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    World Elephant Day 2021 : कार्बेट नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण की जिम्‍मेदारी हाथियों पर

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 12 Aug 2021 05:58 PM (IST)

    World Elephant Day 2021 बाघों के लिए प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क में हाथियों का भी अपना एक अलग संसार है। जंगली हाथियों के साथ-साथ पालतू हाथियों का कार्बेट की जैव विविधता में बड़ा योगदान है। कार्बेट में यहां के पालतू 11 हाथी बाघों की सुरक्षा की सबसे अहम कड़ी हैं।

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    WORLD ELEPHANT DAY 2021 : Corbett National Park में बाघों के संरक्षण की जिम्‍मेदारी हाथियों पर

    रामनगर, त्रिलोक रावत : World Elephant Day 2021 : बाघों के लिए प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क में हाथियों का भी अपना एक अलग संसार है। जंगली हाथियों के साथ-साथ पालतू हाथियों का कार्बेट की जैव विविधता में बड़ा योगदान है। कार्बेट में भले ही 1226 जंगली हाथी मौजूद है लेकिन यहां के पालतू 11 हाथी बाघों की सुरक्षा की सबसे अहम कड़ी हैं। जंगल की सुरक्षा इन्हीं पालतू एवं प्रशिक्षित हाथियों की गश्त के बूते होती है। इनमें आशा, अलबेली, पवनपरी, लक्षमा, गोमती, सोनाकली, कपिला, कंचभा, तुंगा, गंगा, शिवगंगे मादा हाथियों के बीच रामा, गजराज, भीष्मा, करना व सावन नर हाथी शामिल है। दो अगस्त को चौथे साल में प्रवेश कर चुके सावन को छोड़कर सभी हाथी प्रशिक्षित है। कार्बेट प्रशासन ने अब सावन को भी प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर दी है।

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    कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में पालतू हाथी भारत सरकार के बाघ संरक्षण प्रोजेक्ट में अहम योगदान दे रहे हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं कि हाथियों के बिना सीटीआर में बाघ व अन्य वन्य जीवों के संरक्षण की सोच अधूरी ही है। तभी तो फक्र की बात भी है कि कार्बेट बाघों की संख्या के मामले देश के नेशनल पार्कों में टॉप पर है। कार्बेट के जंगल के भीतर नदी-नाले बरसात में ऊफान पर रहते हैं। यहां पैदल आवागमन के लिए बने कच्चे मार्ग तक बह जाते हैं। वाहन तक नहीं जा पाते हैं। ऐसे में इन्हीं पालतू हाथियों के जरिए कार्बेट के जंगलों के भीतर वन चौकियों में रह रहे स्टाफ को राशन पहुंचाया जाता है। गश्त करने वाले कर्मियों को भी नदी-नालों से यही हाथी आराम से पार कराते हैं। इतना ही नहीं घने जंगलों, झाडिय़ों व नदी-नाले होने की वजह से वाहनों से गश्त नहीं हो पाती है। हाथियों से ही वनकर्मी घने क्षेत्रों में गश्त करते हैं। इसके अलावा घायल बाघ, गुलदार व हाथी दिखने पर उन्हें रेस्क्यू करने के लिए यही पालतू हाथी काम आते हैं। गांव में बाघ व गुलदार को रेस्क्यू करने के लिए भी यही हाथी काम आते हैं। यहां तक कि बिगड़ैल जंगली हाथियों को भी काबू यही हाथी करते हैं।

    हथिनियों की वजह से कार्बेट से राजाजी पार्क शिफ्ट हुए दो बाघ

    उतराखंड में पहली बार इस साल टाइगर शिफ्टिंग की सफल योजना में भी आशा, अलबेली, पवनपुरी व लक्षमा का योगदान रहा। चारों हथिनियों को पुराना अनुभव होने की वजह से ही रेस्क्यू टीम द्वारा इनकी मदद ली गई। हथिनियों ने बाघ को ढूंढऩे में काफी मदद की। बाघ के सामने निडरता से खड़ी रहने वाली इन हथिनियों पर बैठकर ही वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्साधिकारी दुष्यंत शर्मा ने दो बाघों को टे्रंकुलाइज किया। हालांकि आशा को छोड़कर इन तीनों हथिनियों को अब विभाग ने 60 साल आयु पूरी होने पर रिटायर कर दिया है। विभाग ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के माफिक ही इन तीन हथिनियों को भी अधिकारियों की मौजूदगी में ससम्मान विदाई दी थी। अब इन हथिनियों को विभाग ने कालागढ़ कैंप में रखा है। दुष्यंत शर्मा बताते हैं कि रिटायर हो चुकी तीन हथिनियों से जरूरत पडऩे पर ही हल्का कार्य ही कराया जाता है। क्योंकि हाथी जितना मूवमेंट करते रहेंगे उतना ही स्वस्थ रहेंगे।