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ब्रिटिश महिला ने खूंखार बाघ का किया था शिकार, बहुत ही रोमांचक है कहानी, आप भी पढ़ें

हल्द्वानी में पिछले एक महीने से गुलदार का आतंक है। शिकारी की एक गोली उसे लग भी चुकी लेकिन बॉडी मिलने तक रहस्य से पर्दा उठना असंभव ही है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 15 Jul 2020 02:18 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jul 2020 02:18 PM (IST)
ब्रिटिश महिला ने खूंखार बाघ का किया था शिकार, बहुत ही रोमांचक है कहानी, आप भी पढ़ें
ब्रिटिश महिला ने खूंखार बाघ का किया था शिकार, बहुत ही रोमांचक है कहानी, आप भी पढ़ें

हल्द्वानी, जेएनएन : हल्द्वानी में पिछले एक महीने से गुलदार का आतंक है। शिकारी की एक गोली उसे लग भी चुकी लेकिन बॉडी मिलने तक रहस्य से पर्दा उठना असंभव ही है। हो सकता है वो कहीं घने जंगल में बेसुध पड़ा हो या फिर घायल हालत में जंगल के अंदर भटक रहा होगा। उत्तराखंड में आदमखोरों के आतंक और उनके खात्मे के पन्ने पलटते हुए जब हम साल 1925 में पहुंचेंगे तो पता चलेगा कि एक ब्रिटिश महिला ने खूंखार बाघ का शिकार किया था।

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महिला भी कोई आम नहीं बल्कि उस समय के डीएफओ की पत्नी थी। इसे किस्मत कहें या अंग्रेज महिला का अचूक निशाना। क्योंकि नरभक्षी बाघ की मौत बंदूक की अंतिम गोली से हुई थी। निशाना चूकता तो पति-पत्नी के बाघ का निवाला बनने में देर नहीं लगती। पेड़ पर बने मचान को तो वह पहले ही गिरा चुका था। किस्से कहानियों में तो यह घटना अक्सर चर्चाओं में रही लेकिन तीन साल पहले लंदन की लाइब्रेरी में मिली किताबों ने इसके फोटो सहित प्रमाण भी उपलब्ध करवा दिए थे।

1925 में हल्द्वानी और आसपास नरभक्षी बाघ का आतंक था। तब हल्द्वानी वन प्रभाग के डीएफओ ईए स्माइथिस थे। बाघ के खात्मे को कई शिकारी बुलाए गए लेकिन सभी नाकाम रहे। जिसके बाद स्माइथिस दंपति ने खुद ही शिकार करने का इरादा किया। तीस दिसंबर 1925 शिकार की रात जौलासाल (चोरगलिया) के जंगल में एक पेड़ पर स्माइथिस दंपति मचान पर बंदूकें लेकर बैठा था। देर रात नरभक्षी उस पेड़ के नीचे आ गया। पति-पत्नी ने गोली चलाना शुरू किया तो गुस्साया नरभक्षी पेड़ पर चढने लगा।

वह मचान के बिल्कुल नजदीक आ पहुंचा। इससे पहले कि वह झपट्टा मारता स्माइथिस ने उस पर गोली चला दी। गोली बाघ के पंजे को चीरती निकल गई और वह नीचे जा गिरा। इसी बीच मचान भी टूट गई और पति-पत्नी भी नीचे जा गिरे। जैसे ही जख्मी बाघ ताकत जुटाकर हवा में उछला, ऑलिव ने उस पर सधा निशाना झोंक ढेर कर दिया। स्माइथिस-ऑलिव की उस बहादुरी की याद में जौलासाल में एक स्मारक भी बना है।

दंपति ने लंदन जाकर लिखी थी किताब

डीएफओ स्माइथिस ने लंदन जाकर 1936 में अ टाइगर दैट क्लाइंब्ड अ ट्री और ऑलिव ने 1953 में टाइगर लेडी नामक किताब लिखी थी। दोनों किताबों में उस घटना का पूरा जिक्र था। लंदन की एक लाइब्रेरी में किताब अब भी है। 

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