Diwali 2022: कभी जमकर खरीदे जाते थे, अब शगुन बनकर रह गए खील, बताशे और खिलौने, गिफ्ट पैक ने ले ली इनकी जगह
Diwali 2022 दिवाली में लक्ष्मी और गणेश पूजन में मिठाइयों के साथ खील बताशे और चीनी से बने खिलौनों का भी भोग लगता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। लेकिन अब लोगों की पसंद बदलने लगी हैं। इसलिए खरीदारी सिर्फ शगुन के तौर पर हो रही है।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : Diwali 2022: दीपावली पर बाजार सज चुका है। मां लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियों और दीयों के अलावा एक और चीज है, जो परंपरागत तौर पर खरीदे जा रहे हैं। इसके बिना दिवाली पर पूजा हो ही नहीं सकती। हम बात कर रहे हैं खील-बताशे और खिलौनों की।
घर-घर बंटता है प्रसाद
दिवाली में लक्ष्मी और गणेश पूजन में मिठाइयों के साथ खील, बताशे और चीनी से बने खिलौनों का भी भोग लगता है। पूजा के बाद घर-घर इसी का प्रसाद बांटा जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। दीपावली के कई दिनों के बाद तक भी परिवार के लोग खील को बताशों और खिलौनों के साथ खाते थे। लेकिन अब लोगों की पसंद बदलने लगी हैं। इसलिए इनकी खरीदारी सिर्फ शगुन के तौर पर हो रही है। इससे पीढ़ियों से इनका कारोबार करने वाली व्यवसायी मायूस हैं।
पूजा में होता है इसी का उपयोग
मंगल पड़ाव के व्यापारियों के मुताबिक, पहले हर परिवार दो से पांच किलो बताशे और खिलौने खरीदता था। बहन-बेटियों और पड़ोसियों को त्योहारों पर खूब खील, बताशे और खिलौने उपहार में दिए जाते थे। प्रसाद में खील के साथ बंटने वाले खिलौने बच्चों को काफी पसंद आते थे, क्योंकि ये हाथी, घोड़ा, गाय, बैल, ताजमहल, शेर, मीनार, मछली, बत्तख, झोपड़ी और मुर्गे जैसी आकृति के होते हैं। परंतु अब सिर्फ परंपरा निभाने के लिए थोड़े बहुत ही इनकी खरीदारी हो रही है, क्योंकि पूजा में इनका उपयोग शुभ माना जाता है।
चॉकलेट्स, ड्राईफ्रूट्स की डिमांड ज्यादा
लोग अब लोग खील कम खरीदते हैं। व्यापारियों के मुताबिक, करीब 10 सालों में मिठाइयां, चॉकलेट, बिस्कुट, नमकीन, कुरकुरे और ड्राईफ्रूट्स को लोग ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। इसलिए खील, बताशे और खिलौनों की खरीद सिर्फ शगुन पूरे करने के लिए ही हो रही है। नई पीढ़ी की रुचि खील-बताशों में कम हो गई है।
ये है खील, बताशों का महत्व
खील धान से बनती है। दीपावली से पहले धान की फसल तैयार हो जाती है। इस वजह से मां लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील चढ़ाई जाती है। धन वैभव के दाता शुक्र ग्रह को माना जाता है। शुक्र का प्रमुख धान्य भी धान ही होता है। शुक्र को खुश रखने के लिए दीपावली पूजन में खील को प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। वहीं, बताशे चंद्रमा का प्रतीक है, लिहाजा मान्यता है कि मां लक्ष्मी को बताशे काफी पसंद हैं।
बच्चों की पसंद होते थे चीनी के खिलौने
वहीं, खील, बताशे संग बंटने वाले खिलौने बच्चों की पसंद होती थी। ये हाथी, घोड़ा, गाय, बैल, ताजमहल, शेर, मीनार, मछली, बत्तख, झोपड़ी और मुर्गे जैसी आकृति के होते हैं। ये खाने में कुरकुरे और चीनी की वजह से बहुत मीठे होते हैं। चीनी से चाशनी बनाकर इसे लकड़ी के सांचों में डाल देते हैं, जो ठंडा होने के बाद अपना आकार ले लेते हैं।
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पहले हाथों से खील बनती थी, अब मशीनों से बनती है। परंतु उत्पादन बढऩे के बाद भी बिक्री काफी कम हो गई है। अब सिर्फ शगुन के रूप में खील, बताशे और खिलौने खरीदे जाते हैं। नई पीढ़ी खील-बताशे भी नहीं खाती, सिर्फ प्रसाद के तौर पर थोड़ा-बहुत लोग खा लेते हैं।
- रवि पलडिय़ा, कारोबारी
खील बताशे के साथ खिलौनों को दीपावली पूजन के प्रसाद में चढ़ाया जाता है और इसे शुद्ध माना जाता है। इसी को प्रसाद के रूप में रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटा जाता था। बच्चे इन्हें खूब पसंद करते थे। अब इसकी जगह मिठाई और गिफ्ट्स ने ले ली है। जिससे उनका व्यापार सिर्फ 40 प्रतिशत रह गया है।
- हरीश देवलिया, कारोबारी
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