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    नैनीताल की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था शारदा संघ का रोचक है इतिहास, जानिए इसके बारे में

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 29 Dec 2020 08:01 AM (IST)

    नैनीताल की सांस्कृतिक संस्था शारदा संघ का इतिहास रोचक रहा है। इस संस्था का गठन 1939 में संगीत मंडली के रूप में हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध में 1940 में शारदा संघ सदस्यों ने स्वयंसेवक के रूप में आंतरिक सुरक्षा के लिए बने सिविल गार्ड बल में उल्लेखनीय योगदान दिया था।

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    नैनीताल की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था शारदा संघ का रोचक है इतिहास, जानिए इसके बारे में

    नैनीताल, किशोर जोशी : नैनीताल की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था शारदा संघ का इतिहास बड़ा रोचक रहा है। इस संस्था का गठन 1939 में संगीत मंडली के रूप में हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध में 1940 में शारदा संघ सदस्यों ने स्वयंसेवक के रूप में आंतरिक सुरक्षा के लिए बने सिविल गार्ड बल में उल्लेखनीय योगदान दिया था। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में बल के सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। 1943 में संगीत मंडली का नामकरण शारदा संघ के रूप में किया गया।

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    नैनीताल में शारदा संघ ने ही 1939 में बैठकी होली के आयोजन के साथ ही प्रचार-प्रसार का काम आरम्भ किया था। इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के मध्य 1940 में केंद्रीय प्रशासन द्वारा नगरों की आंतरिक सुरक्षा के लिए सिविल गार्ड बल की स्थापना की गई थी। शारदा संघ के सदस्यों ने स्वयंसेवक के रूप में इस बल में उल्लेखनीय कार्य किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 के मई माह में नैनीताल सिविल गार्ड बल का तत्कालीन संयुक्त प्रांत वर्तमान उत्तर प्रदेश में सर्वोत्तम बल का स्थान प्राप्त हुआ था।

     

    प्रो. रावत के अनुसार शारदा संघ सुरक्षा बल के रूप में उत्कृष्ट कार्य तो कर ही रहा था, स्वतंत्रता संग्राम से भी उनके सदस्य अछूते नहीं रह सके। जुलाई 1942 में जब कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया तो शारदा संघ सदस्यों ने अंग्रेजों के विरोध में सिविल गार्ड से इस्तीफा दे दिया। 1942 का साल नैनीताल के इतिहास में महत्वपूर्ण रहा। इसी साल अपने कार्यकलापों के विस्तार के कारण संगठन के सदस्यों ने निर्णय लिया कि संगीत मंडली को नई पहचान दी जाए।

     

    दस अक्टूबर 1943 में इनका नामकरण शारदा संघ के रूप में हुआ। इससे पहले 1942 में भी संघ ने पहली बार हैप्पी एमेच्योर क्लब के साथ मिलकर नाटकों को नई ऊर्जा प्रदान की। संघ ने नैनीताल में रामलीला के समापन समारोह के बाद पहला नाटक सीता वनवास का मंचन किया, जो नाट्य जगत में आज भी मील के पत्थर के रूप में जाना जाता है। शारदा संघ द्वारा होली में छलड़ी के दिन सम्पूर्ण नगरवासियों को ' सारे जग की मुबारक हो ये शुभ घड़ी...गाते हुए 1943 में ये परंपरा आरम्भ की। इसके अलावा स्वांग बनकर उल्लास की अभिव्यक्ति की परंपरा भी संघ द्वारा ही शुरू की गई।

     

    शारदा संघ ने भवन निर्माण 1945 में किया था। जबकि परिकल्पना स्वतंत्रता संग्राम में मोहन लाल साह द्वारा की गई। मल्लीताल में आज जहां शारदा संघ है, वहां 13 दिसंबर 1951 से सदस्यों द्वारा श्रमदान से भवन निर्माण किया गया। आज भी संघ की ओर से स्कूली बच्चों की सबसे बड़ी चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित करने के साथ ही अन्य कार्यक्रम आयोजित कर मेघा को प्रोत्साहन दिया जाता है।