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    राम मंदिर आंदोलन के दौरान जेल में ही मनाई थी दीपावली, वहीं मिली थी ढांचा टूटने की खबर

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 10 Nov 2019 08:34 AM (IST)

    वर्ष 1990 में हम हल्द्वानी से कारसेवा के लिए अयोध्या जा रहे थे। रामलला की जन्मभूमि व उनके दर्शन को सभी बड़े उत्साहित थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने हमें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।

    राम मंदिर आंदोलन के दौरान जेल में ही मनाई थी दीपावली, वहीं मिली थी ढांचा टूटने की खबर

    हल्द्वानी, भानु जोशी : वर्ष 1990 में हम हल्द्वानी से कारसेवा के लिए अयोध्या जा रहे थे। रामलला की जन्मभूमि व उनके दर्शन को सभी बड़े उत्साहित थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने हमें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। जिसके बाद हमें गिरफ्तार कर कई दिनों तक अल्मोड़ा, मजखाली, हवालबाग, बागेश्वर की अस्थायी जेलों में रखा गया। उस बार की दीपावली हम सबने जेल में ही मनाई थी।'

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    यह बात शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम जन्मभूमि आंदोलन का हिस्सा रहे हल्द्वानी के लोगों ने बताई। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में राम जन्मभूमि आंदोलनकारी राजेंद्र कुमार अग्रवाल, धर्मानंद तिवारी, गोविंद सिंह बिष्ट, प्रकाश हर्बोला, विजय भट्ट ने बताया कि यह आंदोलन उनकी आस्था और विश्वास से जुड़ा था। इस लिहाज से आंदोलन से जुड़े लोगों का जोश भी दोगुना था। बड़ी संख्या में कारसेवक देशभर से अयोध्या कूच कर रहे थे। हल्द्वानी से सैकड़ों लोग कारसेवा के लिए निकले, मगर रामपुर से पूर्व ही पुलिस ने सभी को घेर लिया। जिसके बाद उन्हें कई गाडिय़ों में भरकर ले जाया गया। गिरफ्तार किए गए लोगों का काठगोदाम में अलग-अलग ग्रुप बनाया गया। अलग-अलग वाहनों में भरकर अल्मोड़ा, बागेश्वर, मजखाली और हवालबाग में अस्थायी जेल में पहुंचाया गया। आंदोलन की अगुवाई कर रहे लोगों को एक महीने तक जेल में रहना पड़ा। जबकि, जिन पर हल्की धाराएं लगी थी उन्हें दस से बारह दिन बाद रिहा कर दिया गया।

    नहीं टूटा हौसला

    प्रकाश हर्बोला ने बताया कि वर्ष 1990 में हल्द्वानी से कारसेवा के लिए जाने के दौरान सभी को गिरफ्तार किया गया। उन्हें 23 दिन बागेश्वर जेल में रखा गया। मगर, इसके बावजूद उनका हौसला नहीं टूटा और दिसंबर 1992 में वह फिर अयोध्या कार सेवक के रूप में गए।

    ढांचा टूटने की खबर जेल में मिली

    राम जन्मभूमि आंदोलन का हिस्सा रहे राजेंद्र कुमार अग्रवाल ने बताया कि उनके साथ मजखाली जेल में डेढ़ सौ से अधिक लोग बंद थे। अयोध्या में विवादित ढांचा टूटने की खबर उन्हें जेल में ही मिली। जिसके बाद रातभर जश्न मनाया गया।

    बलिदान सफल रहा

    आंदोलन का हिस्सा रहे गोविंद सिंह बिष्ट ने बताया कि कारसेवा के लिए जाते समय गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। 28 दिन जेल में बिताए। परिवार से दूर रहे। कई लोग इस दिन के इंतजार में स्वर्ग सिधार गए। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हमारा संघर्ष और उनका बलिदान सफल बना गया। धर्मानंद तिवारी ने फैसले का स्वागत करते हुए राम जन्मभूमि को आस्था का प्रतीक बताया है।

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