खुद फर्जी लेकिन दूसरों को थम रहा था असली का प्रमाण पत्र, जाति-स्थायी निवास में धड़ल्ले से हो रहे थे इस्तेमाल
आजाद नगर में अंजुमन मोमिन अंसार नामक एक अवैध संस्था, जिसका पंजीकरण 2007 में रद्द हो गया था, सालों से लोगों को फर्जी प्रमाण पत्र जारी कर रही थी। इन प्रमाण पत्रों का उपयोग जाति और स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनवाने में हो रहा था, और संबंधित विभाग के अधिकारी बिना जाँच के इन्हें स्वीकार कर रहे थे। यह मामला विभागीय लापरवाही को दर्शाता है।

गणेश जोशी, हल्द्वानी। अंजुमन मोमिन अंसार आजाद नगर नाम की संस्था स्वयं में अवैध थी यानी की पूरी तरह झूठी थी। ऊपर से इसका पंजीकरण भी 2007 में ही रद हो गया। इसके बावजूद संस्था का कथित संचालक लोगों को उनके पते, जाति, जन्म तिथि से संबंधित जानकारी की सत्यता का प्रमाण पत्र थमा रहा था। इसे सिस्टम की खामी कहें या घोर अनदेखी, इस अवैध प्रमाण पत्र को कई वर्षों से जाति से लेकर स्थायी निवास प्रमाण बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा था। संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की ओर से आंखमूंदकर इसका सत्यापन भी करवाया जा रहा था।
कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत के बनभूलपुरा में स्थायी निवास पत्र के अवैध रैकेट का भंडाफोड़ किए जाने के बाद फर्जीवाड़े की जांच कई स्तर पर शुरू हो गई है। एसडीएम राहुल साह की ओर से स्थायी निवास प्रमाण पत्रों में लगे दस्तावेजों की जांच की जा रही थी।
ऐसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
इसी दौरान उन्होंने देखा कि 2024 में बने एक महिला का स्थायी निवास पत्र बनाए जाने में इसी फर्जी संस्था अंजुमन मोमिन अंसार आजाद नगर की ओर से जारी प्रमाण पत्र भी लगा है। जब प्रशासनिक अधिकारी इसकी हकीकत जानने निकले तो फर्जीवाड़ा का पूरा बड़ा खेल सामने आ गया।
संस्था के अध्यक्ष व महासचिव की पहले ही निधन हो चुका था।ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब संस्था ही पूरी तरह फर्जी और इसके प्रमाण पत्रों को धड़ल्ले से जाति व स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के लिए कैसे उपयोग में लाया जा रहा था। हालांकि अब प्रशासनिक अधिकारी इस मामले की गहन जांच का दावा कर रहे हैं। ऐसे में यह भी जांच हो सकती है कि साहुकारा लाइन में परदे की दुकान चलाने वाली संस्था के कथित संचालक रईस अहमद अंसारी के साथ कितने निजी और सरकारी विभागों के कर्मचारी जुड़े हुए हैं।सवाल यह भी है कि आखिर एक निजी संस्था को किसने प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार दे दिया।
बिजली का बिल भी पूरी तरह नहीं था स्पष्ट
इस स्थायी निवास प्रमाण पत्र में महिला की ओर से बिजली के जिस बिल का प्रयोग किया था, वह भी स्पष्ट नहीं था। उसमें कुछ भी नाम व नंबर नहीं दिखाई दे रहे थे। हालांकि पहले भी फर्जी तरीके से स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाने वाले फैजान मिकरानी को ऊर्जा निगम का ही एक कर्मचारी दिनेश सिंह बिजली के बिल उपलब्ध करवाता रहा है। हालांकि उसके विरुद्ध भी कार्रवाई हुई है।
हजाराें की संख्या में इस्तेमाल होने की आशंका
प्रशासन को आशंका है कि वर्षों से यह व्यक्ति हजारों ऐसे सत्यापन के लिए प्रमाण पत्र बनवा चुका है। इसका सबसे अधिक उपयोग जाति प्रमाण पत्रों को बनवाने में लगाया गया है। इस तरह के प्रमाण पत्रों को बनवाने के लिए वह किसी तरह के अन्य दस्तावेज भी नहीं लेता था। इसके एवज में वह करीब 200 से 500 रुपये लेता था। एसडीएम राहुल साह ने बताया कि इस मामले में संबंधित पटवारियों की लापरवाही मिलने पर कार्रवाई भी की जाएगी।
फर्जी तरीके से स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के खेल और भी होंगे
जिस तरह फर्जी तरीके से स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाने को लेकर दो रैकेट पकड़े जा चुके हैं।जबकि अभी 200 से 250 प्रमाण पत्रों की ही जांच हुई है। अगर जांच करीब दो हजार प्रमाण पत्रों की हो जाएगी तो ऐसे में न जाने कितने खेल सामने आ जाएंगे।

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