरुआत दो दिन पहले हो जाती है। भौदो मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बिरुड़ पंचमी कहा जाता है। इस दिन घरों में तांबे के बर्तन में पांच या सात अनाजों को पानी में भिगो दिया जाता है। इसमें दाडि़म, हल्दी, सरसों, दूर्बा के साथ एक सिक्के की पोटली रखी जाती है। संस्कृतज्ञ खीम कहते हैं कि सातूं-आठू का पर्व वैज्ञानिक महत्व भी रखता है। सातूं-आठू में अंकुरित अनाजों को प्रसाद स्वरूप खाया जाता है। सातूं के दिन महिलाएं बांह में डोर धारण करती हैं। जबकि आठू के दिन गले में दुबड़ा (लाल धागा) धारण करती हैं। इस पर्व को लेकर पौराणिक कथा प्रचलित है।

    सातूं-आठू बिरूड़ाष्टमी की कथा

    बिरूड़ाष्टमी के दिन महिलाएं गले में दुबड़ा (लाल धागा) धारण करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पुरातन काल में एक ब्राहमण था जिसका नाम बिणभाट था। उसके सात पुत्र व सात बहुएं भी थीं लेकिन इनमें से सारी बहुएं निसंतान थी। इस कारण वह बहुत दुखी था। एक बार वह भाद्रपद सप्तमी को अपने यजमानों के यहां से आ रहा था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। नदी पार करते हुए उसकी नजर नदी में बहते हुए दाल के छिलकों पर पड़ी। उसने ऊपर से आने वाले पानी की ओर देखा तब उसकी नजर एक महिला पर पड़ी जो नदी के किनारे कुछ धो रही थी। वह उस स्त्री के पास जाकर देखा तो वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि खुद देवी पार्वती थी, और कुछ दालों के दानों को धो रही थीं। बिणभाट ने बड़ी सहजता से इसका कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि वह अगले दिन आ रही बिरूड़ाष्टमी पूजा के विरूड़ों को धो रही हैं।

    मां पार्वती ने बताया पूजा का विधान

    बिणभाट ने बिरूड़ाष्टमी पूजा की विधि तथा इसे मिलने वाले फल के बारे में जानने की इच्छा की तब मां पार्वती ने इस व्रत का महत्व बताया। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को महिलाएं व्रत रख कर चना, गहत, मटर, गुरूंश और उरद पांच अनाज भिगोती हैं जिसे कुमाऊं में विरूड़ कहा जाता है। अनाजों को भिगोने के बाद उमा-महेश्वर का ध्यान करके घर के एक कोने में अखंड दीपक जलाकर तांबे के बर्तन में भिगा दिया जाता है। दो दिन तक भीगने के बाद तीसरे दिन सप्तमी को इन्हें धोकर साफ कर लिया जाता है। अष्टमी को व्रतोपवास करके इन्हें गौरा-महेश्वर को चढ़ाया जाता हैं। भाट ने घर आकर बड़ी बहू को यथाविधि बिरूड़ भिगाने को कहा।

    इस तरह शरू हो गई सातूं आठू की परंपरा

    बहु ने ससुर के कहे अनुसार अगले दिन व्रत रखकर दीपक जलाया और पंच्च अनाजों को एकत्र कर उन्हें एक पात्र में डाला। जब वह उन्हें भिगो रही थी तो उसने एक चने का दाना मुंह में डाल लिया जिससे उसका व्रत भंग हो गया। इसी प्रकार छहों बहुओं का व्रत भी किसी न किसी कारण भंग हो गया। सातवीं वहु सीधी थी। उसे गाय-भैंसों को चराने के काम में लगाया था। उसे जंगल से बुलाकर बिरूड़ भिगोने को कहा गया। उसने दीपक जला विरूड़ भिगोये। तीसरे दिन उसने विधि विधान के साथ सप्तमी को उन्हें अच्छी तरह से धोया। अष्टमी के दिन व्रत रखकर शाम को उनसे गौरा-महेश्वर की पूजा की। दूब की गांठों को डोरी में बांध दुबड़ा पहना और बिरूड़ों का प्रसाद ग्रहण किया। मां पार्वती के आशीर्वाद से दसवें माह उसकी कोख से पुत्र ने जन्म लिया।