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    सितंबर 1987 से जुलाई 1988 तक तीन बार दरक चुकी है चायना पीक की पहाड़ी nainital news

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 30 Jan 2020 07:16 PM (IST)

    चायना पीक की पहाड़ी दरकने के बाद तलहटी में प्रतिबंध के बाद हुए व्यावसायिक निर्माण से जिला विकास प्राधिकरण की विवादित कार्यशैली फिर से उजागर हुई है।

    सितंबर 1987 से जुलाई 1988 तक तीन बार दरक चुकी है चायना पीक की पहाड़ी nainital news

    नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल की भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील चायना पीक की पहाड़ी दरकने के बाद तलहटी में प्रतिबंध के बाद हुए व्यावसायिक निर्माण से जिला विकास प्राधिकरण की विवादित कार्यशैली फिर से उजागर हुई है। सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी तथा हाई कोर्ट के समीप हुए इन निर्माणों से साफ है रसूखदार कितने प्रभावशाली हैं। कानून व सिस्टम को ठेंगा दिखाकर बनाए गए इन निर्माणों पर अब प्रकृति की दृष्टि पड़ी तो हड़कंप मचा है।

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    भूस्खलन से चायना पीक में हुआ था धंसाव

    पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत बताते हैं कि चायना पीक की पहाड़ी में सितंबर 1987, मार्च व जुलाई 1988 में जबर्दस्त भूस्खलन हुआ था। भूस्खलन से चायना पीक की पहाड़ी में धंसाव आ गया। जो एक दरार के रूप में सामने आई। दरार 65 मीटर लंबी, डेढ़ मीटर चौड़ी व ढाई मीटर गहरी थी। भूस्खलन से मलबा बु्रकहिल, मेलरोज कंपाउंड, स्विस व एल्सकोर्ट तक भर गया था। भूस्खलन की वजह से पहाड़ी पर पेड़ टेढ़े हो गए थे। जिसके बाद पूरे इलाके में निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

    नैनीताल में ग्रुप हाउसिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित

    इस पहाड़ी पर शोध कर चुके प्रो. रावत के अनुसार निर्माण की अंधाधुंध बाढ़ आने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। 1995 में सर्वोच्च अदालत ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए कहा कि नैनीताल बेहद संवेदनशील है। बलियानाले का युद्धस्तर पर ट्रीटमेंट होना चाहिए। नैनीताल में ग्रुप हाउसिंग को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। डॉ. रावत के अनुसार उन्होंने चायना पीक की पहाड़ी की तलहटी में पंत सदन तोडऩे का भी विरोध किया था। उन्होंने फिर चेताया कि हनुमानगढ़ी की पहाड़ी, निहालनाला में धंसाव हो रहा है। यदि नैनीताल-रानीबाग रोपवे बनाया गया तो नैनीताल का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। सरोवर टूटा तो हल्द्वानी के तमाम ग्रामीण इलाके तक बह जाएंगे।

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