Dilip Kumar News: जब फिल्म मधुमती की शूटिंग के लिए दिलीप कुमार के साथ पूरा क्रू पहुंचा था नैनीताल
Dilip Kumar News ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार नहीं रहे। अपने संजीदा और भवपूर्ण अभिनय से दर्शकों के दिलों पर दशकों तक राज करने वाले दिलीप साहेब ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक फिल्में दीं। 1958 में आई मधुमती उनकी एक ऐसी ही नायाब फिल्म है।
हल्द्वानी जागरण संवाददाता : Dilip Kumar News : ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार नहीं रहे। अपने संजीदा और भवपूर्ण अभिनय से दर्शकों के दिलों पर दशकों तक राज करने वाले दिलीप साहेब ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक फिल्में दीं। 1958 में आई मधुमती उनकी एक ऐसी ही नायाब फिल्म है। तब फिल्म की शूटिंग के लिए पूरा क्रू नैनीताल पहुंचा था। वह नैनीताल के लिए भी बेहद खास मौका था। पहली बार नैनीताल में बिग बजट और बेहतरीन कलाकारों से सजी फिल्म शूट हो रही थी। विख्यात निर्देशक विमल रॉय निर्देशित फिल्म रिलीज के साथ ही बिग हिट साबित हुई। फिल्म ने बीते सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। मधुमती 37 सालों तक सर्वाधिक फिल्मफेयर जीतने वाली फिल्म बनी रही। हालांकि बाद में डीडीएलजी ने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
नैनीताल के रंगकर्मी सुरेश गुरुरानी बताते हैं कि शूटिंग के दौरान दिलीत कुमार मल्लीताल में आयोजित एक महफ़िल में शामिल हुए। वह करीब तीन घंटे तक मौजूद रहे और महफिल का जमकर लुत्फ उठाया। प्रसिद्ध रंगकर्मी जहूर आलम कहते हैं फिल्म मधुमति का गीत चढ़ गयो पापी बिछुवा...की कोरियोग्राफी टीम में प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन उप्रेती भी शामिल रहे। यही वजह है कि फ़िल्म के इस गीत का पूरा फिल्मांकन पहाड़ी तर्ज पर किया गया। मधुमति उस दौर की सबसे हिट फिल्म थी। फ़िल्म में दिलीप कुमार के साथ बैजयंती माला, जॉनी वॉकर और प्राण ने भी संजीदा अभिनय किया है। इस फ़िल्म ने उस दौर में चार करोड़ का ग्रॉस कलेक्शन किया था।
इन इलाकों में हुई ज्यादातर फिल्म की शूटिंग
मधुमती फ़िल्म की ज्यादातर शूटिंग नैनीताल, रानीखेत, घोड़ाखाल, वैतरणा डैम में हुई थी। मधुमती पुनर्जन्म पर आधारित हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म थी। ऐसे में फिल्म की शूटिंग के लिए विमल दा को सबसे बेस्ट लोकेशन उत्तराखंड के पहाड़ की वादियां ही लगी। तब फिल्म की शूटिंग के दौरान, विमल दा और दिलीप साहेब यहां के स्थानीय लोगों से भी मिलते थे। मधुमती से पहले बिमल रॉय ने दिलीप कुमार और वैजयंती माला के साथ 'देवदास' बनायी थी, जो 1955 में रिलीज़ हुई थी। शराब में बर्बाद आशिक़ देवदास की इस कहानी ने बिमल दा को भी बर्बाद कर दिया था।
डॉक्टर ने दिलीप साहेब को दिया था ये सुझाव
दाग़, अमर, मुसाफिर, देवदास, और दीदार जैसी फिल्मों में भावुकता भरे किरदार निभाने के बाद ट्रेजिडी किंग को उनके डॉक्टर ने कुछ हल्की-फुल्की भूमिकाएं निभाने को कहा था। फिर उन्होंने मधुमती चुनी क्योंकि इसकी शूटिंग नैनीताल में होनी थी। स्वास्थ्य और फिल्म के सब्जेक्ट दोनों लिहाज से फिल्म उनके लिए बेहतर थी। फिल्म में दिलीप कुमार की हर अदा, मधुमती की तस्वीर बनाते समय खुद में लजाना, गाने में अपनी देह भाषा का इस्तेमाल सब बेहतरीन ।
फिल्म की शूटिंग के दौरान हुआ था ये वाकया
फ़िल्म शूटिंग के बाद अक्सर बिमल रॉय आम लोगों से मिलते और उनसे बातें करते थे। एक दिन ऐसे ही बातों-बातों में उन्हें गांव के सपरंच से पता चला कि एक अनाथ लड़की की शादी है। मगर कोई रिश्तेदार न होने के चलते उसकी शादी में अड़चन आ रही है। जिस दिन उस लड़की की शादी थी उस दिन की शूटिंग ख़त्म कर बिमल रॉय ने प्राण से उनके साथ चलने को कहा। प्राण भी बिना कुछ पूछे उनके साथ गाड़ी में चल दिए। कुछ देर के बाद वो उस जगह पहुंचे जहां उस अनाथ लड़की की शादी हो रही थी। जहां बिमल रॉय ने प्राण से कहा- 'भैया थोड़ा पुण्य कमा लो, इस बच्ची के भाई बन जाओ और इसका कन्यादान कर दो। मैं इसका धर्म पिता बन बाकी की रस्में निभा लेता हूं।
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