उत्तराखंड की हिमानी नदियाें पाई जाने वाली गोल्डन फिश महाशीर विलुप्ति के कगार पर nainital news
उत्त्तराखंड की हिमानी नदियां पिंडर भागीरथी अलकनंदा सरयू काली और गंगा नदी में पाई जाने वाली टाइगर्स इन वाटर महाशीर का जीवन चक्र इंसानी दखल से प्रभावित हो चुका है।
पिथौरागढ़, जेएनएन : उत्त्तराखंड की हिमानी नदियां पिंडर , भागीरथी , अलकनंदा, सरयू , काली और गंगा नदी में पाई जाने वाली टाइगर्स इन वाटर महाशीर का जीवन चक्र इंसानी दखल से प्रभावित हो चुका है। नौ फीट लंबी और साठ किलो वजन की गोल्डन महाशीर के बचाव के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह सकती है। नदियों में बनने वाले पॉवर प्रोजेक्ट महाशीर के अस्तित्व के लिए संकट बने ही थे इधर अब सड़कों का मलबा इसे मिटाने को तैयार है।
बड़ी नदियों में ठंडे पानी में पाई जाती है महासीर
महासीर उत्त्तराखंड की बड़ी नदियों में ठंडे पानी में पाई जाती है। मैदानी इलाकों तक नदियों तक जाने वाली यह मछली प्रजनन के लिए प्रतिवर्ष पहाड़ी नदियों तक आती हैं। काली नदी में यह जौलजीवी तक ही पाई जाती है। पंचेश्वर में सरयू और काली नदी के संगम से कुछ मछलिया सरयू नदी में मिलती हैं। परंतु काली नदी के सूस और सौर नाम से इस मछली को लेकर कई कथा, कहानियां प्रचलित हैं।
क्या है महाशीर
महाशीर को महासीर भी कहा जाता है। यह सिप्रिनिडाई कुल की टॉर, निओलिसोचिअस और नजीरितोर के सामान्य नाम हैं। यह मछली भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों और मलेशिया व इंडोनेशिया में पाई जाती है। इस मछली का व्यावसायिक रूप में मत्स्य आखेट किया जाता है। इसका मांस महंगा होता है। मध्य प्रदेश में तो इसे राज्य मछली का दर्जा मिला है। नर्मदा नदी पर इनकी संख्या केवल चार फीसद रह बची है। नर्मदा नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए महासीर पूजनीय है। भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली काली नदी में स्थानीय लोग इसे सूस और सौर नाम से पुकारते हैं। सूस और सौर का अर्थ बहुत अधिक खाने वाली मानी जाती है। यहां इसे पूजनीय नहीं अपितु राक्षस माना जाता है।
मछली मारने के अवैध तरीके से है खतरे में
महासीर मछली को जहां जल प्रदूषण से खतरा बना हुआ है। अवैध आखेट, बिजली के करंट , विषैले रसायन , बारू दी विस्फोट से इनका शिकार होता आया है। बीते कुछ वर्षो से काली और सरयू नदी के किनारे सड़कों का कार्य चल रहा है। सड़कों का मलबा बेरोकटोक मलबा डाले जाने से नदी में बढ़ रहा प्रदूषण इनके जीवन के लिए खतरा बन चुका है। पर्यावरणविद इसे लेकर चिंता जताते रहे हैं।
नदियों को प्रदूषण से बचाना होगा
डॉ. धीरेंद्र जोशी, पर्यावरणविद् पिथौरागढ़ ने बताया कि नदियाें को प्रदूषण से बचाना आवश्यक है। जिस तरह से नदियों में सड़कों का मलबा फेंका जा रहा है उससे महासीर को खतरा है। इसके लिए जागरूकता की आवश्यकता है। पर्यावरण प्रेमियों को आगे आना होगा। इसके लिए सरकार और व्यवस्था पर दबाव बनाने के लिए नदी किनारे रहने वाले लोगों को जागरूक करने का अभियान चलना चाहिए। यह सामाजिक संगठनों का दायित्व है।
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