अद्भुत रही है कुमाऊं के लोक गीतों की परंपरा, नई पीढ़ी के लिए डिजिटल संकलन तैयार कर रहे
उत्तराखंड की लोक परंपरा बड़ी समृद्ध है। इसमें भी विशिष्ट है शगुन आंखर गायन परंपरा। शादी जनेऊ जैसे शुभ अवसरों पर शगुन आंखर यानी मांगलिक गीत गाए जाते हैं। हालांकि समय के साथ यह परंपरा क्षीण होती जा रही है।
हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड की लोक परंपरा बड़ी समृद्ध है। इसमें भी विशिष्ट है शगुन आंखर गायन परंपरा। शादी, जनेऊ जैसे शुभ अवसरों पर शगुन आंखर यानी मांगलिक गीत गाए जाते हैं। हालांकि समय के साथ यह परंपरा क्षीण होती जा रही है। मांगलिक अवसरों पर बुजुर्ग गीदारों की कर्णप्रिय धुन अब कम सुनाई पड़ती है। अच्छी बात यह है कि कुछ संस्कृति प्रेमियों ने कुमाऊं की अद्भुत परंपरा को जीवंत बनाने के साथ नई पीढ़ी के लिए इसे संकलित करने की पहल की है।
मांगलिक गीतों को विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत जैसे अवसर पर गाया जाता है। हिंदू शास्त्रों में भी मांगलिक गीत गाने का उल्लेख मिलता है। बदलते समय के साथ यह परंपरा धीरे धीरे पीछे छूटती जा रही है। घरों में होने वाले विवाह आयोजन होटल, बारात घर, बैंक्वेट हॉल तक पहुंच गए हैं। ऐसे में गीदारों को खोलना मुश्किल हो जाता है।
संस्कृति प्रेमियों ने मांगलिक गीतों ऑडियो तैयार कर यूट्यूब पर अपलोड की है। जिन्हें शुभअवसरों पर मोबाइल फोन पर कहीं भी बजाया जा सकता है। उत्तराखंड में मांगलिक कार्यों से पहले देवताओं, पूर्वजों को न्यौतने की परंपरा रही है। यानी मांगलिक गीतों के जरिये पितरों और देवताओं का आहवान किया जाता है और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।
इन गीतों को किया संकलित
पुण्य वाचन गीत, हल्दी गीत, देव निमंत्रण, गणेश पूजन, मातृ पूजा, कलश पूजा, पितृ निमंत्रण, नवग्रह पूजा, ज्योति पूजा, संध्या गीत, निमंत्रण गीत, सुवाल पथाई गीत, भात न्यूतने के गीत, बारात आने के गीत, धूली अघ्र्य गीत, कन्यादान तैयारी गीत, शय्या दान गीत, विदाई गीत, नामकरण गीत, बन्ना-बन्नी गीत, मंगल गीत। मांगलिक गीतों के गुलदस्ते में 20 अलग-अलग प्रकार के 56 गीतों को संकलित किया गया है। जिन्हें मौके के अनुसार बजाया जा सकता है। संकलनकर्ता लता कुंजवाल कहती हैं इससे नई पीढ़ी अपनी प्राचीन परंपरा से परिचित होगी।
इनका रहा योगदान
शिखर सांस्कृतिक विकास समिति अल्मोड़ा की लता कुंजवाल के शोध व संकलन से शगुन आंखर की ऑडियो तैयार हुई। लता कुंजवाल, मीनू जोशी, शमिष्ठा बिष्ट की आवाज, हेमंत बिष्ट के पाश्र्व स्वर, अमर सब्बरवाल, आनंद बिष्ट के संगीत, मिक्सिंग इंजीनियर नितेश बिष्ट, जुगल किशोर पेटशाली के परामर्श से गीत तैयार हुए। लेखक और संस्कृति कर्मी जुगल किशोर पेटशाली कहते हैं कि आज की पीढ़ी शगुन आंखरों को भूलती जा रही है। बच्चों को तो मालूम भी नहीं कि ऐसी भी कोई परंपरा रही है। ऐसे में शगुन आंखर को सोशल प्लेटफार्म पर लाना सराहनीय प्रयास है।
गणेश पूजा के समय गाया जाने वाला फाग
जय जय गणपति, जय जय ए ब्रह्म सिद्धि विनायक।
एक दंत शुभकरण, गंवरा के नंदन, मूसा के वाहन॥
सिंदुरी सोहे, अगनि बिना होम नहीं,
ब्रह्म बिना वेद नहीं,
पुत्र धन्य काजु करें, राजु रचें।
मोत्यूं मणिका हिर-चैका पुरीयलै,
तसु चैखा बैइठाला रामीचन्द्र लछीमन विप्र ऎ।
जौ लाड़ी सीतादेही, बहुराणी, काजुकरे, राजु रचै॥
फुलनी है, फालनी है जाइ सिवान्ति ऎ।
फूल ब्यूणी ल्यालो बालो आपूं रुपी बान ऎ॥
मातृका पूजन के समय गाए जाने वाला मंगल गीत
कै रे लोक उबजनी नाराइन पूत ए?
कै रे लोक उबजनी माई मत्र देव ए?
नाराइनी कोख अबजनी माई मात्र देव ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए॥
कौसल्या रांणि कोखि, सुमित्रा रांणि कोखि,
उबजनी रामीचन्द्र, लछीमणे पूत ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए,
सीतादेहि कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनीं।
लव-कुश पूत ए। बालकै सहोदरै पूत ए।
माथी लोकै उबजनीं माई मात्र देव ए।
दूलाहिण कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनी,
बालकै सहोदरे पूत॥
निमंत्रण गीत
जा रे भंवरिया पितरों का देश-पितरों का द्वार ए,
को रे होलो पितरों का देश, पितरों का द्वार ए?
आधा सरग चन्द्र सुरीज, आधा सरग पितरों का द्वार ए।
सरग तैं पुछना छन दशरथ ज्यू ए।
की रे पूत ले, पूत नांति लै, की रे बहुवे ले दिवायो छ न्यूंतो, बढ़ायों उछव?
जो रे तुमें लै नाना छीना दूददोया,
नेत्र पोछा घृतमाला अमृत सींचा,
उं रे तुमें ले भला घरे की, भला वसै की सीतादेहिं आंणी, बहुराणीं आणी,
जीरो पूतो-पूतो, नातियां लाख बरीख,
तुमरी सोहागिनी जनम आइवांती जनम पुत्रावान्ती॥
(विवाह के अवसर पर भंवरे को पितृलोक में पितरों को निमंत्रण देने के लिये इस गीत में कहा जा रहा है।)