Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्‍तराखंड के इस गांव में आजादी से पहले से बन रहे हैं तांबे के बर्तन, अनूठा है इनका हुनर

    उत्‍तराखंड के बागेश्वर जिले के खर्कटम्टा गांव में आज भी तांबे से बनने वाले बर्तनों की गूंज दूर घाटियों तक सुनाई पड़ती है।

    By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 02 Sep 2020 01:55 PM (IST)
    उत्‍तराखंड के इस गांव में आजादी से पहले से बन रहे हैं तांबे के बर्तन, अनूठा है इनका हुनर

    बागेश्वर, जेएनएन : उत्‍तराखंड के बागेश्वर जिले के खर्कटम्टा गांव में आज भी तांबे से बनने वाले बर्तनों की गूंज दूर घाटियों तक सुनाई पड़ती है। आग में तपने के बाद तांबे पर कुशल कारीगरों के हाथ जब लगते हैं, तो हर रोज की दिनचर्या में काम आने वाले अनेक प्रकार के बर्तनों में ढलते चले जाते हैं। आजादी से पहले की ताम्र शिल्प की इस अद्भुत कला को इस गांव में तीन परिवार आज तक भी संजोए हुए हैं। लेकिन कोरोना के कारण धंधा जरूर मंदा हुआ है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

     

    खर्कटम्टा गांव को ताम्र शिल्पियों के गांव के नाम से जाना जाता है। आजादी से पहले खर्कटम्टा समेत जोशीगांव, देवलधार, टम्टयूड़ा, बिलौना आदि गांवों में ताम्र शिल्पी, तांबे से परम्परागत तरीके के उपयोगी बर्तन गागर, तौले, वाटर फिल्टर के सांथ ही पूजा, धार्मिक अनुष्ठान एवं वाद्य यन्त्र, तुरही, रणसिंघी बनाते थे। इस काम में महिलाएं भी उनकी मदद किया करती थी। तब ताम्र शिल्प उनका परम्परागत उद्यम माना जाता था।

     

    आजादी के बाद यह उद्यम काफी फैला भी और अपने औजारों को साथ लेकर शिल्पी भी गांव-गांव जाकर लोगों के तांबे के पुराने बर्तनों की मरम्मत किया करते थे। खर्कटम्टा गांव के 62 साल की उम्र के अनुभवी शिल्प कारीगर सुंदर लाल बताते हैं कि पहले तांबे का काम हर घर में होता था। धीरे-धीरे युवा पीढ़ी बाहर नौकरी में लगे तो यह काम कम होते चला गया। अब गांव में सिर्फ तीन परिवार ही इस काम को कर अपनी आजीविका जुटा रहे हैं। शिल्प कारीगर सुंदर लाल को उनकी शिल्पकला के लिए उत्तराखंड सरकार के सांथ ही उद्योग विभाग से भी सम्मानित किया गया है।

     

    ग्राम प्रधान खर्कटम्टा मनोज कुमार ने बताया क‍ि ताम्र व्यवसाय को उसकी पहचान दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने एससीएसटी हब योजना बनाई है ताकि ताम्र शिल्पियों को इसका फायदा मिल सके। इस योजना के तहत हस्तनिर्मित तांबे से बने पूजा पात्रों को चारधाम में बेचा जाएगा।

     

    पैतृक व्यवसाय को रखा जिंदा

    तांबे व पीतल को जोड़कर बने गंगा जमुनी उत्पाद और पात्रों के विभिन्न हिस्सों को गर्म कर व पीटकर जोड़ने की तकनीकी इस शिल्प व शिल्पियों की खासियत होती है। कारीगर सागर चंद्र बताते हैं कि अब गिने-चुने कारीगर ही विपरीत परिस्थितियों में भी अपने इस पैतृक व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं। वो बताते हैं कि तांबे से वो गागर, तौला, फिल्टर, परात, सुरई, फौला, वाद्ययंत्र रणसिंह, तुतरी, ढोल, मंदिर की सामग्री व शो-पीस आदि बनाते हैं जो कि अत्यंत शुद्ध माने जाते हैं।

     

    एससीएसटी हब योजना

    महप्रबंधक उद्योग जेपी दुर्गापाल ने बताया कि एमएसएमई मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से एससी-एसटी उद्यमियों के लिए नेशनल एससीएसटी हब योजना बनाई है। एससी-एसटी उद्यमियों हेतु संचालित नेशनल एससीएसटी हब योजना के साथ ही अन्य योजनाओं की भी जानकारी समय-समय पर दी जाती है। इस योजना के अंतर्गत एससी-एसटी उद्यमियों द्वारा संचालित सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों से भारत सरकार के अधीन कार्यरत समस्त कार्यालयों में राजकीय क्रय में चार प्रतिशत क्रय किया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही एससी-एसटी उद्यमियों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मेला प्रदर्शनी में प्रतिभाग हेतु इस योजना के अंतर्गत सहायता उपलब्ध है।