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    ला नीना का असर: मानसून की विदाई में देरी, इस बार सर्दियों में जमकर होगी बर्फबारी! कड़ाके की ठंड की संभावना

    Updated: Tue, 17 Sep 2024 07:19 PM (IST)

    जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की बारिश में बदलाव देखने को मिल रहा है। मानसून की विदाई में देरी हो रही है और बर्फबारी का क्षेत्र ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रहा है। ला नीना के प्रभाव से इस बार सर्दियों में भारी बर्फबारी हो सकती है। इस बार चार अक्टूबर तक प्रदेश से मानसून के विदा होने की संभावना है।

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    भारी बर्फबारी के रूप में देखा जा सकता है ला नीना का असर (प्रतीकात्मक फोटो)

    रमेश चंद्रा, नैनीताल। बंगाल की खाड़ी में कम वायुदाब की वजह से हिमालयन फुट हिल यानी हिमालय की तलहटी में वर्षा का दौर जारी है। इस बार मानसून राज्य में देरी से 29 सितंबर से चार अक्टूबर के बीच विदा होगा। ला नीना का असर शीतकाल में भारी बर्फबारी के रूप में देखने को मिल सकता है।

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    आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वायुमंडलीय वैज्ञानिक डा नरेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले दिनों हुई भीषण बारिश साइक्लोनिक का प्रभाव था और अब हो रही बारिश बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर के कारण हो रही है। लो प्रेशर का असर सीधा हिमालय की तलहटी में पड़ता है। जिस कारण बारिश होती है।

    जलवायु परिवर्तन का दिखने लगा असर

    पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन के कारण बंगाल की खाड़ी में वायुदाब बनने की प्रक्रिया होने लगी है। इधर जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा असर मानसून की बारिश में नजर आने लगा है। जिस कारण देश के पश्चिमी क्षेत्रों में अधिक बारिश होने लगी है।

    इसके अलावा मानसून के बादल सिमटकर पैचेज यानी खंडित होने लगे हैं। जिस कारण खंड वर्षा इस बार खूब देखने को मिली। अब ला नीना पैर पसारने लगा है। जिसका असर शीतकाल में भारी बर्फबारी के रूप में देखने को मिल सकता है। बहरहाल बर्फबारी पश्चिमी विक्षोभ पर अधिक निर्भर करेगी। यदि शक्तिशाली पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहे तो हिमपात जमकर होने की संभावना बनी रहेगी।

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    ला नीना के चलते तापमान में रहेगी गिरावट

    ला नीना के चलते तापमान में अधिक गिरावट रहेगी। तापमान शून्य से नीचे रहने की आशंका अधिक रहेगी। लिहाजा कड़ाके की ठंड की संभावना रहेगी। मानसून की विदाई इस बार तय समय के बाद होगी। संभवतः चार अक्टूबर तक मानसून विदा हो जाएगा। मानसून की विदाई में देरी की वजह जलवायु परिवर्तन माना जा सकता है।

    ऊंचाई की ओर शिफ्ट होने लगी है बर्फबारी

    वरिष्ठ विज्ञानी डा नरेंद्र सिंह का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी का क्षेत्र ऊंचाई की ओर शिफ्ट होने लगा है। करीब दो दशक पहले तक दो हजार मीटर की ऊंचाई पर शीतकाल में तापमान 30 से 40 दिनों तक शून्य से नीचे बने रहता था। जिसमें अब भारी बदलाव आ गया है।

    जिसके चलते शीतकाल में शून्य तापमान की अवधि सप्ताह से दस दिन के बीच सिमटकर रह गई है और ढाई हजार मीटर वाले ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान करीब 40 दिनों तक शून्य से नीचे रहने रहने लगा है।

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