यहां बेताल के रूप में होती है बिरखम की पूजा, कुमाऊं से पूजा के लिए पहुंचते हैं श्रद्धालु
चम्पावत नगर में बिरखम (वीर का खंभा) संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। लेकिन चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी दूर लोहाघाट विकाख खंड के गलचौड़ा नामक स्थान पर बिरखम की पूजा मां भगवती के बेताल के रूप में पूजा होती है।
चम्पावत, संवाद सहयोगी : चंद राजाओं की राजधानी रहे चम्पावत नगर में बिरखम (वीर का खंभा) संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। लेकिन चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी दूर लोहाघाट विकाख खंड के गलचौड़ा नामक स्थान पर बिरखम की पूजा मां भगवती के बेताल के रूप में पूजा होती है। इस बेताल को गलचौड़ा कहा जाता है।
सुईं विशुंग की चार द्योली के 52 वीरों में गलचौड़ा और बुड़चौड़ा समेत कई बेताल शामिल हैं। मां भगवती की पूजा तभी पूरी मानी जाती है जब उसके वीर यानि गणों की भी पूजा की जाए। गलचौड़ा में छोटे बड़े दो बिरखम हैं। बड़े बिरखम को गलचौड़ा बेताल रूप में पूजा जाता है। विशेष पर्वों में शिवलिंग की भांति बिरखम को पवित्र जल से स्नान कराकर चंदन रोली का लेप कराया जाता है। दशहरे के दिन यहां दूध और चावल की गाल दी जाती है। यहां पूजा अर्चना के लिए चम्पावत जिले के अलावा, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा से भी लोग पहुंचते हैं।
बिरखम को शक्ति के रूप में पूजे जाने का संभवत: यह जिले का पहला मामला है। माना जाता है कि तत्कालीन शासकों ने अपनी वीरता को प्रदर्शित करने के लिए इन खंभों का निर्माण करवाया था। मध्य हिमालयी क्षेत्र में विरखम को वीर का खंभा के नाम से जाना जाता है। चंदकालीन बिरखम अभिलेखों में इन्हें कीर्ति स्तंभ कहा गया है। कुमाऊं का क्षेत्र बिरखम निर्माण की परंपरा की दृष्टि से काफी समृद्ध माना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि इन बिरखमों की स्थापना का उद्देश्य पराक्रमी पुरुषों, योद्धाओं तथा वीरों की चिर स्मृतियों को जीवित रखना था।
बिरखमों के निर्माण का एक और मकसद मार्ग संकेतक, धर्मशाला, मंदिर, किले, नौलों की जानकारी लोगों को देना था। इसके अलावा सीमांकन एवं प्रतीकों के रुप में भी इन बिरखमों का निर्माण किया गया था। कुमाऊं में मिलने वाले अधिकांश बिरखम कत्यूरी एवं चंद शासकों के समय बने हुए हैं। चम्पावत जिले में गोल्ज्यू मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर बिरखम, बालेश्वर मंदिर एवं इसके नौले के प्रवेश द्वार के दाएं व बाएं दोनों ओर स्थापित हैं।
इसके अलावा घटोत्कच्छ मंदिर के समीप पश्चिमोत्तर चांडालकोट के पीछे, एक हथिया नौले के मार्ग में, दिगालीचौड़ कस्बे से करीब दो किमी दूर चिलकोट पास और बग्वाल मेले के लिए विश्वविख्यात बाराही धाम में भी बिरखम मौजूद हैं। बाराकोट विकास खंड के गल्लागांव, बाराकोट ब्लॉक रोड के पास भी विरखम बने हुए हैं। गलचौड़ा मंदिर के पुजारी तारा दत्त थ्वाल ने बताया कि श्रद्धालु इसे विरखम न मानकर गलचौड़ा बाबा के साक्षात रूप में पूजा करते हैं। कई लोग इसे बाबा का लिंग मानते हैं। गलचौड़ा के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है और यहां पूजा के चम्पावत के अलावा विभिन्न स्थानों से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अलग- अलग आकृति के बने हैं बिरखम
मध्य हिमालयी क्षेत्र में स्थापित बिरखम स्वरूप एवं आकार की दृष्टि से तीन प्रकार के हैं। इनमें स्तंभ सदृश्य बिरखम एकात्मक शिला से बने हैं तथा आधार से शीर्ष तक चतुष्फलकीय हैं। दूसरे देवकुलिका के समान बिरखम लघु देवालय की तरह प्रतीत होते हैं। इनका आकार शिखर की ओर संकुचित होता गया है। तीसरे विरखम शिलापट के समान दो फलक वाले हैं। इन विरखमों के शीर्ष पर आमलक, कलश एवं लिंग स्थापित किया गया है। विशाल शिलाखंडों में बनाए गए इन विरखमों में वक्राकार, चक्रीय ढाल है। हाथ भाला लिए हुए योद्धा, बांए हाथ से अश्व की लगाम एवं दाहिने हाथ से तलवार लिए हुए अश्वारोही का चित्रण भी किया गया है। वीरखमों में बनी आकृतियों में आलिंगनबद्ध युगल, करबद्ध उपासक तथा उपासिकाएं तथा नृत्य मुद्रा में स्त्री व हाथ में धनुष लिए मानवों को उकेरा गया है।
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