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    Deghat revolution anniversary : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देघाट क्रांति ने फूंकी थी नई उर्जा, अल्मोड़ में आठ सेनानियों ने दी थी शहादत

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 19 Aug 2021 08:25 AM (IST)

    Deghat revolution anniversary अल्मोड़ा के देघाट सालम व सल्ट की क्रांति ने आजादी के आंदोलन को नई गति प्रदान की। तीनों जगहों पर हुए गोलीकांड में आठ लोग ...और पढ़ें

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    Deghat revolution anniversary : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देघाट क्रांति ने फूंकी थी नई ऊर्जा

    गणेश पांडे, हल्द्वानी : Deghat revolution anniversary : अल्मोड़ा जिले के देघाट, सालम व सल्ट की क्रांति ने आजादी के आंदोलन को नई गति प्रदान की। तीनों जगहों पर हुए गोलीकांड में आठ लोग शहादत दी थी। 1939 से 1942 तक जब आंदोलन चरम पर था, अल्मोड़ा के चौकोट में आजादी की आवाज बुलंद रही। मई, 1942 में खुशाल सिंह मनराल के नेतृत्व में चौकोट के उदयपुर गांव में दामोदर स्वरूप की अध्यक्षता में कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ। विनोद नदी के किनारे बने पंडाल को कमला नेहरूनगर नाम दिया गया।

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    9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन का उद्घोष हुआ तो आंदोलनकारी नए तेवरों के साथ उससे जुड़े। मनराल ने डांडी यात्रा में महात्मा गांधी के साथ रहे ज्योतिराम कांडपाल के संकल्प को याद दिलाते हुए करो या मरो की तर्ज पर तीब्र आंदोलन का आह्वान कर दिया। इसी के तहत 19 अगस्त, 1942 को आंदोलनकारियों ने विनोद नदी के समीप देवी मंदिर में सभा की घोषणा की। खुफिया विभाग ने भिकियासैंण पुलिस को रिपोर्ट दी कि चौकोट में अंग्रेजी हुकूमत खतरे में है। 18 अगस्त की रात ही फोर्स जुट गई। करीब पांच हजार की जनता जुटी। पुलिस-प्रशासन ने जनता को चारों तरफ से घेर लिया, लेकिन 25 सिपाही, एक हेड कांस्टेबल, कानूनगो व तीन पटवारी सत्याग्रहियों को पकडऩे की हिम्मत न जुटा पाए।

    बंदी बनाने को बनानी पड़ी रणनीति

    प्रशासन ने आंदोलन का नेतृत्व कर रहे खुशाल मनराल को वार्ता के बहाने बुलाया और पुलिस चौकी में बंदी बना दिया। खबर फैलते ही समीपवर्ती गांवों से हजारों लोग लाठी-डंडे लेकर आंदोलन स्थल पहुंच गए। पेशकार बचे सिंह ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए रात के अंधेरे में हवा में गोली चलवा दी। भगदड़ मची तो पुलिस व पटवारी ने कुछ दूरी पर बैठे लोगों पर गोली चला दी। भेलीपार गांव के हरिकृष्ण उप्रेती व खलडुवा गांव के हीरामणि की गोली लगने से मौत हो गई थी। 11 लोगों को घायल अवस्था में ही जेल में ठूंस दिया।

    महिलाओं व बच्चों ने तक तानी थी मुठ्ठी

    आंदोलन के मुखिया खुशाल, बंदियों व दो मृतकों को खाटों पर बांधकर प्रशासन 20 अगस्त को उदयपुर के बाणेश्वर महादेव मंदिर के पास पहुंचा। काफिला विनोद नदी किनारे पहुंचते ही उदयपुर के सैकड़ों महिला-पुरुष व बच्चों ने सरकार के खिलाफ नारे लगाए। बंदी आंदोलनकारियों को 21 अगस्त को रानीखेत अदालत ले जाते समय भी जनता ने पुलिस का विरोध किया था।

    देघाट जैसा दृश्य पहले नहीं देखा था : चारू

    घटना के एक सप्ताह बाद पुलिस फिर देघाट पहुंची और ग्रामीणों को बुलाकर बेतों से पीटा। पत्रकार व लेखक चारु तिवारी कहते हैं कि गांव वालों ने देघाट जैसा दृश्य पहले न कभी देखा था न सुना। आजादी के आंदोलन का जब भी जिक्र आएगा देघाट के प्रतिकार को हमेशा याद किया जाएगा।