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    रिश्‍वत मांगने पर ब्लॉक समन्वयक और बाबू को तीन-तीन साल की जेल, डेढ़-डेढ़ लाख जुर्माना भी

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    Updated: Tue, 16 Apr 2019 09:54 AM (IST)

    जिला जज एवं विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण नरेंद्र दत्त की कोर्ट ने सर्व शिक्षा अभियान के ब्लॉक समन्वयक और क्लर्क को तीन-तीन साल की सजा सुनाई है।

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    रिश्‍वत मांगने पर ब्लॉक समन्वयक और बाबू को तीन-तीन साल की जेल, डेढ़-डेढ़ लाख जुर्माना भी

    नैनीताल, जेएनएन : जिला जज एवं विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण नरेंद्र दत्त की कोर्ट ने विद्यालय के कोटीकरण को दुर्गम से सुगम करने के एवज में रिश्वत मांगने के मामले में सर्व शिक्षा अभियान के संकुल समन्वयक तथा लिपिक को तीन-तीन साल कैद व डेढ़-डेढ़ लाख जुर्माने की सजा सुनाई है।
    अभियोजन के अनुसार, नौ अक्टूबर 2013 को आनंदबाग निवासी हरीश चंद्र सिंह रावत ने सतर्कता अधिष्ठान हल्द्वानी को शिकायती पत्र सौंपा था, जिसमें कहा गया था कि उनकी पत्नी मंजू रावत उच्च प्राथमिक विद्यालय कमलुवागांजा में शिक्षिका हैं। विद्यालय का कोटीकरण सही नहीं होने के एवज में ब्लॉक समन्वयक व लिपिक ने उनसे 25-25 हजार रिश्वत मांगी। प्रारंभिक जांच में आरोप सही पाए जाने पर 20 सितंबर को विजिलेंस ने ब्लॉक समन्वयक भगवान सिंह बोरा व लिपिक नीरज कुमार आर्या को 25-25 हजार रुपये रिश्वत लेते रंगहाथों पकड़ लिया था, जिसके बाद दोनों के खिलाफ एंटी करप्शन एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया।
    अभियोजन की ओर से संयुक्त निदेशक अभियोजन डीएस जंगपांगी की ओर से आठ गवाह पेश किए गए। सोमवार को एंटी करप्शन कोर्ट ने ब्लॉक समन्वयक व लिपिक को दोषी करार दे दिया। साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात के तहत एक-एक साल कठोर कारावास व 50-50 हजार जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना अदा नहीं करने पर एक-एक माह के अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी पड़ेगी। कोर्ट ने दोनों को धारा-13 (एक) व सपठित 13 (दो) के तहत तीन-तीन साल कठोर कारावास व एक-एक लाख रुपये जुर्माने की भी सजा सुनाई है। जुर्माने की यह रकम अदा नहीं करने पर दोषियों को दो-दो माह का अतिरिक्त कारावास भोगना पड़ेगा।

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    बच्चों की वजह से पसीजी कोर्ट
    एंटी करप्शन कोर्ट ने 2013 का मामला होने की वजह से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के पुराने कानून के तहत दोषियों को सजा सुनाई। एंटी करप्शन लॉ 2018 में संशोधित किया गया। संशोधित कानून के अनुसार न्यूनतम सजा चार साल है। कोर्ट ने फैसले में साफ लिखा है कि दोषियों के छोटे बच्चों को देखते हुए कम सजा दी जा रही है। साथ ही टिप्पणी की कि उनके कृत्यों की सजा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए।
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