Uttarakhand Recruitment Scam : सीबीआई जांच की मांग को लेकर हरीश रावत और कांग्रेस के नेता एकमत नहीं
उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बयानबाजी में आपसी सहमति नहीं है। भर्ती घोटाला मामले में एक तरफ जहां उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दायर करते हैं वहीं हरीश रावत फेसबुक पोस्ट कर कहते हैं कि उन्हें सीबीआई पर भरोसा नहीं।

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : कांग्रेस में जहां एक तरफ संगठन के ज्यादातर नेता भर्ती घोटाले और अंकिता भंडारी हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता हरीश रावत का अपना अलग अभिमत है। हरदा को सीबीआई पर भरोसा ही नहीं है। उनका कहना है कि सीबीआई केवल उन्हीं को दंडित कर रही है जो सरकार के राजनीतिक विरोधी हैं। पार्टी के भीतर ही दो तरह के मत आपसी द्वंद को जाहिर कर रहे हैं।
भुवन कापड़ी, उपनेता प्रतिपक्ष
कुछ दिनों पहले उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी ने उत्तराखंड में हुई भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की मांग लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें उन्होंने कहा है कि यूकेएसएससी परीक्षा में हुई गड़बड़ी की जांच एसटीएफ सही तरीके से नहीं कर रही है, अभी तक जो गिरफ्तारियां हुई हैंं छोटे छोटे लोगों की हुई है, जबकि बड़े लोगों की अभी तक एक की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। इसमे यूपी व उत्तराखंड के कई बड़े बड़े अधिकारी व नेता शामिल है। सरकार उनको बचा रही है। इसलिए इस मामले की जांच एसटीएफ से हटाकर सीबीआई से कराई जाए।
यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष
वहीं नेता प्रतिपक्ष ने यशपाल आर्य ने भी नियुक्तियों में हुई धांधली और अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। बीते दिनों उन्होंने पौड़ी डोभा-श्रीकोट में पीड़ित परिवार से मिलकर अंकिता के माता-पिता से आग्रह किया वे सीबीआई की जांच के लिए पत्र लिखें, कांग्रेस न्याय की लड़ाई में पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि मैंने न अंकिता हत्याकांड और न भर्ती घोटाले आदि में सीबीआई जांच की मांग की है। मैंने यह कहा है कि जिस एजेंसी से भी जांच कराएं, चाहे एसटीएफ हो, एसआईटी हो या कोई ऐसी समिति, जिसको कुछ सेवानिवृत्त विशेषज्ञों को मिलाकर गठित किया जा रहा हो, वह सब जांचें माननीय हाईकोर्ट के एक बेंच की निगरानी में होनी चाहिए। उनके द्वारा निर्धारित मापदंडों के आधार पर होनी चाहिए। सीबीआई पर मुझे भरोसा नहीं है। क्योंकि अभी तक सीबीआई केवल उन्हीं को दंडित कर रही है जो सरकार के राजनैतिक विरोधी हैं।
पार्टी के नेताओं से हरदा की राह जुदा क्यों
कांग्रेस के जब ज्यादातर पदाधिकारी दोनों घटनाओं की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं तो हरदा की राह जुदा क्याें हैं? क्या पार्टी के अंदर बिना आपसी विचार विमर्श के बयानबाजी हो रही है? हरदा की सुनी नहीं जा रही है या वह अपने साथियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं? पार्टी के भीतर सहमति न बन पाना भी संगाठात्मक कमजोरी उदाहरण है। अनुशासन संगठनात्मक शक्ति की पहली शर्त होती है...और कांग्रेस में फिलहाल इसका अभाव नजर आ रहा है।
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