Move to Jagran APP

फलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मधुमक्खियों का लिया जाएगा सहारा, जानिए कैसे

उत्तराखंड में मौन पालन का दायरा बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2018 में 4450 मधुमक्खी पालकों ने 26,198 मौन वंश कालोनियों के माध्यम से 1860.50 क्ंिवटल शहद उत्पादन किया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 08:56 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 08:56 PM (IST)
फलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मधुमक्खियों का लिया जाएगा सहारा, जानिए कैसे

हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड में मौन पालन का दायरा बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2018 में 4450 मधुमक्खी पालकों ने 26,198 मौन वंश कालोनियों के माध्यम से 1860.50 क्ंिवटल शहद उत्पादन किया है। अब प्रदेश में शहद के साथ ही फलपट्टी वाले जिलों में फलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी मधुमक्खियों का सहारा लिया जाएगा। किसानों को उद्यान विभाग एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में चार मौन बॉक्सों को रखने के लिए प्रति बॉक्स 350 रुपये की प्रोत्साहन राशि देगा।

किसानों की आय दोगुनी करने और बाजार में शहद की मांग को देखते हुए प्रदेश में अब शहद उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। आमतौर पर लोगों को जंगल से शहद हासिल करने का परंपरागत ज्ञान तो हैं, लेकिन शहद उत्पादन के बारे में जागरूकता न होने से अभी ज्यादातर क्षेत्रों में इसे रोजगार के तौर पर नहीं लिया जा रहा है, जबकि महज एक से दो हजार रुपये की धनराशि खर्च कर एक मौन वंश की स्थापना की जा सकती है। कीट विशेषज्ञों की माने तो मधुमक्खियां पौधों में परागण में सहायक होती हैं। कृषि उपज बढ़ाने में मौन वंश सहायक साबित हुए हैं। इसलिए अब प्रदेश के फलपट्टी वाले जिलों में उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को मौन वंश स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

कैसे होता है पौधों में परागण

पौधों में पराग कण का नर भाग से मादा भाग पर स्थानांतरण परागण कहलाता है। परागण के उपरांत निषेचन की क्रिया होती है और प्रजनन आगे बढ़ता है। जब किसी पुष्प का परागकण निकालकर किसी दूसरे पुष्प या फिर किसी दूसरे पौधे के पुष्प तक पहुंचता है तो इस क्रिया को परागण कहते हैं और जब किसी पुष्प के परागकोष से परागकण निकलकर यह उसी पौधे के पुष्प पर पड़ता है तो वह स्वपरागण कहलाता है।

पूरा वंश चलाती है एक रानी

एक मौन वंश में एक रानी मधुमक्खी और कुछ नर मक्खियां व बहुत सारी कमेरी मधुमक्खियां होती हैं। रानी मधुमक्खी दो प्रकार के अंडे देती है, जिसमें निषेचित व अनिषेचित अंडे होते हैं। निषेचित अंडों से कमेरी मधुमक्खी व रानी का विकास होता है, जबकि अनिषेचित अंडों से नर मधुमक्खी पैदा होती है, जो शहद एकत्र करने का काम करती हैं। रानी 6 से 12 दिन की आयु से ही अंडे देना शुरू कर देती है और एक से तीन वर्ष तक अंडे देती है।

उत्तराखंड में शहद उत्पादन की स्थिति

जिले                              उत्पादकों की संख्या           उत्पादन

अल्मोड़ा                         370                                 89.0

बागेश्वर                         215                                 45.60

पिथौरागढ़                      650                                  283.90

चम्पावत                       300                                  121.40

चमोली                          600                                  162.30

रुद्रप्रयाग                        545                                 307.30

उत्तरकाशी                    560                                   150.30

देहरादून                          210                                  66.00

नैनीताल                         650                                  420.50

पौड                                200                                  125.90

टिहर                            150                                     88.30

नोट:: उत्पादन जून 2018 तक जिलेवार क्ंिवटल में।

उपज व फल उत्पादन बढ़ाने में सहायक

डॉ. हरीश तिवारी, उपनिदेशक, राजकीय मौन पालन केंद्र, ज्योलीकोट नैनीताल ने बताया कि मौन पालन कृषि उपज व फल उत्पादन बढ़ाने में सहायक है। अब फलों का उत्पादन बढ़ाने में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके लिए पहले फल उत्पादक किसानों को सात दिनों का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

यह भी पढ़ें : कांस्‍टेबल सविता संवार रहीं कूड़ा बीनते बच्‍चों का भविष्‍य, 52 बच्‍चों को लिया 'गोद'


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.