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पहाड़ की शांत वादियों में बढ़ा रिश्तों के कत्ल का सिलसिला, तीन साल में 31 हत्याएं

कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में राजस्व पुलिस वाले क्षेत्रों में रिश्तोंके कत्ल के साथ ही अन्य संगीन आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

By Edited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 07:30 AM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 09:57 AM (IST)
पहाड़ की शांत वादियों में बढ़ा रिश्तों के कत्ल का सिलसिला, तीन साल में 31 हत्याएं
पहाड़ की शांत वादियों में बढ़ा रिश्तों के कत्ल का सिलसिला, तीन साल में 31 हत्याएं

नैनीताल, जेएनएन : कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में राजस्व पुलिस वाले क्षेत्रों में रिश्तोंके कत्ल के साथ ही अन्य संगीन आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। धारी में पत्नी की हत्या के बाद पति के जहर गटकने तथा बागेश्वर में बकरी के विवाद में रिश्तेदार की हत्या की वारदात से सामाजिक मूल्य खत्म होने की धारणा एक बार फिर बलवती हुई है। समाज विज्ञानियों ने आशंका जताई है कि समय के साथ इस तरह की घटनाएं कम नहीं होंगी, बल्कि बढ़ेंगी।
आपराधिक दृष्टि से शांत कुमाऊं के पर्वतीय जिलों के कई क्षेत्रों में अपराध न्यूनतम होने से कानून व्यवस्था का जिम्मा राजस्व पुलिस के हवाले है, मगर पिछले कुछ समय में अब यहां हत्या, दहेज हत्या, लूट, डकैती, दुष्कर्म के साथ ही फिरौती के लिए अपहरण जैसे मामले तक सामने आ चुके हैं। कभी घरों में ताला नहीं लगाने वाले गांवों में अब चोरी की घटनाएं भी होने लगी हैं। मंडलायुक्त कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चम्पावत के राजस्व पुलिस क्षेत्र में 2016 से दिसंबर 2018 तक क्रमश: 207, 319 व 237 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए। पिछले तीन साल में अल्मोड़ा में लूट की छह, हत्या की दस, दहेज हत्या की सात, दुराचार की 12 घटनाएं यह बताने को काफी हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में आपराधिक वारदातें किस तरह बढ़ी हैं।

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मंडलायुक्त कार्यालय पर आधारित रिपोर्ट
डकैती-दो लूट - 18 हत्या - 31 बलवा -दस चोरी -94 दहेज हत्या -15 दुराचार - 15 फिरौती के लिए अपहरण - पांच अन्य धाराओं के मामले - 568 स्वार्थी रवैया

भौतिकवादी सोच, जाति बिरादरी से लगाव खत्म होने की वजह से सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है। इसकी परिणति रिश्तों के कत्ल के रूप में सामने आ रही है। सामाजिक मूल्य खत्म होने, उपभोक्तावादी संस्कृति हावी होने, हर चीज को उपभोग की वस्तु समझना इन घटनाओं की प्रमुख वजहे हैं। यह घटनाएं कम नहीं होंगी, बल्कि बढ़ेंगी।
-प्रो. भगवान सिंह बिष्ट, समाजशास्त्री कुमाऊं विवि

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