उत्तराखंड के दीवान सिंह दानू हैं देश के पहले महावीर चक्र विजेता, 15 कबाइलियों को किया था ढेर
First Mahavir Chakra winner Dewan Singh Danu उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ निवासी दीवान सिंह दानू तीन नवंबर 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों से मोर्चा लेते हुए शहीद हो गए थे। मरणोपरांत उन्हें पहला महावीर चक्र प्रदान किया गया था।
हल्द्वानी, जागरण संवादाता : First Mahavir Chakra winner Dewan Singh Danu : उत्तराखंड के सपूतों ने हमेशा देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए बढ़चढ़कर योगदान दिया है। स्व. जनरल बिपिन रावत के बाद अब अनिल चौहान को सीडीएस बनाए जाने के बाद सूबे का मान बढ़ा है। यह मौका प्रदेश उन जवानों को भी याद करने का जिन्होंने देश की सुरक्षा की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। ऐसे ही थे देश के पहले महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह दानू (Dewan Singh Danu)।
कौन थे दीवान सिंह दानू
- दीवान सिंह दानू उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुरदम निवासी थे।
- दीवान सिंह दानू चार मार्च 1943 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए। वह सेना में सिपाही थे।
- 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई।
- तीन नवंबर 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने उनकी प्लाटून पर हमला कर दिया।
- डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया।
- कबाइलियों से युद्ध में दानू ने अदम्य साहस का परिचय दिया। हालांकि इस युव् में वह भी शहीद हो गए।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत आजाद भारत का प्रथम महावीर चक्र प्रदान किया।
- उनकी शहादत का सम्मान करते हुए पं. नेहरू ने उनके पिता उदय सिंह को पत्र भी लिखा था।
क्या लिखा लिखा था नेहरू ने अपने पत्र में
दीवान सिंह दानू के बलिदान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनकी शहादत का सम्मान करते हुए उनके पिता को एक हस्तलिखित पत्र भेजा था। जिसमें उन्होंने लिखा था, हिंद की जनता की ओर से और अपनी तरफ से दुख और रंज में यह संदेश भेज रहा हूं। हमारी दिली हमदर्दी आपके साथ है। देश की सेवा में यह जो बलिदान हुआ है इसके लिए देश कृतज्ञ है। और हमारी यह प्रार्थना है कि इससे आपको कुछ धीरज और शांति मिले।
कुमाऊं रेजीमेंट के इतिहास में है शौय का उल्लेख
दानू के सौर्य के किस्से कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास नामक पुस्तक में भी है। जिसमें लिखा है, दानू ने कबाइलियों से मोर्चे के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी। मुनस्यारी का राजकीय हाईस्कूल बिर्थी उनके नाम से स्थापित है। कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में उनके नाम पर दीवान हाल भी है।