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    गुटबाजी : हल्द्वानी में हरदा तो रुद्रपुर-काशीपुर में इंदिरा हृदयेश ने नहीं रखा कदम

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 22 Nov 2018 11:27 AM (IST)

    कुमाऊं में तीनों नगर निगम सीटों पर कांग्रेस की हार की बड़ी वजह पार्टी के बड़े नेताओं के बीच बढ़ती गुटबाजी भी है।

    गुटबाजी : हल्द्वानी में हरदा तो रुद्रपुर-काशीपुर में इंदिरा हृदयेश ने नहीं रखा कदम

    आशुतोष सिंह, हल्द्वानी : कुमाऊं में तीनों नगर निगम सीटों पर कांग्रेस की हार की बड़ी वजह पार्टी के बड़े नेताओं के बीच बढ़ती गुटबाजी भी है। यदि चुनाव में इसे नजरंदाज कर बड़े नेताओं ने तीनों सीटों पर प्रचार किया होता तो शायद पार्टी को इतनी बड़ी हार का सामना न करना पड़ता। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने तो चुनाव से तीन दिन पूर्व इस गुटबाजी का ठीकरा भी प्रदेश नेतृत्व के सिर फोड़ दिया था।

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    प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में तराई-भाबर में जितना प्रभाव पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का है, उतना अन्य नेताओं का नहीं है। विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद हरीश रावत इन क्षेत्रों में लगातार सक्रिय हैं और उनके समर्थक आज भी उन्हें पहले जैसा ही सम्मान और स्नेह देते हैं। वहीं पिछले कुछ महीनों से नेता प्रतिपक्ष भी तराई में लगातार जनसंपर्क और सभाएं कर रही थीं। पार्टी कार्यकर्ता हर जगह पूरे जोश के साथ उनका स्वागत कर रहे थे और उनकी बात सुन रहे थे। यह और बात है कि तमाम लोग इस सक्रियता के पीछे लोकसभा चुनाव की तैयारी को वजह बताते हैं, लेकिन नगर निगम चुनाव में हरीश रावत की हल्द्वानी से और इंदिरा की रुद्रपुर एवं काशीपुर से दूरी ने कहीं न कहीं कांग्रेस को बड़ी क्षति पहुंचाई है। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि हल्द्वानी से कांग्रेस प्रत्याशी सुमित के रोड शो में हरीश रावत शामिल होते तो निश्चित रूप से एक अच्छा संदेश जाता और पार्टी का प्रदर्शन और बेहतर होता।

    यही बात डॉ. इंदिरा हृदयेश के लिए भी कही जा रही है। यदि वह रुद्रपुर और काशीपुर में कुछ समय दे देतीं तो वहां का भी दृश्य बदल सकता था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उक्त क्षेत्रों में दोनों नेताओं की गहरी पैठ है, लेकिन हल्द्वानी से रावत की और रुद्रपुर-काशीपुर से नेता प्रतिपक्ष की दूरी ने यह साबित कर दिया कि पार्टी में प्रदेश स्तर के नेताओं में अभी भी गुटबाजी कायम है। विधानसभा चुनाव में पार्टी के इतने खराब प्रदर्शन के बावजूद बड़े नेता इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा भाजपा ने निगम चुनाव में उठाया।

    भाजपा ने इन क्षेत्रों में पार्टी के स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के सभी बड़े नेताओं की फौज उतार दी। उसने राष्ट्रीय स्तर के सिर्फ उन्हीं नेताओं को बुलाया, जिनका स्थानीय स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं पर अच्छा-खासा प्रभाव था। इनमें राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू शामिल थे। अनिल बलूनी का हल्द्वानी में आवास है और कुछ माह पूर्व ही उन्होंने हल्द्वानी से देहरादून के लिए एक नई ट्रेन चलवाकर यहां के लोगों के दिल में जगह बना ली थी। वहीं श्याम जाजू पिछले तीन साल से प्रदेश प्रभारी के रूप में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से रूबरू होते रहे हैं। इसके उलट कांग्रेस ने राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव त्यागी, प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह और राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी को अपना चेहरा बनाया।

    डॉ. इंदिरा और प्रकाश जोशी को छोड़ दें तो अन्य दोनों नेताओं का इस क्षेत्र पर कोई खास प्रभाव नहीं था। राजीव त्यागी इस क्षेत्र के लिए नए थे तो अनुग्रह नारायण सिंह महज छह माह पूर्व ही इस प्रदेश के प्रभारी बनाए गए थे। इन नेताओं से तुलना करें तो हल्द्वानी में हरीश रावत और रुद्रपुर-काशीपुर में इंदिरा इनकी अपेक्षा काफी प्रभावी होतीं।

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