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World Water Day : पर्यावरण और पानी बचाने के लिए जुनून हो तो आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत जैसा

ऊधमसिंह नगर के जिला आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत लोगों के उपचार के साथ ही धरती व पानी के संरक्षण के लिए भी पहचान बना चुके हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 22 Mar 2020 12:21 PM (IST)Updated: Sun, 22 Mar 2020 12:21 PM (IST)
World Water Day : पर्यावरण और पानी बचाने के लिए जुनून हो तो आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत जैसा
World Water Day : पर्यावरण और पानी बचाने के लिए जुनून हो तो आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत जैसा

हल्द्वानी, जेएनएन : उत्‍तराखंड ऊधमसिंह नगर के जिला आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत लोगों के उपचार के साथ ही धरती व पानी के संरक्षण के लिए भी पहचान बना चुके हैं। तीन दशक से डॉ. पंत निरंतर पर्यावरण संरक्षण के लिए मेहनत करने के साथ लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने जंगलों में 400 चाल-खाल तो बनाए ही, अब तक पौने तीन लाख से अधिक फलदार व छायादार प्रजाति के पौधे भी लगा चुके हैं। उनके पर्यावरण प्रेम से प्रेरित होकर कई लोग भी उनकी मुहिम में जुड़ चुके हैं।

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शुरू से ही प्राकृतिक श्रोते के लिए चिंतित रहे

डॉ. पंत हल्द्वानी के बरेली रोड पर धानमिल के पास रहते हैं। वह बताते हैं कि नौकरी की शुरुआत के दिनों में उन्हें कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर रहने का मौका मिला तो लगातार कम होते जंगल व सूखते नौले-धारों, प्राकृतिक स्रोतों को लेकर चिंता सताने लगी। बरसात में धरती का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाता है। पहाड़ पर पेड़ों के कटान से जमीन पथरीली हो जाती है और पानी बहकर निचले हिस्सों में पहुंच जाता है। तराई-भाबर से भी यह पानी बहकर नदी-नालों में समा जाता है। इससे प्राकृतिक स्रोत रिचार्ज नहीं पाते और सूखने की कगार पर पहुंच जाते हैं। इन्हीं चिंताओं को लेकर उन्होंने वर्ष 1988 में खुद ही पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठा लिया और पौधरोपण व जल संरक्षण के लिए प्रयास शुरू कर दिए।

जंगलों में जाकर पौधरोपण शुरू किया

डॉ पंत ने जंगलों में जाकर पौधरोपण शुरू किया। उन्हें बचाने के लिए आसपास चाल-खाल बनाए। यही नहीं, वह निरंतर जंगलों का भ्रमण कर लगाए पौधों की देखरेख भी करते रहे। छोटे पौधों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए तारबाड़ कराया गया। इसके बाद उनका अभियान गांवों से शुरू हुआ। डॉ. आशुतोष पंत ने कुमाऊं के क्षेत्रों का भ्रमण कर उस क्षेत्र की आबोहवा के हिसाब से फलदार-छायादार पौधों को ग्रामीणों को बांटने के साथ ही जल, जंगल के बारे में लोगों को जागरूक किया। धीरे-धीरे राच्य के गढ़वाल मंडल में भी उनका अभियान शुरू हो गया। डॉ. पंत बताते हैं कि अब तक वह 2.81 लाख पौधे गांव-गांव जाकर शिविर के माध्यम से लगा व बांट चुके हैं। इनमें कई ऐसे पौधे भी हैं, जो भूजल को काफी तेजी से रिचार्ज करते हैं।

सरकार से लेकर आम लोगों के प्रयास की जरूरत

डॉ. आशुतोष पंत का मानना है कि भूजल संरक्षण के लिए केवल सरकार पर ही निर्भर न होकर लोगों के सामूहिक प्रयास की जरूरत है। अगर लोग पानी बचाने को लेकर गंभीर नहीं हुए तो भविष्य में संकट भयावह हो जाएगा। समय पर जल संरक्षण को लेकर लोगों को जागरूक होकर प्रयास करने चाहिए। सरकार ने भवन बनाते समय रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू किया है। इसका अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए।

जंगली जानवरों के लिए चाल-खाल जरूरी

डॉ. आशुतोष पंत कहते हैं कि मानव के साथ ही जंगली जानवरों के सामने भी पानी का संकट खड़ा होने लगा है। गर्मियों में जंगली जानवर पानी के लिए भटकते हैं। कई बार वह पानी के लिए आबादी क्षेत्र में तक पहुंच जाते हैं। जिससे उनका मानवों से संघर्ष होता है। जंगली जानवरों की प्यास बुझाने के लिए जंगलों में चाल-खाल बनाए जाने चाहिए। ग्रामीणों को अपने आसपास के जंगलों में चाल-खाल बनाने की जिम्मा खुद उठाना चाहिए।

शुभ अवसरों पर तोहफे में बांटते हैं पौधे

डॉ. पंत का शुभ अवसरों पर लोगों को तोहफे देने का अंदाज भी निराला है। वह शादी-ब्याह, नामकरण, जनेऊ आदि समारोह में नेक में फलदार पौधे देते हैं। डॉ. पंत बताते हैं कि अब तक वह करीब 20 हजार पौधे तोहफे में भेंट कर चुके हैं।

घर पर जल संचय के लिए बनाया 80 हजार लीटर का टैंक

डॉ. पंत ने अपने घर पर भी जल संचय की व्यवस्था की है। उन्होंने धान मिल स्थित घर के परिसर में जल संरक्षण के लिए 80 हजार लीटर का अंडरग्राउंड टैंक बनाया है। वह बताते है कि इस टैंक के पानी से भूजल रिचार्ज होने के साथ ही गर्मियों में जलसंकट गहराने पर उन्हें पानी की कमी नहीं होती है। सभी को अपने घर पर इस तरह के प्रयास करने चाहिए।

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